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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-62 (विषय: मर्यादा)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-62 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-62
विषय: मर्यादा
अवधि : 30-05-2020 से 31-05-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी।  महीन धागा को समझने की आवश्यकता है। 

मालकिन और नौकरानी के बीच भी ममता का रिश्ता बन जाता है। कथ्य के साथ-साथ शीर्षक भी बहुत सटीक दिया है आपने आदरणीय गणेश बागी जी। इस बेहतरीन लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

सराहना युक्त प्रतिक्रया हेतु आभार आदरणीया कल्पना जी। 

मर्यादा

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''ये कौन सा समय हैऑफिस से घर लौटने का? शिशिर कब का घर आ चुका है, इस घर की मर्यादा का कुछ तो ख्याल रखो।" दरवाजा खोलते हुए सुनन्दा  के विधुर जेठ ने ऊंची आवाज में कहा ।

अपनी बेधती नजरें उन पर टिका सुनन्दा बोली,

"मर्यादा बची रहे इसीलिए तो शिशिर के घर आ जाने के बाद घर के भीतर कदम रखती हूँ।"

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[मौलिक एवं अप्रकाशित]

हार्दिक बधाई आदरणीय नमिता सुन्दर जी। बेहतरीन लघुकथा।आपने प्रदत्त विषय मर्यादा को इतने कम शब्दों में इतनी गहराई से व्यक्त किया है।अद्भुत लेखन। मैंने शायद यह आपकी पहली लघुकथा पढ़ी है। बहुत प्रभावित किया। इतनी सूक्ष्म लेकिन बेहद मारक लघुकथा पहली बार पढ़ी।पुनः हार्दिक बधाई।

आभार, तेज वीर सिंह जी, आपने बिल्कुल सही कहा, लघु कथा लिखना अभी सीख रहे हैं। लम्बी कहानियां तो लिखी हैं पर कम शब्दों में कुछ कह पाना हमारे लिए खासा मुश्किल काम है। उत्साह वर्धन हेतु बहुत आभार।

नमिता

समझने  के लिए समय लेती है यह लघु कथा i परन्तु गंभीर कटाक्षI  आदरणीया 

बहुत बहुत आभार, गोपाल जी। आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है।

नमिता

आदाब। इस गोष्ठी में इस विषय पर इतने कम नपे-तुले शब्दों में  गहरी कटाक्षपूर्ण बात इतने तीखेपन से कहती बेहतरीन सार्थक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया नमिता सुंदर जी। हालांकि कथानक बहुत पुराना है। लेकिन कहन प्रभावशाली है।

आ. नमिता जी , अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

मर्यादा का बांध दिखाती इस लघुकथा के लिए आपको बधाई आदरणीया नमिता जी।

कम शब्दों में बड़ी बात, आदरणीय गुरुदेव योगराज जी की एक लघुकथा कुछ इसी कथानक के साथ है जिसमे वो अपनी लड़की पड़ोस के घर छोड़ने जाती है तो पड़ोसन कहती है कि इसका चाचा तो आया हुआ है न, तो माँ जवाब देती है कि तभी तो इसे तुम्हारे पास छोड़ रही हूँ.

अच्छी लघुकथा के लिए बधाई आदरणीया नमिता जी.

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