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मुक्तिका संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:     - संजीव 'सलिल'


*
नैन
बैन.

नहीं
चैन.

कटी
रैन.

थके
डैन.

मिले
फैन.

शब्द
बैन.

चुभे
सैन.

*

16 december 2010

Added by sanjiv verma 'salil' on July 25, 2011 at 8:46am — 3 Comments

ग़ज़ल : लाश तेरी यादों की

लाश तेरी यादों की मैं न छोड़ पाता हूँ

रोज दफ़्न करता हूँ रोज खोद लाता हूँ



जो रकीब था कबसे बन गया खुदा मेरा

रोज सर कटाता हूँ रोज सर झुकाता हूँ…



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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 24, 2011 at 3:30pm — 3 Comments

बरखा बहार आयी

बरखा  बहार आयी :-

                                              याद तुम्हारी सतायेंगी
                                              जब बुँदे बरसेंगी सावनकी 
                                              आसूओंकी धारओंका 
                                              साथ निभाएंगी…
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Added by Mohini Dhawade on July 24, 2011 at 3:18pm — No Comments

ग़ज़ल

             ग़ज़ल 



लगती है बाज़ार गुज़रते हैं आदमीं 

हर रोज़ बिकने खड़े होते हैं आदमीं 



उठते हैं हर सुबह जाने क्या सोचकर 

इस पेट के आगे पर झुकते  हैं आदमीं 



तपती दोपहरी में जब लगती है प्यास 

बुझे ए कैसे यही सोचते हैं आदमीं …



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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 24, 2011 at 9:47am — 2 Comments

मुक्तिका: जानकर भी... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                              

जानकर भी...

संजीव 'सलिल'

*

रूठकर दिल को क्यों जलाते हो?

मुस्कुराते हो, खूब भाते हो..



एक झरना…

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Added by sanjiv verma 'salil' on July 24, 2011 at 9:00am — 1 Comment

घनाक्षरी सलिला : छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग. संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी सलिला :

छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.

संजीव 'सलिल'

*

अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.

बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..

बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.

भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..

*

नवी रीत बनन दे, नीक न्याब चलन दे, होसला ते बढ़न दे, कउवा काँव-काँव.

अगुवा के कोचिया, फगुवा के लोटिया, बिटिया…

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Added by sanjiv verma 'salil' on July 22, 2011 at 8:00am — 5 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - छग के जगदलपुर में एसीबी के शिकंजे में आए करोड़पति अफसर।

पहारू - देखते रहो, कुछ और धनपशु का अवतार आने वाले दिनों में होगा।





2. समारू - वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सली पश्चाताप कर रहे हैं।

पहारू - उनकी घर वापसी ही पश्चाताप हो सकता है।





3. समारू - वोट के बदले नोट मामले में परत-दर-परत खुलासा हो रहा है

पहारू - अभी तो सूत्रधार का सींखचों के पीछे आना बाकी है।





4. समारू - छग के एसपीओ बेरोजगार नहीं होंगे।

पहारू - ऐसा होता… Continue

Added by rajkumar sahu on July 21, 2011 at 10:35pm — No Comments

गुरु जी की दो कवितायेँ ...

"एक"

वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,

अंधे का पुत्र अंधा द्रोपदी जो बोल दिया ,
वही शब्द बन गए महाभारत की…
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Added by Rash Bihari Ravi on July 21, 2011 at 6:00pm — 2 Comments

कृषि व औद्योगिक नीति, बढ़ेगा टकराव

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और व्यापक धान पैदावार के लिए अभी हाल ही में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने ‘छग सरकार’ को सम्मानित किया है। निश्चित ही यह कृषि क्षेत्र में देश में एक अलग पहचान बनाने वाले राज्य के लिए गौरव की बात है, मगर प्रदेश के कई जिलों में जिस तरह कृषि रकबा को तहस-नहस कर औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह कृषि प्रधान प्रदेश के किसानों के बेहतर भविष्य निर्माण करने वाला साबित नहीं हो सकता ? यही कारण है कि अधिकांश इलाकों में औद्योगीकरण के खिलाफ किसान मुखर हो गए हैं और… Continue

Added by rajkumar sahu on July 21, 2011 at 4:57pm — No Comments

"व्यथा"

                    "व्यथा" 
ज़िन्दगी के सफ़र में ऐसा क्या ये हुआ 
ये कदम थे रुके मेरे, वक़्त चलता रहा 
जाने रूठा है मुझसे मेरा आईना …
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 1:46pm — 2 Comments

चल रहा आदमी

        "चल रहा आदमी"

वक़्त  के हासिए पर लटक रहा आदमी

कभी इधर, कभी उधर चल रहा आदमी
 
जाने क्या बात है उनके दिलों में 
 चेहरों पे नकाब ले चल रहा आदमी 
उठतीं हैं हिलोरें समुन्दर में…
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 11:24am — 3 Comments

व्यंग्य - कृपापात्र आशीर्वाद का प्रतिफल

बड़ों के आशीर्वाद की अहमियत जमाने से है और जमाने तक रहेगा, क्योंकि बड़ों की कृपा बिना संभव ही नहीं कि आप फर्श से अर्श तक पहुंच पाएं। अधिकतर यह सुनने को मिलते रहता है कि फलां के आशीर्वाद से ही गगनचुंबी सफलता मिली और एक नई इबारत लिखने का अवसर मिला। मैं भी समझता हूं कि आशीर्वाद की भूमिका हर जगह है। इतना मान लीजिए कि आशीर्वाद है, तो आप हैं। इसके इतर बात करें तो एक आशीर्वाद का दस्तूर भी बरसों से चली आ रही है, वह है कृपापात्र आशीर्वाद। इसके बगैर तो आप एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते, सफलता की बात सोचने के… Continue

Added by rajkumar sahu on July 20, 2011 at 9:23pm — No Comments

शोर-ए-दिल

वो मेरे पास, जाने क्यूँ, दबे-पाँव से आते हैं |

यही अंदाज़ हैं उनके, जो मेरा दिल, चुराते हैं ||



वो जब पहलू बदलते हैं, कभी बातों ही बातों में |

मुझे महसूस होता है, की वो कुछ कहना चाहते हैं ||



इरादा जब भी करता हूँ, मैं हाल-ए-दिल सुनाने का |…

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Added by Shashi Mehra on July 20, 2011 at 8:30pm — 1 Comment

दीवाना बना कर चली गयी

कोई  आई  और  मुझे   दीवाना   बना   कर   चली   गयी  

साँसों   में    मेरी   घुल   गई  

आँखों  में  मेरी  घर  कर  गयी 

दिल  के  आंगन  में  आशियाँ    बना  के  बस  गयी | 



 

 

उसे   ढूँढूं   कहाँ  में   यूँ   गलियों  में …

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Added by Rohit Dubey "योद्धा " on July 20, 2011 at 2:43pm — 2 Comments

चाँद उतर आएगा...

 

 

 

 

 

 

 

 

सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था  

कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद

कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ…

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Added by Veerendra Jain on July 20, 2011 at 12:59pm — 10 Comments

दोहा सलिला: यमक झमककर मोहता --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: यमक झमककर मोहता --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

यमक झमककर मोहता

--संजीव 'सलिल'

*

हँस सहते हम दर्द नित, देते हैं हमदर्द.

अपनेपन ने कर दिए, सब अपने पन सर्द..

पन =… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 20, 2011 at 7:10am — 5 Comments

जिसकी ख़ातिर ख़्वाब जवाँ

जिसकी ख़ातिर ख़्वाब जवाँ,

उसे तलाशूँ कहाँ कहाँ,



लाख छुपाऊँ अश्कों को,

चेहरे से है दर्द अयाँ,



सौ शहरों में घूम लिया,

नहीं मिला है एक मकाँ.



कितना तल्ख़ सफ़र काटा,

उखड़ी साँसें घायल पाँ,



चाहत में क्या क्या गुज़री,

रिसते छालें करें बयाँ,



दिल रोशन सा एक दिया,

आज उगलता एक धुआँ.



खुशियों की यूँ शाम हुई,

खूँ में डूबा आज समाँ



तेरी यादों की माला,

टूटी बिखरी यहाँ…

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Added by इमरान खान on July 19, 2011 at 7:30pm — 1 Comment

खामोश

यहां क्रांति की तैयारी चल रही है-

कोनों में दुबक कर

वे जोर से गरजते हैं

नारे की गरजना से

थरथराने लगता है सामने वाला

वे अपने मूंह में तोप फिट कर लिये हैं,

गरजने के लिए.

चुप रहो !

वे क्रांति की तैयारी कर रहे हैं.

देखते नहीं, वे अपना रायफल बंधक रख दिये हैं

पत्नी के गहने जो खरीदने हैं.

अरे, वो देखो वे कहीं जा रहे हैं.

चुप, इतना भी नहीं समझता,

मंत्री जी की अगुवानी मंे हैं.

अपने बेटे को विदेश जो भेजना है.

कल तक गरीब थे

-तो रहा… Continue

Added by Rohit Sharma on July 19, 2011 at 3:41pm — 1 Comment

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