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February 2013 Blog Posts (194)

अनजान मंजिल

चला जा रहा हूँ इस निर्जन पथ पर

अनजानी डगर है मंजिल अनजान

फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ

...........................................

आँधियों के थपेड़ो ने डराया मुझको

गरजते बादलो ने दहलाया दिल को

फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ

..........................................

भटक रहा कब से पथरीली राहों पर

पथिक हूँ अनजान कंटीली राहों का

फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ

............................................

आसन नही चलना हो कर जख्मी…

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Added by Rekha Joshi on February 23, 2013 at 3:20pm — 7 Comments

शोर

जिसने खुद को ही, ज़माने से छुपा रखा है |

जाने किस शख्स ने नाम उसका, खुदा रखा है ||

सब बहाने से उसे, याद किया करते हैं |

दिल में दुनियाँ के, अजाब खौफ बिठा रखा है ||

हाथ तकदीर बनाने के ही, काम आते हैं |

क्या हथेली की लकीरों में, भला रखा है ||…

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Added by Shashi Mehra on February 23, 2013 at 2:02pm — 7 Comments

कटोरा

कटोरा

शादी मै लड़के के पिता ने दिखाया तेज,

माँगा भारी भरकम दहेज़,

गाड़ी एल इ डी सोना चाँदी की सूची थमाई,

डायमंड रिंग से होगी सगाई,

लड़की को ये बात न हुई गवारा,

चढ़ गया उसका पारा,

दहेज़ की बात ने उसको झकझोरा,

उसने लड़के के बाप को थमाया कटोरा,

कृपया रुखसत हों,,

इसी में समझदारी

आप रिश्ते योग्य नहीं,,

आप है भिखारी 

Dr.Ajay.Khare Aahat

Added by Dr.Ajay Khare on February 23, 2013 at 1:30pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बेटियाँ (कुछ दोहे )

घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल| 

दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||

बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|

बेटी से बेटे मिलें  ,बेटा आँखें खोल||

घर की रौनक…

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Added by rajesh kumari on February 23, 2013 at 10:33am — 15 Comments

हैदराबाद से - एक ग़ज़ल !!!

आँख जैसे लगी, ख़ाक घर हो गया

जुल्म का प्रेत कितना निडर हो गया ।



कुछ दरिन्दों ने ऐसी मचाई गदर

खौफ की जद में मेरा नगर हो गया ।



थी किसी की दुकाँ या किसी का महल

चन्द लम्हों में जो खण्डहर हो गया ।



है नजर में महज खून ही खून बस

आज श्मसान 'दिलसुखनगर' हो गया ।



थी ख़बर साजिशों की मगर, बेखबर !

ये रवैया बड़ा अब लचर हो गया ।



कौन सहलाये बच्चे का सर तब 'सलिल'

जब भरोसा बड़ा मुख़्तसर हो गया ।



------  आशीष 'सलिल'…

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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 22, 2013 at 10:00pm — 24 Comments

बोल क्या कमी रही....

हर राह पर तेरी रजा

तू ही सनम तू ही खुदा

तो क्यों ही तेरे फैसलों पे

धूल सी जमी रही

बोल क्या कमी रही



क्यों ही तेरे दिल में वो, गैर ही बसा रहा,

क्यों लचकती बांह में गुल वही कसा रहा|

मैं भी तो पलाश बन बिछा था तेरी राह में,

मैं भी तो बहार सब लुटा रहा था चाह में|

क्यों दुआ में जागती

फिर आँख में नमी रही

बोल क्या कमी रही?



कैसे तेरे दिल से मैं नाम उसका खींच लूं,

या कि अपनी चाहतों के मैं गले ही भींच दूं|

तू देख मेरे हाथ…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on February 22, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी

+++++++++++++++++++++++++++++++++++

राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी 

मजहब के मंदिर मस्जिद पर बलि का बकरा आम आदमी ||

राजतंत्र के भ्रष्ट कुएं में पनपे ये आतंकी विषधर 

विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||



क्या है हिन्दू, क्या है मुस्लिम क्या हैं सिक्ख इसाई प्यारे 

लहू एक हैं - एक जिगर है एक धरा पर बसते सारे 

एक सूर्य से रौशन यह जग , एक चाँद की…

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Added by Manoj Nautiyal on February 22, 2013 at 4:14pm — 4 Comments

काशीनामा - प्रसाद प्रतिमा , स्पंदन और हिंदी गौरव !

                    त बीस फरवरी २०१३ का दिन बनारस के लिए ख़ास रहा । कालजयी  "कामायनी" के रचनाकार महाकवि जयशंकर प्रसाद की काशी में अबतक कोई प्रतिमा नहीं थी , उसका अनावरण हुआ । काव्य केन्द्रित पत्रिका " स्पंदन " का प्रकाशन प्रारंभ…
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Added by Abhinav Arun on February 22, 2013 at 9:00am — 12 Comments

शीशे में देखकर चेहरा

शीशे  में देखकर चेहरा ;बार -बार लजाये हैं ।

 कभी काजल, कभी बिंदिया बार -बार सजाये हैं ॥ 

***********************************************

सोचते  अपने दिल से ;दुनिया की नजर रहे।

 बहुत मिहनत…

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Added by श्रीराम on February 22, 2013 at 8:30am — 4 Comments

मेरे प्रियतम!

हे मेरे प्रियवर,हे मेरे प्रियतम !

ये अद्भुत सृष्टि और तुम अनुपम।

 

स्वप्न सुन्दर,सुमन सुन्दर,

किन्तु तुम सबसे सुन्दरतम।

गगन सुन्दर,नयन सुन्दर,

किलोलें करते ये हिरन सुन्दर।

नेत्रों की ये प्यास मधुर ,

और तुम सबसे मधुरतम।

हे मेरे प्रियवर,हे मेरे प्रियतम!

ये अद्भुत सृष्टि और तुम अनुपम।

 

रैन प्यारी,बैन प्यारे,

प्यारे ये आकाश के तारे,

प्यारे ये जल के फुब्बारे ,

और तुम सबसे अधिकतम।

हे मेरे प्रियवर,हे मेरे…

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Added by Savitri Rathore on February 22, 2013 at 12:00am — 10 Comments

कुछ चट-पटॆ शेर

==========================

कुछ चट-पटॆ शेर = मगर बड़ॆ दिलॆर ,,,,,

==========================

एक मुशायरा कराया था,बाज़ कॆ बाप नॆ !!

नॆवलॆ की गज़ल पॆ,खूब दाद दी साँप नॆ !!१!!



शॆर की सदारत, निज़ामत थी बाघ की,

बकरॆ कॆ हाँथ पाँव लगॆ, खुद ही कांपनॆं !!२!!



मॆं-मॆं करता रहा वॊ,माइक पॆ बस खड़ा,

हिरण की नज़र लगी, हालत कॊ भाँपनॆ !!३!!



खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,

काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ !!४!!



सियार कॊ सियासती,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 10:30pm — 13 Comments

लघुकथा - बंदर

आजादी के समय देश में हर तरफ दंगे फैले हुए थे। गांधी जी बहुत दुखी थे। उनके दुख के दो कारण थे - एक दंगे, दूसरा उनके तीनों बंदर खो गए थे। बहुत तलाश किया लेकिन वे तीन न जाने कहां गायब हो गए थे।

एक दिन सुबह अपनी प्रार्थना सभा के बाद गांधी जी शहर की गलियों में घूम रहे थे कि अचानक उनकी निगाह एक मैदान पर पड़ी, जहां बंदरों की सभा हो रही थी। उत्सुकतावश गांधीजी करीब गए। उन्होंने देखा कि उनके तीनों बंदर मंचासीन हैं। उनकी खुशी का ठिकाना…

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Added by बृजेश नीरज on February 21, 2013 at 7:30am — 21 Comments

'माँ'

माँ..

मैं परिणाम तुम्हारे त्यागों का

वरदान तेरे संघर्षों का

सम्मान तुम्हारे भावों का

निष्कर्ष तेरे कर्तव्यों का

कोरी है रसना की परिपाटी,

क्या शब्द बुनूं तेरी ममता में...

तेरे,

संघर्षों से अस्तित्व मिला

तेरे भावों से उर प्रेम खिला

कर्तव्यों से पथ-दर्श मिला

कुछ यूं हि मुझे आकार मिला,

क्या प्रतिफल दूं तेरी ममता में...

तूने,

सृजन किया है दृढ़ता से

पर पाला अति कोमलता से

मोह त्यागकर ममता से

खुद जल,सींचा शीतलता… Continue

Added by Vindu Babu on February 21, 2013 at 6:11am — 17 Comments

एक गज़लनुमाँ,,,,,,,,,,,,(मसाला)

एक गज़लनुमाँ,,,,,,,,,,,,(मसाला)

===============

कभी पास आनॆ का और, कभी दूर जानॆ का ॥

सलीका अच्छा नहीं मॊहब्बत मॆं तड़फ़ानॆ का ॥१॥



काबिल न थॆ हम तॊ, इनकार कर दॆतॆ हुज़ूर,

फ़ायदा क्या हुआ इतना, अफ़साना बनानॆ का ॥२॥



जिसकॊ चाहा है वॊ, किसी और का हॊ गया,

बता ऎ ज़िन्दगी क्या करूँ, मैं इस ख़ज़ानॆ का ॥३॥



वफ़ा करॆ या जफ़ा  उसकी,तबियत की बात है,

मॆरा तॊ वादा है उससॆ, फ़क्त वादा निभानॆ का ॥४॥



मँहगाई मॆं मॊहब्बत निभायॆ, क्या खाकॆ…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 4:00am — 20 Comments

गज़ल

जीत कर भी हार जाना होगा,
ऐसा कमाल कर दिखाना होगा |


कुछ गुजरे कुछ गुजर जाएँगे,
लम्हों का अपना अफ्शाना होगा |


रंगे खुशबु जो तलाशते हें बजार,
उन्हें भी गुलसिताँ में आना होगा |


टूटते जुड़ते ख्वाबों सी है जिंदगी,
जिंदगी है, साथ तो निभाना होगा |


अंधेरों में घिरा है सारा आलम,
तुझे भी एक चिराग जलाना होगा |

Added by मोहन बेगोवाल on February 20, 2013 at 11:00pm — 3 Comments

लघुकथा: बड़ा / संजीव 'सलिल'

लघुकथा: बड़ा
*
बरसों की नौकरी के बाद पदोन्नति मिली.

अधिकारी की कुर्सी पर बैठक मैं खुद को सहकर्मियों से ऊँचा मानकर डांट-डपटकर ठीक से काम करने की नसीहत दे घर आया. देखा नन्ही बिटिया कुर्सी पर खड़ी होकर ताली बजाकर कह रही है 'देखो, मैं सबसे अधिक बड़ी हो गयी.'

जमीन पर बैठे सभी बड़े उसे देख हँस रहे हैं. मुझे कार्यालय में सहकर्मियों के चेहरों की मुस्कराहट याद आई और तना हुआ सिर झुक गया.

*****

Added by sanjiv verma 'salil' on February 20, 2013 at 6:30pm — 5 Comments

लघुकथा

निदान

                                    गांव के बाहर मन्दिर में जोर-जोर से शंख और घड़ियाल बज रहे थे। एक सप्ताह से वहां पूजन चल रहा था। अब आरती हो रही थी। पण्डित जी ने आश्वस्त किया था कि नदी के कगार टूटने से गांव पर जो बाढ़ का खतरा मंडरा रहा था वह इस पूजन से टल जाएगा।

                                    गांव वालों के पास भी कोई रास्ता नहीं था पण्डितजी की बात मानने के सिवा। जिस बात की गारण्टी सरकार नहीं दे सकती उसकी गारण्टी यदि पण्डित दे रहा हो तो बात मानने में क्या बुराई। कगार…

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Added by बृजेश नीरज on February 20, 2013 at 5:30pm — 11 Comments

न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते

कभी काँटे बिछाते हैं कभी पलकें बिछाते हैं॥

सयाने लोग हैं मतलब से ही रिश्ते बनाते हैं॥

हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,

तुम्हें जब देख…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 20, 2013 at 4:46pm — 19 Comments

दलाली

दलाली 

जब अफसर के बेटे की एक लड़की से आँख लड़ गई,  

आँखों के जरिये वो दिल मे उतर गई, 

नाम पूछने पर लड़की ने रिश्वत बताया,

लड़के को ठंड मे भी पसीना आया,

हाथ जोड़कर लड़का…

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Added by Dr.Ajay Khare on February 20, 2013 at 3:00pm — 6 Comments

कविता

दरिया के साथ कभी बहता नहीं,

वृक्ष किनारे पे अभिज रहता नहीं ।

तमन्ना है दिये जला करूं रौशनी,

आतिश के शोले मगर सहता नहीं ।

कैसे करें, क्यों करें उस पे यकीं,

मन की बात खुल के कहता नहीं ।

शहर मेरे कैसा मौसम आ…

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Added by मोहन बेगोवाल on February 19, 2013 at 11:30pm — 2 Comments

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