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बाल गीत: लंगडी खेलें..... -संजीव 'सलिल'

*

बाल गीत:



लंगडी खेलें.....



आचार्य संजीव 'सलिल'

*

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

एक पैर लें

जमा जमीं पर।

रखें दूसरा

थोडा ऊपर।

बना संतुलन

निज शरीर का-

आउट कर दें

तुमको छूकर।

एक दिशा में

तुम्हें धकेलें।

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

आगे जो भी

दौड़ लगाये।

कोशिश यही

हाथ वह आये।

बचकर दूर न

जाने पाए-

चाहे कितना

भी भरमाये।

हम भी चुप रह

करें… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2010 at 10:18pm — 6 Comments

रंगीन आतंकवाद

रंगीन आतंकवाद





'जननी जन्म भूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसि' कि भावना से ओत-प्रोत एक युवा, सन्यासी,स्वामी विवेकानंद ने शिकागो कि धरती पर विश्व धर्म सम्मेल्लन में अपने व्याख्यान का प्रारंभ "DEAR SISTER AND DEAR BROTHER ...." से करके पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व के भाव से हिंदुस्तान का परचम लहराने वालI सन्यासी उस समय अपने भगवा वस्त्र में हिदुस्तान का मुकुट बना चमक रहा था,जिसे याद करके आज भी करोनो युवा उत्साह और स्फूर्ति व् नए उमंग से भर जाते हैं. उस सन्यासी, युवा को क्या पता था कि आगामी… Continue

Added by alka tiwari on September 1, 2010 at 5:42pm — 3 Comments

पगली

------- पगली -----ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है

कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है |



...एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का

न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का

साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी

अभी-अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी

वो कालेज में पढ़ने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी

कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी

प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई

लूट लिया सब कुछ… Continue

Added by jagdishtapish on September 1, 2010 at 11:51am — 4 Comments

जन्माष्टमी पर विशेष : नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

जन्माष्टमी पर विशेष : नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

मथुरा में कंस की दुष्टता दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। उसके अत्याचारों से त्रस्त जनता भगवान से नित्य प्रार्थना करने लगी। एक दिन आकाशवाणी हुई कि देवकी और वसुदेव की आठवी संतान कंस का सर्वनाश करेगी। इसके बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को करागार में बंदी बना कर रख दिया। अब उनकी जो भी संतान होती उसे कंस मार डालता। परन्तु देवकी और वसुदेव ने यह निश्चय कर लिया था। कि वे अपनी आठवी संतान को जरुर बचायेंगे।… Continue

Added by Jaya Sharma on September 1, 2010 at 8:30am — 5 Comments

बहुत है...............

आजकल रातों के सन्नाटे मे भी शोर बहुत है...........



शाम ढली नही फिर भी अंधेरा घोर बहुत है...........









सुना था मोहब्बत पत्थर को मोम कर देता है..........





लगता है बस इक तेरा ही दिल कठोर बहुत है..............







अपने अपने दिल को रखना यारों संभाल के.............



इस शहर मे आजकल घूम रहे हँसी चोर बहुत है...............







लगता है आज फिर टपकेंगी बस्ती की कई छतें...................



आसमान… Continue

Added by Pallav Pancholi on September 1, 2010 at 12:07am — 1 Comment

"मेरा बेबस प्यार"







अब नहीं याद मुझे वो शैदाई ख्वाब, ऐ बेवफा सनम...

जिसमें तेरी आँखों में जन्नत नज़र आया करती थी...

जिसमें तेरी साँसों की गर्मी से मेरी ठिठुरन जाया करती थी...

जिसमें होती थी रौशन रोज़ चांदनी रातें...

जिसमें तेरी मेरी धड़कन कुछ बहक सी जाया करती थी...



अब नहीं मज़ा देती वो पूर्णमासी की रातें...

जिसमें सारी रात चंदा निहारते बीत जाया करती थी...

जिसमें जुगनुओं की चमक से आँखें चौंध जाया करती…
Continue

Added by Julie on August 31, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

वो जमाना याद हैं तेरा बन ठन के आना याद हैं ,

वो जमाना याद हैं तेरा बन ठन के आना याद हैं ,

नहीं कटती थी छन मेरे बिना तेरा ये कहना याद हैं ,



साम को मिलते हो जाती थी रात यु ही बातो में ,

नहीं लगता था ये दुरी होगी अपनी मुलाकातो में ,



तेरी वादा वो सारी कसमे टीस देती हैं यादो में ,

तड़प रहा हु मैं रिम झिम रिम झिम भादो में ,



तेरे संग जो देखि बहारें आज ओ पतझर लगती हैं ,

तेरे संग बीते लम्हे आज हमको यु ही डसती हैं ,



करो तू मुझपे मेहरबानी मेरी यादो से चली जाओ ,

अब आई जो तेरी यादें… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 31, 2010 at 8:30pm — No Comments

जिंदगी एक खुली किताब !!!

जिंदगी एक खुली किताब है,
फिर भी ये किताब खुद के पास हो,
बेहतर
जो जाने कीमत इसकी,
जो जाने इज्जत इसकी,
जो इसके पन्नो का मोल समझे,
ये किताब हो तो उसके पास हो,

जो सर से लगाये यू ,
सरस्वती का वास हो,
भला हो या बुरा हो ,
अपना समझ कर जो माफ़ करे,
कुछ सीख नयी हो सीखलाने की,
दे वो सीख मृदुल मुस्कान से ,
जिंदगी की वो खुली किताब,
हो तो उसके पास हो |

Added by Dr Nutan on August 31, 2010 at 8:00pm — 13 Comments

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामना ,

सुनो सुनो एक बात हमारी,

राधा किशन की हैं प्रेम कहानी ,

एक बार निकली राधा बन ठन के ,

सर पे दही साथ सखियन के ,

रास्ते में श्याम मिला की उनसे जोड़ा जोड़ी ,

राधा को उसने छेड़ा सखियो को यू ही छोड़ी ,

सुनो सुनो एक बात हमारी,

राधा किशन की हैं प्रेम कहानी ,

बंशी की तान बिना रहती परेशान ओ ,

सुनती जो तान ओ खो देती ज्ञान ओ ,

उनको भी कभी ना रहता था चैन ,

मौका मिले सखी सब को करते बेचैन ,

सुनो सुनो एक बात हमारी,

राधा किशन की हैं प्रेम कहानी… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 31, 2010 at 8:00pm — 2 Comments

क्यों आखिर हम क्यों सहे , अपने तिरंगा का अपमान ,

क्यों आखिर हम क्यों सहे ,

अपने तिरंगा का अपमान ,

भाई आप लोग छोर दो ,

तिरंगा पार्टी हित बेवहार ,

कही पड़ा रहता हैं ये ,

एक छोटे डंडे के साथ ,

उसपे कोई तस्बीर होती हैं ,

फुल होती हैं या हाथ ,

मगर समझ में तब आता हैं ,

जब जाते हैं हम पास ,

ओह तिरंगा नहीं हैं अपना ,

ऐसा सोच होता उसका अपमान ,

क्यों आखिर हम क्यों सहे ,

अपने तिरंगा का अपमान ,

अरे ओ बुधजिवी ध्यान तो दो ,

आपमान करो ना तिरंगे का ,

देश हित में बदल दे अपना… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 30, 2010 at 2:00pm — No Comments

मन के बाते मान कर करना तू सब काम ,

मन की बाते मान कर करना तू सब काम ,

मन पे तू जो छोड़ेगा माया मिलेगी या राम ,



मय के चक्कर में पड़ा हैं सारा ये संसार ,

मय तो ऐसी डायन हैं जो कर देगी बेकार ,



माँ बाप को छोड़ कर जो बने ससुराल की शान ,

उसकी हालत ऐसी होए जैसे कुकुर समान ,



मेरी बात जो बुरी लगे लेना गांठ तू बांध ,

काम वो कभी ना करना जिससे हो अपमान ,



पैसे के पीछे सभी भागे पैसा बना अनमोल ,

रिश्ता नाता ख़त्म हुआ अब हैं पैसों का बोल ,



नेता लोग को हम चुन दिए… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 30, 2010 at 1:30pm — 1 Comment

उसने जो नाम ले के इक बार क्या पुकार लिया

उन्हें खबर नहीं के दर्द कब उभरता है --

किसकी यादों की रहगुजर से कब गुजरता है --

जख्म भरने की कोशिशों में उम्र बीत गई --

एक भरता है तो फिर दूसरा उभरता है --|





इक अजनबी चुपके से मन के द्वार आ गया --

पागल हुआ मन और उनपे प्यार आ गया

उसने जो नाम ले के इक बार क्या पुकार लिया

हमको लगा के मिलन का त्यौहार आ गया |





जो शौक से पाले जाते हैं वो दर्द नहीं कहलाते हैं --

जो दर्द हबीब से मिलते हैं वो दर्द ही पाले जाते हैं

जब टूट जाये उम्मीद… Continue

Added by jagdishtapish on August 29, 2010 at 8:12pm — 2 Comments

हड़ताल एक यज्ञ है

मित्रों ......
हड़ताल एक यज्ञ है
कर्मचारियों द्वारा लगाया गया नारा
घी और हुमाद
हडताली नेताओं के भाषण
वेदों के मंत्रोच्चार
उठने वाला धुयाँ
वार्ता के लिए बुलाया जाना
और मांगों को मनवा लेना
अभिस्ट की प्राप्ति ॥

चिल्ला रहा था
कर्मचारियों का नेता
इसलिए दोस्तों
जोर-जोर से नारे लगाओ ॥

जब लाल कोठी के निक्क्मो का वेतन
तिगुना हो सकता है ....
हमलोगों का क्यों नहीं ॥

Added by baban pandey on August 28, 2010 at 5:39pm — 2 Comments

बाल गीत: माँ का मुखड़ा -- संजीव वर्मा 'सलिल'

बाल गीत



माँ का मुखड़ा



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

मुझको सबसे अच्छा लगता -

अपनी माँ का मुखड़ा!

*

सुबह उठाती गले लगाकर,

नहलाती है फिर बहलाकर,

आँख मूँद, कर जोड़ पूजती ,

प्रभु को सबकी कुशल मनाकर. ,

देती है ज्यादा प्रसाद फिर

सबकी नजर बचाकर.



आँचल में छिप जाता मैं ज्यों

रहे गाय सँग बछड़ा.

मुझको सबसे अच्छा लगता -

अपनी माँ का मुखड़ा.

*

बारिश में छतरी आँचल की ,

ठंडी में गर्मी दामन की.,

गर्मी में… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 28, 2010 at 5:19pm — 4 Comments

अहिंसा का यथार्थ स्वरूप

सामान्यतया अहिंसा का अर्थ कायरता से लगाया जाता है..जबकि अहिंसा का वास्तविक अर्थ होता है निडरता | दूसरे अर्थों में कहूँ तो 'अभय', जो भयजदा नहीं हो और ये ही निडरता ही नैतिकता का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है. इंसान का निडर होना उसका सबसे अहम् गुण होता है. निडर और अभय व्यक्ति ही स्वतंत्र हो सकता है. हिंसक व्यक्ति सदा स्वयं को असुरक्षित और तनावग्रस्त महसूस करते हैं, साथ ही अप्रिय भी होते हैं। भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस हिंसावादी नहीं थे..निडर थे..अभय थे..अपने आपको कभी परतंत्र नहीं समझा और इसी विचार को… Continue

Added by Narendra Vyas on August 28, 2010 at 4:27pm — 3 Comments

युवा मन की ख्वाहिसे

लाखों पैदा हो रहे युवाओं में से

मैं भी एक युवा हू ॥



गन्ने के रस से नहा कर

और चासनी की क्रीम लगाकर

रोज सुबह -सुबह

बाहर निकलती है मेरी ख्वाबें॥

जब मैं अपने सारे सर्टिफिकेट

एक बैग में डाल कर

निकल पड़ता हू ...

साक्षात्कार के लिए ॥



खूब उडती है मेरी ख्वाबें

मानो कल ही खरीद लूँगा

पार्क स्ट्रीट में अपना एक बंगला

मारुती सुजुकी का डीजायर

सोनी बाओ का लैप -टॉप

ब्लैक -बेर्री का मोबाइल

और फिर चखने लगूगा

येलो चिली… Continue

Added by baban pandey on August 28, 2010 at 1:30pm — 2 Comments

कुछ तो हूँ कुछ नहीं हूँ मैं

कुछ तो हूँ कुछ नहीं हूँ मैं
चंद लम्हों कि रुत नहीं हूँ मैं


मुझको सजदा करो ना पूजो तुम
संगमरमर का बुत नहीं हूँ मैं |


मेरे नीचे है अँधेरे का वजूद
शाम से पहले कुछ नहीं हूँ मैं |


यूँ ना तेवर बदल के देख मुझे
जिंदगी तेरा हक नहीं हूँ मैं |


बेखुदी में तपिश ये आलम है
वो खुदा है तो खुद नहीं हूँ मैं |

मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से

Added by jagdishtapish on August 28, 2010 at 10:17am — 3 Comments

::::: हाँ बूढा हूँ, पर अकेला नहीं ::::: ©



► Photography by : Jogendra Singh ( all the photographs in this picture are taken by me ) ©



::::: हाँ बूढा हूँ, पर अकेला नहीं ::::: © (मेरी नयी कविता)

जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 27 अगस्त 2010 )

Note :- ऊपर एक पंक्ति चित्र के नीचे दब गयी है उसे यहाँ पूरा लिखे दे रहा हूँ ►

►►►

"क्षितिज रेखा से झाँकना सूरज का ...

छिटका रहा है सूरज ...

रक्तिम बसंती आभा ..."

►►► शब्द सुधार --> गदर्भ =… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 27, 2010 at 10:00pm — 2 Comments

कलियुग में भी सतयुग !

सुना है

सभ्यता सबसे पहले

यहीं आई,

पड़ी है अब खंडहरों सी

पिछवाड़े में जमीन्दोस है

खुदाई में दिखती है

शर्म खरपतवार सी

बेशर्मी की

हरीभरी क्यारियों में

अपने वजूद को रोती है

इंसानियत

चेहरों की हवाइयों सी उड़

उलटी जा लटकी

अँधेरी सुरंग में



सच तो अब

पन्नो में ही पलता है

इंसान

मरने से पहले

जिन्दा जलता है

रिअलिटी का तो अब,

सिर्फ शो होता है

परिवार तो

हम और

हमारे दो होता है

मातृत्व… Continue

Added by Narendra Vyas on August 27, 2010 at 8:30pm — 5 Comments

अंकुरण



▬► Photography by : Jogendrs Singh ©



::::: अंकुरण ::::: Copyright © (मेरी नयी कविता)

जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 10 अगस्त 2010 )



(सामान्य जीवन में अच्छे या बुरे का चरम बहुधा नहीं हुआ करता है.. परन्तु यह भी तो देखिये कि यहाँ मानव मन को अभिव्यक्त किया गया है, जिसकी सोचों का कोई पारावार नहीं होता.. जितना सोच जाये वही कम है.. सीमा बंधन सोचों के लिए बने ही नहीं हैं.. फिर लिखते वक्त मेरे मन में अपने मित्र सी हुई बातचीत थी… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 26, 2010 at 11:00pm — 10 Comments

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