निवेदन:
आत्मीय !
वन्दे मातरम.
जन्म दिवस पर शताधिक मंगल कामनाएँ भाव विभोर कर गयी. सभी को व्यक्तिगत आभार इस रचना के माध्यम से दे रहा हूँ.
मुझसे आपकी अपेक्षाएँ भी इन संदेशों में अन्तर्निहित हैं. विश्वास रखें मेरी कलम सत्य-शिव-सुन्दर की उअपसना में सतत तत्पर रहेगी. विश्व वाणी हिन्दी के सभी रूपों के संवर्धन हेतु यथाशक्ति उनमें सृजन कर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता रहूँगा.
पाँच वर्ष पूर्व हिन्दीभाषियों की संख्या के आधार पर हिन्दी का विश्व में दूसरा स्थान था, अब सातवाँ है. कारण मात्र यह है कि हिन्दीभाषी अपनी मातृभाषा के रूप में हिंदी के रूपों (भोजपुरी, अवधी, बृज, मैथिली, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, शेखावाटी, काठियावाड़ी, हरयाणवी, कन्नौजी, बुन्देली, बघेली, उर्दू आदि) बताने लगे हैं. हिन्दी का कोई भी रूप अपने आप में विश्व भाषा बनने में सफल न हो सकेगा, किन्तु समस्त रूप मिलकर हिन्दी विश्व बन सकेगी.
दूसरी ओर समस्त ईसाई बन्धु, प्रशासक, अधिकारी और अंगरेजी माध्यम से शिक्षित युवा अंगरेजी को और मुस्लिम बन्धु उर्दू अपनी भाषा बता रहे हैं.इस स्थिति में अग्रेजीभाशियों की संख्या अधिक होने का कुतर्क देकर और जमीनी वास्तविकताओं को नज़रंदाज़ कर अंगरेजी को सरकारी काम-काज और संपर्क भाषा बनाने का प्रयास निरंतर बलवान हो रहा है.हम आज न सम्हाले तो अपने पाँव पर खुद कुल्हाडी मार लेंगे. हिंदी के विविध रूपों को अपनी पहचान हिंदी के अंग के रूप में बननी है, जैसे बच्चों की पहचान माता-पिता से होती है. मातृभाषा के रूप में हिन्दी ही लिखें. जरूरी लगे तो कोष्ठक में रूप विशेष लिखें अन्यथा रूप विशेष को हिंदी ही मानें. राजनेता दक्षिण में हिन्दी विरोध और उत्तर में हिन्दी के आंचलिक रूपों को अपने राजनैतिक स्वेथों का आधार बना रहे हैं. वे जन सामान्य को उकसा-भड़काकर अपने लिये मतों का जुगाड़ कर रहे हैं. हम साहित्यकारों को समर्पित भाव से हिन्दी में निरंतर श्रेष्ठ तथा सामयिक सृजन, अन्य भाषाओँ से / में अनुवाद तथा तकनीकी विषयों में लेखन के साथ-साथ नए शब्दों को गढ़ने का कार्य निरंतर करना होगा. अस्तु... रचना का आनंद लें :
गीत:
आपकी सद्भावना में...
संजीव 'सलिल'
*
आपकी सद्भावना में कमल की परिमल मिली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
उषा की ले लालिमा रवि-किरण आई है अनूप.
चीर मेघों को गगन पर है प्रतिष्टित दैव भूप..
दुपहरी के प्रयासों का करे वन्दन स्वेद-बूँद-
साँझ की झिलमिल लरजती, रूप धरता जब अरूप..
ज्योत्सना की रश्मियों पर मुग्ध रजनी मनचली.
हृदय-कलिका नवल आशा पा पुलककर फिर खिली.....
*
है अमित विस्तार श्री का, अजित है शुभकामना.
अपरिमित है स्नेह की पुष्पा-परिष्कृत भावना..
परे तन के अरे! मन ने विजन में रचना रची-
है विदेहित देह विस्मित अक्षरी कर साधना.
अर्चना भी, वंदना भी, प्रार्थना सोनल फली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
मौन मन्वन्तर हुआ है, मुखरता तुहिना हुई.
निखरता है शौर्य-अर्णव, प्रखरता पद्मा कुई..
बिखरता है 'सलिल' पग धो मलिनता को विमल कर-
शिखरता का बन गयी आधार सुषमा अनछुई..
भारती की आरती करनी हुई सार्थक भली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम
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