For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसने खुद को ही, ज़माने से छुपा रखा है |

जाने किस शख्स ने नाम उसका, खुदा रखा है ||

सब बहाने से उसे, याद किया करते हैं |

दिल में दुनियाँ के, अजाब खौफ बिठा रखा है ||

हाथ तकदीर बनाने के ही, काम आते हैं |

क्या हथेली की लकीरों में, भला रखा है ||

खूब देता है कभी, छीन कभी लेता है |

उसने दुनियाँ का, तमाशा सा बना रखा है ||

खून का नाम नहीं, दिल में, मगर हिम्मत देखो |

इसने हर ज़हन में, तूफ़ान उठा रखा है ||

खूब बर्दाश्त की, कुव्वत से, नवाज़ा है जहाँ |

सबका जीना यहाँ आसान बना रखा है ||

अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |

दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है ||

किसी यत्न या बहाने से, खुद को समझाओ |

तुम्हारे दिल ने ‘शशि’ शोर मचा रखा है ||

Views: 398

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 24, 2013 at 4:34pm

सभी अशआर अच्छे लगें , बहुत बहुत शुभकामनायें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 24, 2013 at 10:13am

जिसने खुद को ही, ज़माने से छुपा रखा है |

जाने किस शख्स ने नाम उसका, खुदा रखा है ||

अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |

दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है ||बहुत बढ़िया ये दोनों शेर तो बहुत अच्छे लगे दाद कबूल करें 

Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 10:11pm

अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |

दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है ||

बहुत सुन्दर!

Comment by मोहन बेगोवाल on February 23, 2013 at 8:00pm

मेहरा जी,

दिल को झ्झोडती है, तुमाहरी रचना 

अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |

दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है || -बहुत अच्छा शेर है

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 23, 2013 at 7:12pm
//जिसने खुद को ही,जमाने से छुपा रखा है।
जाने किस शख्स ने नाम,उसका खुदा रखा है॥//
आपने तो ईश्वर का भेद ही खोल दिया आदरणीय।जो खुद दुनिया में गुमनाम है,हमें क्यों उस पर गुमान है।
बधाई।
Comment by रविकर on February 23, 2013 at 5:55pm

वाह वाह वाह-
ये हुई ना बात-बढ़िया ललकार -
छुप छुप कर करता रहे, हरदम तू खिलवाड़ |
जिसको चाहे चीर दे, चाहे जिसको फाड़ |
चाहे जिसको फाड़, चीर का हरण कराता |
बढ़ा बढ़ा के चीर, बड़ा अपना बन जाता |
तू तो है रे धूर्त, चलाता रहता चक्कर |
हर दम रहे अमूर्त, कलयुगे क्यूँ छुप छुप कर ||

Comment by Dr.Ajay Khare on February 23, 2013 at 5:06pm

mehra ji bahut khoob rachna 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service