आदरणीय साथियो,
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रूढ़ियों पर, गली-सड़ी परंपराओं पर तथा अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना किसी रचनाकार के जीवित होने का प्रमाण होता है. आपने एक पौराणिक संदर्भ का सहारा लेकर अपनी आवाज़ बुलंद की है, प्रशनचिह्न खड़ा किया है, पाखंड के चेहरे से नक़ाब नोचकर उतारा है, यह लघुकथा एकदम कसी और सधी हुई है और प्रदत्त विषयानुकूल भी है. किंतु निम्नलिखित पंक्तियों का औचित्य समझ नहीं आया:
1. //दो दिन पहले ही यहाँ आई थी।// अगर 4 दिन पहले भी आई होती तो क्या फर्क पड़ता?
2. //उसने खुद अपना नाम मिर्ची बताया था// हर कोई अपना नाम खुद ही तो बताता है, यह लिखने की क्या ज़रुरत है?
3. //जो उसके तेवर से मेल भी खा रहा था।// अभी तक तो उसने ऐसा कुछ कहा/किया भी नहीं, तो उसके तेवर का आपको कैसे पता चला?
बहरहाल, इस लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.
1. //दो दिन पहले ही यहाँ आई थी।// अगर 4 दिन पहले भी आई होती तो क्या फर्क पड़ता?//
नारी निकेतन की पुरानी लड़कियों के अन्दर डर है जो यहाँ के लंबे कड़वे अनुभवों से उपजा है। मिर्ची खुलकर अपना गुस्सा दिखा पाये इसलिये उसे नया बताना ठीक लगा।
2. //उसने खुद अपना नाम मिर्ची बताया था// हर कोई अपना नाम खुद ही तो बताता है, यह लिखने की क्या ज़रुरत है? //
मिर्ची क्योंकि अजीब नाम है।
3. //जो उसके तेवर से मेल भी खा रहा था।// अभी तक तो उसने ऐसा कुछ कहा/किया भी नहीं, तो उसके तेवर का आपको कैसे पता चला?//
जी यहाँ पर तेवर गैरजरूरी है।
आयोजन में लघुकथा पर आपकी टिप्पणी/ मार्गदर्शन मिलने से रचनाकर्मं सार्थक हुआ।। हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी 'मिर्ची' ने तो वाकई 'नारी-निकेतन' के बाबाजी और उनके सहयोगियों को मिर्ची का स्वाद समझा दिया। हाँ, बाट जोहें ........बाट जोयें, नहीं। फड़कती लघुकथा के लिए आपको बधाइयाँ। शेष आदरणीय योगराज जी कह ही चुके हैं।
हार्दिक आभार आदरणीय मनन जी
आ. प्रतिभा पाण्डेय जी, पौराणिक कथ्य का आधार बना कर विषयानुकूल बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने। मेरी तरफ़ से दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। आ. योगराज सर ने जिन बिन्दुओं की बात की है उनसे मेरी भी सहमति है। //ये 'मिर्ची' थी। दो दिन पहले ही यहाँ आई थी।उसने खुद अपना नाम मिर्ची बताया था जो उसके तेवर से मेल भी खा रहा था। साथ बैठी लड़कियाँ उसे रोकतीं, उससे पहले मिर्ची खड़ी हो गई।// इसे इस तरह भी कहा जा सकता है : "यह 'मिर्ची' थी जो कुछ दिन पहले ही यहाँ आई थी। साथ बैठी लड़कियाँ उसे रोकतीं, उससे पहले ही वह खड़ी हो गई।" रही बात मिर्ची के तेवर की तो वह उसके नाम और लघुकथा में उसके काम दोनों से पता चल रहा है। सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी। बेहतरीन लेखन शैली में अद्भुत लघुकथा।
आदाब। हार्दिक बधाई इस उम्दा सार्थक लघुकथा हेतु आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। उपरोक्त टिप्पणियों से लाभान्वित हुआ। यदि //यह 'मिर्ची' थी//.. वाक्य को दूसरी तरह से लिखें, तो? जैसे कि // यह वही थी, जो ख़ुद को 'मिर्ची' कह रही थी!//
आदाब, प्रतिभा पाण्डे जी, धर्म की आड़ में मठों-आश्रमों में तथाकथित गुरुओं के लिजलिजे चरित्र और आचरण पर कुठाराघात करती संक्षिप्त लेकिन अपने उद्देश्य बेहद सफल लघुकथा हेतु आपको बधाई ! हाँ, आदरणीय भाई योगराज प्रभाकर साहब की बात से मैं भी सहमत हूँ।
आदरणीय प्रतिभा पांडे साहिबा, मुझे आपकी लघुकथा बहुत पसंद आई, आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
लघुकथा - इन्तज़ार (प्रतीक्षा)
बनारस दोस्त की शादी में शिरकत करने के लिए अजय रेल्वे स्टेशन पर ट्रेन रवाना होने के समय सुबह 8 बजे से आधा घंटा पहले ही पहुंच गया l
इन्क्वायरी विंडो पर पता चला ट्रेन आधा घंटा लेट है, अजय प्रतीक्षालय में जाकर प्रतीक्षा करने लगा
आधा घंटे बाद वो जाकर फिर पूछता है, "ट्रेन कब तक आएगी" l
जवाब मिलता है, " दो घंटा देरी से आएगी" l
अजय फिर दो घंटे बाद आता है, तो पता चलता है चार घंटा देरी से आएगी l
इसी तरह अजय इन्क्वायरी पर पूछता रहा और जवाब में ट्रेन का समय बढ़ता रहा, यहाँ तक कि दिन क्या सारी रात गुज़र गई l
अचानक लाउड स्पीकर पर सूचना सुनाई दी, बनारस जाने वाली ट्रेन प्लेट फॉर्म नंबर 4 पर आ रही है l
अजय ने अपना बैग उठाया और प्लेट फॉर्म नंबर 4 की तरफ़ चल दिया, पीछे से किसी यात्री ने अजय को रोक कर कहा ," बनारस वाली ट्रेन लगता है आज सही समय पर आ रही है, मुझे भी बनारस जाना है" l
अजय ने हैरत से उस यात्री की तरफ़ देख कर कहा,"ये आज की नहीं कल वाली ट्रेनआ रही है" l
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहिब जी। रेल व्यवस्था पर अच्छी लघुकथा।
आदाब। विषयांतर्गत बढ़िया तंजदार कथानक सूझा आपको। हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब। रचना के आरंभिक दो वाक्यों की बात को सुधार कर कुछ छोटा भी एक वाक्य में किया जा सकता है। इसमें थोड़ा सा ट्विस्ट लाकर बेहतर लघुकथा रूप दिया जा सकता है, ऐसा भी लगा मुझे। वरना कुछ पाठक इसे चुटकुलानुमा श्रेणी में भी रख सकते हैं।
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