खुशियों की सौगातें लाया
झूम के देखो सावन आया
चंचल सोख़ हवा इतराई
बारिश की बौछारें लाई
महक उठा अब मन का आँगन
भीनी भीनी सी खुशबू छाई
देख छटा हर मन हर्षाया
झूम के देखो सावन आया ...
मन की बगिया महक रही है
पंछी बन के चहक रही है
इच्छाओं को पंख मिल गए
दिल की धड़कन बहक रही है
मौसम में है खुमार छाया
झूम के देखो सावन आया ...
धरती बाहों को फैलाये
अपना आँचल भी लहराये
उमड़ पड़े हैं नदियाँ नाले
आसमान अमृत बरसाये
सबको ऐसा उत्सव भाया
झूम के देखो सावन आया....
धीरे धीरे गरजो मेघा
खेतों में ही बरसो मेघा
छत टूटी कच्ची दीवारें
उलझन को कुछ समझो मेघा
रौद्र रूप से जी घबराया
झूम के देखो सावन आया ....
बगियाँ सारी खिली खिली हैं
हर डाली में एक कली है
पत्ते भी अब राग सुनायें
तेज़ हवाएँ खूब चली हैं
कुदरत ने क्या रंग दिखाया
झूम के देखो सावन आया....
ले किसान हल निकल पड़े हैं
बैल भी अब तैयार खड़े हैं
मिट्टी में आ गई जवानी
अब खेतों में मोती जड़े हैं
उम्मीदों की चाबी लाया
झूम के देखो सावन आया....
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आ. भाई नादिर जी, सुंदर गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीया बबीता जी हौसला अफजाई का शुक्रिया ....
आदरणीय समर साहब बेशकीमती सुझाओं के लिए बहुत शुक्रिया आपका .... पहली बार गीत लिखने की कोशिश की है ।
उम्दा पंक्तियाँ वरखा रानी की बहार पर,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब,सावन के मौसम पर गीत का अच्छा प्रयास हुआ है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'चंचल सोख़ हवा इतराई'
इस पंक्ति में 'सोख़' को "शौख़" कर लें ।
' भीनी भीनी सी खुशबू छाई'
ये पंक्ति लय में नहीं है,इसे यूँ कर लें:-
"भीनी भीनी ख़ुश्बू छाई"
आवश्यक सूचना:-
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