हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : २
रीवानरेश श्री रघुराज सिंह विरचितं नर्मदाष्टकं
गिरींद्र मेकलात्मजे गिरीशरूपशोभिते, गिरीशभावभाविते सुरर्षिसिद्धवंदिते.
अनेकधर्मकर्मदे सदानृणा सदात्मनां, सुरेंद्रहर्षसंप्रदे, नमामि देवी नर्मदे .१.
रसालताल सुप्रियाल, संविशालमालिते, कदंब निंब कुंद वृंद, भृंगजालजालिते.
शरज्जलाभ्रसंप्लवेह्य, घघ्नजीवशर्मदे, विषघ्नभूषसुप्रिये, नमामि देवी नर्मदे .२.
मलात्मनां घनात्मनां, दुरात्मनां शुचात्मनां, मजापिनां प्रतापिनां प्रयापिनां सुरापिनां.
अनिष्टकारिणां वनेविहारिणां प्रहारिणां, सदा सुधर्म वर्मदे, नमामि देवी नर्मदे .३.
वलक्षलक्षलक्षिते सकच्छकच्छपान्विते, सुपक्षपक्षिसच्छ्टे ह्यरक्षरक्षणक्षमे.
मुदक्षदक्षवांक्षिते विपक्षयक्षपक्ष्दे, विचक्षणक्षणक्षमे, नमामि देवी नर्मदे .४.
तरंगसंघसंकुले वराहसिंहगोकुले, हरिन्मणीन्द्रशाद्वले प्रपातधारयाकुले.
मणीन्द्रनिर्मलोदके फणीन्द्रसेंद्रसंस्तुते, हरेस्सुकीर्तिसन्निभे, नमामि देवी नर्मदे .५.
पुराणवेदवर्णिते विरक्तिभक्तिपुण्यदे, सुयागयोग सिद्धिवृद्धिदायिके महाप्रभे.
अनन्तकोटि कल्मशैकवर्तिनां समुद्धटे, समुद्रके सुरुद्रिके, नमामि देवी नर्मदे .६.
महात्मनां सदात्मनां, सुधर्मकर्मवर्तिनां, तपस्विनां यशस्विनां मनस्विनां मन:प्रिये.
मनोहरे सरिद्वरे सुशंकरेभियांहारे,धराधरे जवोद्भरे, नमामि देवी नर्मदे .७.
शिवस्वरूपदयिके, सरिदगणस्यनायिके, सुवान्छितार्थधायिके, ह्यमायिकेसुकायिके.
सुमानसस्य कायिकस्य, वाचिकस्य पाप्मान:, प्रहारिके त्रितापहे, नमामि देवी नर्मदे .८.
रेवाष्टकमिदं दिव्यं, रघुराजविनिर्मितं, अस्य प्रपठान्माता नर्मदा मे प्रसीदतु.
मितेसंवत्सरेपौषे, गुणब्रम्हनिधींदुभि:, सितेसम द्वितीयायां निर्मितां नर्मदाष्टकं... ९.
इति रीवानरेश श्री रघुराज सिंह विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
रीवानरेश श्री रघुराज सिंह रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'
हे कन्या गिरीन्द्र मेकलकी!, हे गिरीश सौंदर्य सुशोभा!!,
हे नगेश भाव अनुभावित!, सुर-ऋषि-सिद्ध करें नित सेवा.
सदा सदात्मा बनकर नरकी, नाना धर्म-कर्म की कर्ता!!.
हर्ष प्रदाता तुम सुरेंद्रकी, नमन हमारा देवि नर्मदा.१.
मधुर रसभरे वृक्ष आम के, तरुवर हैं सुविशाल ताल के.
नीम, चमेली, कदमकुञ्ज प्रिय, केंद्र भ्रमर-क्रीडित मराल से.
सलिल-शरद सम सदा सुशीतल, निर्मल पावन पाप-विनाशक.
विषपायी शिवशंकर को प्रिय, नमन हमारा देवि नर्मदा.२.
घातक, मलिन, दुष्ट, दुर्जन या, जपी-तपी, पवन-सज्जन हों.
कायर-वीर, अविजित-पराजित, मद्यप या कि प्रताड़ित जन हों.
अनिष्टकारी विपिनबिहारी, प्रबलप्रहारी सब जनगण को.
देतीं सदा सुधर्म कवच तुम, नमन हमारा देवि नर्मदा.३.
अमल-धवल-निर्मल नीरा तव, तट कच्छप यूथों से भूषित.
विहगवृंदमय छटा मनोहर, हुए अरक्षित तुमसे रक्षित.
मंगलहारी दक्षप्रजापति, यक्ष, विपक्षी तव शरणागत.
विद्वज्जन को शांति-प्रदाता, नमन हमारा देवि नर्मदा.४.
जल-तरंगके संग सुशोभित, धेनु वराह सिंहके संकुल.
मरकत मणि सी घास सुकोमल, जलप्रपात जलधार सुशोभित.
मनहर दर्पण उदक समुज्ज्वल, वंदन करें नाग, सुर, अधिपति.
हो श्रीहरिस्तुति सी पावन, नमन हमारा देवि नर्मदा.५.
वेद-पुराणों में यश वर्णित, भक्ति-विरक्ति पुण्य-फलदायिनी.
यज्ञ-योग-फल सिद्धि-समृद्धि, देनेवाली वैभवशालिनी.
अगणित पापकर्मकर्ता हों, शरण- करें उद्धार सर्वदा-
उदधिगामिनी, रूद्रस्वरूपा, नमन हमारा देवि नर्मदा.६.
करें धर्ममय कर्म सदा जो, महा-आत्म जन आत्मरूप में.
तपस्वियों को, यशास्वियों को, मनस्वियों को, प्रिय स्वरूपिणे!.
मनहर पावन, जन-मन-भावन, मंगलकारी भव-भयहारी.
धराधार हे! वेगगामिनी, नमन हमारा देवि नर्मदा.७.
श्रेष्ठ सुसरिता, नदी-नायिका, दात्री सत-शिव-सुंदर की जय.
मायारहित, सुकायाधारिणी,वांछित अर्थ-प्रदाता तव जय!!.
अंतर्मन के, वचन-कर्म के, पापों को करतीं विनष्ट जो-.
तीन ताप की हरणकारिणी, नमन हमारा देवि नर्मदा.८.
रीवा-नृप रघुराज सिंह ने, संवत उन्नीस सौ तेरह में.
पौष शुक्ल दूजा को अर्पित, किया शुभ अष्टक रेवा पद में.
भारत-भाषा हिंदी में, अनुवाद- गुँजाती 'सलिल' लहर हर.
नित्य पाठ सुन देतीं शत वर, नमन हमारा देवि नर्मदा.९.
श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.
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