For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,130)

सावन की चांदनी रात

सावन की ये अंजोरिया

झिलमिलाते चाँद -तारे

बादलों की आड़ से

लुक्का छिप्पी खेलते सारे

हलके हलके घनो से

हल्की बूंदों की रिमझिम

हर्षित मन को लगते न्यारे





शनै: शनै: पवन के झोखे

नीम पीपल आम के पत्ते

झींगुर के साथ और रतजगे

मिलकर किए निर्मित

कर्णप्रिये ध्वनि है मिश्रित





बसुधा से मिलन को बेताब

वो बूंद अम्बर से

आकर पत्तों पर गिरती

तब धरा को सर्वस्व मानकर

उससे आलिंगन करती

धरा और नभ के मिलन… Continue

Added by ritesh singh on August 21, 2010 at 4:11pm — 3 Comments

रावण बार -बार जिन्दा क्यों होता है

राम और रावण

दोनों बसते है ...

मेरे /आपके हृदय में ॥

दोनों में चलता रहता है ...

एक युध्ध ...अहर्निश ॥

कभी राम सबल होता है

तो कभी रावण ॥



सुबह उठता हू ...

नित्य क्रिया कर

भगवान् की मूर्ति के सामने

आरती गाता हू

धुप जलाता हू ....

तब मेरा राम सबल रहता है

भिखारी को दान देना अच्चा लगता है

वृद्ध माता -पिता पूजनीय लगते है

सबसे प्रेम से बातें करता हू ....



जैसे -जैसे दिन बीतता है ...

झूठ /धोखा /बेईमानी… Continue

Added by baban pandey on August 21, 2010 at 2:08pm — 3 Comments

देशी वूमेन

प्रगति की गति उसकी धमनी में रक्त बन चले हैं,

सर ढककर ,शोहरत की शौपिंग कर रही है,

लक्की बैम्बू लगा किस्मत सवांर रही है,

किचन में किचन इकोनोमी प्रयोग कर रही है,

कभी हॉट,कभी कूल,कभी प्रीटी लग रही है,

पजामा पार्टी में मनचले गप्पे मरते हुए ,

सामाजिक मुद्दों की परिचर्चा में भाग ले रही है,

मेहनत के टैक्स देकर,सपनों को पूरा कर रही है,

ख्वाहिशों की होम डेलिवेरी घर बैठे ले रही है,

राठौर जैसे मनचलों से लड़ रही है,

कल्पना के आकाश इ एक नाजो-अदा से उड़से रही… Continue

Added by alka tiwari on August 21, 2010 at 1:07pm — 6 Comments

गीत: आपकी सद्भावना में... संजीव 'सलिल'

निवेदन:



आत्मीय !



वन्दे मातरम.



जन्म दिवस पर शताधिक मंगल कामनाएँ भाव विभोर कर गयी. सभी को व्यक्तिगत आभार इस रचना के माध्यम से दे रहा हूँ.



मुझसे आपकी अपेक्षाएँ भी इन संदेशों में अन्तर्निहित हैं. विश्वास रखें मेरी कलम सत्य-शिव-सुन्दर की उअपसना में सतत तत्पर रहेगी. विश्व वाणी हिन्दी के सभी रूपों के संवर्धन हेतु यथाशक्ति उनमें सृजन कर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता रहूँगा.



पाँच वर्ष पूर्व हिन्दीभाषियों की संख्या के आधार पर हिन्दी का विश्व में दूसरा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 21, 2010 at 9:39am — 5 Comments

संग्राहलयो में बंद कागज़ के टुकड़े

वो ताड़ के पत्ते
वो भोज -पत्र
वो कपडे और कागज के टुकड़े
कितने खुशनसीब है ...
जिन्होंने अपने ऊपर
गुदवाया भारत का इतिहास ॥

वो साहिल के पंखों की कलम
वो दावात
और वो स्याही
आप कितने धन्य है ....
कितने ही क्रांतिवीरों ने
स्पर्श किया आपको ॥

छूना चाहता हू , मैं भी आपको
ताकि .....
क्रांतिवीरों का थोडा सा ओज
उनके क्रांतिकारी विचार
स्थानांतरित हो सके हममे
आप सहेज कर रखे गए है
शीशे के अन्दर संग्राहलयो में ॥

Added by baban pandey on August 20, 2010 at 10:57pm — 3 Comments

हसीना उसको कहते हैं

हसीं गालों पे जो चमके, नगीना उसको कहते हैं.

घनीं जुल्फों से जो टपके, तो मीना उसको कहते हैं.

यूँ कहने को तो मयखाने में, लाखों रोज़ पीते हैं.

जो छलके गहरी आँखों से, तो पीना उसको कहते हैं.

मचल जाता फिजा का दिल, हसीं जुल्फें बिखरने से.

जो पत्थर को भी पिघला दे, हसीना उसको कहते हैं.

ख़ुशी में हंसना- खुश होना, जहां में सबको आता है.

मगर जो हँस के गम सह ले, तो सीना उसको कहते हैं.

महलों के गलीचों पे पसीना, आता है पुरी.

मगर खेतों में जो बहता, पसीना उसको कहतें… Continue

Added by satish mapatpuri on August 20, 2010 at 4:02pm — 4 Comments

कौन चीखता है तेरे जुल्मतों भरे हिसारों से।

समझ ना सका मैं तेरे दर पर लगी कतारों से,

रोशनी की उम्मीद कर बैठा गर्दिशमय सितारों से।



हमसफर ही तंग दिल मिला था मुझको,

किस कदर फरीयाद करता मैं इन बहारों से।



कौन रूकेगा इस सरनंगू शजर के नीचे,

जो खुद टिका हो बेजान इन सहारों से।



आंखों के आब को अजान देते रहते हैं जो,

लम्हा-लम्हा मांगता रहा समर इन रेगजारों से।



नामो-निशां भी मिटा चुका हूं तेरा इस दिल से,

तो किस कदर गुजरू तेरे दर के रहगुजारों से।



मेरी चाहत तो खला में खो… Continue

Added by Harsh Vardhan Harsh on August 20, 2010 at 2:06am — 5 Comments

अलबेला राही

चल रहा है पग पर राही
अकेला है ,अलबेला है
मंद कर तू पग रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
कहने को तू मौजी है अल्हड ,बेपरवाह
क्या जल्दी है बोल रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
जरा कर पीछे लोचन रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
अपने तेरे छुट गए है
क्यों दोस्त क्या तेरे कोई नहीं है
जीवन रस में पग रे राही
क्यों अकेला है ,क्यों अलबेला है ?

......रीतेश सिंह

Added by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:30pm — 3 Comments

हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे

हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे --

हाँ ---कहो --- तुमने भी प्यार किया था हमसे



कसम खुदा की ईमान भी दे देते हम '

कसम खुदा की ये जान भी दे देते हम



उम्र भर अपनी पलकों पे बिठाये रखते '

सारी दुनियां की निगाहों से छुपाये रखते|



मगर अफ़सोस हमारा इरादा टूट गया'

उम्र भर साथ निभाने का वादा टूट गया



अय मेरे दोस्त नया घर तुझे मुबारक हो

नई दुनिया नया शहर तुझे मुबारक हो |



हमारा क्या है दिल पे एक जख्म और सही'

प्यार की… Continue

Added by jagdishtapish on August 19, 2010 at 10:33pm — 7 Comments

डॉन फ्रेजर तू उसी आस्ट्रेलिया की हैं ,

डॉन फ्रेजर तू उसी आस्ट्रेलिया की हैं ,
जो भारतीयों पर आतंकियों सा हमला करते हैं ,
तुम्हारे देश वाले शर्म से क्यों नहीं मरते हैं ,
शर्म हो तो फिर आवाज मत उठाना ,
तू बहिस्कार की बात करती हैं ,
मैं कहता हु तुम जैसे कायरो की जरुरत नहीं हैं ,
हिंदुस्तान अतिथियो को भगवान मानता हैं ,
तुम जैसे कायरो को दूर से सलाम करता हैं ,

Added by Rash Bihari Ravi on August 19, 2010 at 4:30pm — 2 Comments

अधिवक्ता और नेता

अधिवक्ता और नेता



"जिन्हें मालूम है गरीबों की झोपड़ी जली कैसे? वही पूछते हैं ये हादसा हुआ कैसे?"

ये पंकितियाँ किसी शायर के मन में उमड़े उस व्यंगात्मक पहलू को दर्शाती हैं की जानते हुए भी पूछते हैं. इन्होने चाहे जिस मंशा से लिखा हो पर एक अधिवक्ता के नाते में इन पंकित्यों को ऐसे देखती हूँ की जानते तो हैं पर बात की तह तक पहुचना चाहते हैं ताकि कोई निर्दोष महज शको - शुबहा के आधार पर दोषी ना घोषित हो जाये.

अधिवक्ता का अर्थ होता है अधिकृत वक्ता, जब हमें कोई व्यक्ति अधिकार देता है तो… Continue

Added by alka tiwari on August 19, 2010 at 4:30pm — 7 Comments

कहाँ जाएँगे

کهن جانگه



कहाँ जाएँगे



कश्ती मंझधार में है बचकर कहाँ जाएंगे

अब तो लगता है ऐ-दिल डूब जाएँगे

कोई आएगा बचाने ऐसा अब दौर कहाँ

अब तो चाहकर भी साहिल पे ना आ पाएँगे

हमनें सोचा था संवर जाएगी हस्ती अपनी

उनके दिल में ही बसा लेंगे बस्ती अपनी

इस भंवर में पहुँचाया हमें अपनों ने ही

अब इस तूफां से क्या खाक बच पाएँगे

अपनी बेबसी पे ऐ-कुल्लुवी क्या बहाएँ आंसू

वक़्त जो बच गया अब उसको कैसे काटूं

चंद लम्हों में यह 'दीपक' भी बुझ जाएगा

हम भी… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 19, 2010 at 4:19pm — 3 Comments

लुट सको तो लुट लो ,

वाह रे हिंद के लोकतंत्र ,

सब कुछ दिखा दिया ,

तेरे प्रतिनिधियों में भी ,

अब दिखने लगी एकता ,

हम सब समझते हैं,

कारण ?

लुट सको तो लुट लो ,

सदन में जो एक दुसरे को ,

बोलने नहीं देते ,

बच्चो सा लड़ते ,

मूर्खो सा हरकत करते ,

आज है हाथ मिलाते,

कारण ?

लुट सको तो लुट लो ,

वेतन की बात अच्छी हैं ,

सचिव से ज्यादा चाहिए ,

हम इसकी पहल करेंगे ,

मगर इमानदार बन के दिखाइए ,

आते फकीर, बन जाते अमीर,

कारण ?

लुट सको तो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 19, 2010 at 4:00pm — 6 Comments

मेरी ग़ज़ल

गमन पे उसके एक आवाज़ लगाई न गई |
हाय ये व्यथा, ये कथा जो सुनाई न गई||

लौट जाती वो, मुझे था यकीं, इस बात का भी|
हाय मज़बूरी,ज़बां पे बात ही लाई न गई||

पलों के साथ में कई सदियाँ जी लीं हमने|
एक छोटी बात की अलख, हमसे जगाई न गई||

कह दूँ मैं तो कहीं रुसवा न मुझसे हो बैठे|
ह्रदय की बात मुझसे, उसको बताई न गई||

अब तो मुझसे दूर, बहुत दूर जा चुकी है वो|
'दाग' पर याद की लगी ऐसी की मिटाई न गई||

आशीष यादव "राजा रुपर्शुखम"

Added by आशीष यादव on August 18, 2010 at 7:55pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
क्या बोलूँ..

क्या बोलूँ अब क्या लगता है..

चाहत में घन-पुरवाई है
किन्तु, पहुँच ना सुनवाई है
मेघ घिरे फिर भी ना बरसे तो मौसम ये लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?!

आस भरा 'थप-थप' चलता था
’ताता-थइया’ उठ गिरता था
आज पिघलती सड़कों पर निरुपाय खड़ा है, लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?!

ओढ़ गंध बन-ठन जाने का
शोर बहुत है खिल जाने का
लद गई उन्मन डाली भी यों कि अँदेसा लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?

Added by Saurabh Pandey on August 18, 2010 at 6:00pm — 5 Comments

कोन कहता

कोन कहता ज़िन्दगी इक गम का नाम है
दर्द मैं डूबी हुई दुखों की खान है
मेरी तरह जलो और रोशन करो दुनियां को
फिर देखो यह ज़िन्दगी कितनी हसीन ख्वाब है

दीपक शर्मा कुल्लुवी

09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 5:47pm — 3 Comments

दो छोटी कविताएँ

मैं
नदी का बहाव नहीं
ना वक्त
मेरी फितरत है
लौटता हूँ
नमी बन
रिसता हूँ
तुम्ही में

***

इधर कविता
पीर की परिधि पर
साकार हो
शब्दों में
भरती रही भाव;
उधर
एक जिंदगी
मेरी कविता को
आकार देती सी
एक
नवजात कविता
आँचल में संजोये,
एक और
नई कविता का
तलाशती धरातल
माथे पे ले तगारी
उतरती
उस गोल घुमावदार
सीढ़ियों से
किसी मौल के
***

Added by Narendra Vyas on August 18, 2010 at 4:27pm — 6 Comments

तन्हा तन्हा पाया

ग़ज़ल

تنهى تنهى بيا

तन्हा तन्हा पाया





न उसनें साथ निभाया

न इसने साथ निभाया

जब भी देखा दिल को अपनें

तन्हा तन्हा पाया

कहनें को तो सब थे अपनें

सब तो यही कहते थे

लेकिन जब भी मुड़कर देखा

साथ किसीको ना पाया

कद्र मेरे जज्वातों की

वोह क्या खाक करेंगे

जिनको मुहब्बत नफरत में

फर्क करना ना आया

कोन नहीं चाहता उनकी याद में

बनें ना यादगारें

हमनें अपनी यादों को

सबके दिल… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 3:36pm — 4 Comments

कितना बदल गया

कितना बदल गया



मेरा शहर कितना बदल गया

मेरे वास्ते अब क्या रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

न वोह मंजिलें न वोह रास्ते

जो कभी थे मेरे वास्ते

यहाँ लुट गया मेरा आशियाँ

यहाँ हमसफ़र न कोई रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

जो गुजर गया उसे भूल जा

मेरा दिल यह कहता है मान जा

यह वक़्त की सौगात है

मेरा वक़्त अच्छा ना रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

अब तो अजनवी सा लगे शहर

रिश्तों में घुल चुका ज़हर

कहने को सब अपनें हैं

अपनापन अब… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:41pm — 4 Comments

अफ़सोस

अफ़सोस

किनारों पे चलाना मुमकिन नहीं था
डूब जाएंगे हम यह डर था हमें
खुद हमनें किनारों पे मारी थी ठोकर
आज तलक रास्ता मिला ना हमें
हम अपनीं तवाही के कसूरबार खुद हैं
संभल ही सके ना यह ग़म है हमें
यादों के नश्तर तीखे बहुत हें
यह अपनें ही ग़म हैं मंज़ूर है हमें
देखते हैं आइना जब फुर्सत में हम
सोचते हैं अक्सर हुआ क्या हमें
जलाते रहो यूँ भी 'दीपक' हैं हम
और आपकी फ़ितरत का ईल्म है हमें

दीपक शर्मा कुल्लुवी

09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:26pm — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
6 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service