बह्र-22/22/22/22/22/2
अब से झूटा इश्क़ नहीं करना जानाँ
और किसी को मत देना धोखा जानाँ [1]
जब आँखों को दरिया करने का मन हो
तब मेरी रूदाद-ए-ग़म सुनना जानाँ [2]
दिन से रात तलक मैं तुमको रोता हूँ
तुम भी मुझको आठ-पहर रोना जानाँ [3]
अपने हाथ के कंगन जा पर रखना तुम
वाँ पर मेरी ग़ज़लें मत रखना जानाँ [4]
तुम रिश्तों में मत ढूँडो ख़ुशियाँ सारी
सीखो ख़ुद से मिलकर ख़ुश होना जानाँ [5]
आज जला दी वो वाली फ़ोटो जिसमें
सूट तुम्हारे जिस्म पे था काला जानाँ [6]
तुमसे पहले मैं ख़ुश रहता था लेकिन
बाद तुम्हारे रंज-ओ-ग़म रहता जानाँ [7]
चार महीने खेल के दिल को तोड़ दिया
मेरा दिल क्या एक खिलौना था जानाँ? [8]
हाए! तुम्हारे लब को देख के लगता है
तुमने 'मीत' का ख़ून पिया होगा जानाँ[9]
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब जी, प्रणाम
ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये बेहद मशकूर हूँ। सादर।
आ. रूपम कुमार जी, सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब जी, मेरा प्रणाम आपको , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिया , अपना स्नेह बनाए रखिए बालक पर ,
जनाब रूपम कुमार जी अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
आदणीय सुशील सरना साहिब, हौसला अफ़ज़ाई और ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिए हृदय तल से शुक्रिया करता हूँ।। बहुत दुआएँ
आदरणीय सालिक सर्, हौसला बढ़ाने के लिए बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति बालक के लिए बड़ी बात है।। बहुत दुआएँ
प्रिय रुपम कुमार
बह्र-ए-मीर इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करो.सलामत रहो और ख़ूब लिखो.
मोहतरमा उस्ताद समर कबीर साहिब जी, आपको मेरा प्रणाम, आपकी दाद मिल रही है, तो कोशिश सफल हुई, मैं कोशिश करता हूँ सुधारने की वो त्रुटि, आपका स्नेह बना रहे हम पर।
जनाब रूपम कुमार 'मीत' जी आदाब, बह्र-ए-मीर पर बहुत उम्द: ग़ज़ल कही आपने, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'चार महीने खेल के दिल को थोड़ दिया'
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