For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक गज़लनुमाँ,,,,,,,,,,,,(मसाला)
===============
कभी पास आनॆ का और, कभी दूर जानॆ का ॥
सलीका अच्छा नहीं मॊहब्बत मॆं तड़फ़ानॆ का ॥१॥

काबिल न थॆ हम तॊ, इनकार कर दॆतॆ हुज़ूर,
फ़ायदा क्या हुआ इतना, अफ़साना बनानॆ का ॥२॥

जिसकॊ चाहा है वॊ, किसी और का हॊ गया,
बता ऎ ज़िन्दगी क्या करूँ, मैं इस ख़ज़ानॆ का ॥३॥

वफ़ा करॆ या जफ़ा  उसकी,तबियत की बात है,
मॆरा तॊ वादा है उससॆ, फ़क्त वादा निभानॆ का ॥४॥

मँहगाई मॆं मॊहब्बत निभायॆ, क्या खाकॆ भला,
तलाश लिया उस नॆ, हमसफ़र ऊँचॆ घरानॆ का ॥५॥

अमीर की बॆटी रही, स्वीमिंग-पुल चाहियॆ उसॆ,
अपनॆ घर बाथरूम नही, सलीकॆ सॆ नहानॆ का ॥६॥

किरायॆ का मकां और, फ़कीरी ज़िंदगी अपनी,
कॊई ठिकाना नहीं है,ज़नाब अपनॆं ठिकानॆ का ॥७॥
 
ठुकरा दॆगी वॊ हमकॊ, बखूबी मालूम था हमॆं,
फ़िजूल मॆं ख्याल आया था,चक्कर चलानॆ का ॥८॥

गिलॆ-शिकवॆ भूल जाना ही, इबादत है हमारी,
हुनर जानतॆ हैं हम यारॊ, कबूतर उड़ानॆ  का ॥९॥

यॆ मॆरी ज़िंदादिली नहीं, तॊ और क्या है बता,
हर शख्स जानता है पता, मॆरॆ आशियानॆ का ॥१०॥

ख़तावार मैं अकॆला नहीं वॊ भी तॊ है ज़नाब,
क्या हक़ था यूँ रुमाल,खिड़की सॆ गिरानॆ का ॥११॥

दॆखतॆ ही मुझकॊ झुका, लॆती थी नज़रॆं क्यॊं,
क्या फ़रॆब था वॊ दुपट्टा दाँतॊं मॆं दबानॆ का ॥१२॥

मुफ़लिसी का मज़ाक तॊ,शौक है अमीरॊं का,
हौसला नहीं हॊता उम्र भर, साथ निभानॆ का ॥१३॥

मुकद्दर ही खॊटा है जब,अपनॆ भी बॆगानॆ हुयॆ,
बताऒ कसूर क्या है भला,इसमॆं ज़मानॆ का ॥१४॥

कत्ल-ए-फ़िराक़ मॆं है मॆरी,यॆ मालूम है मुझॆ,
मैं खूब जानता हूँ सबब,उसकॆ मुस्कुरानॆ का ॥१५॥

हौसला दॆख लॆ मॆरा,ऎ कमज़र्फ़ कातिल मॆरॆ,
तॆरा शौक है ग़र आजमायॆ,कॊ आजमानॆ का ॥१६॥

हवाऒं की नीयत पॆ अब,भरॊसा नहीं मुझकॊ,
आँधियॊं का इरादा है, शायद वज़ूद मिटानॆ का ॥१७॥

इरादा पाक किरदार मॆं, सदाकत रखता हूँ मैं,
और जुनूं है मॆरा चिराग़, तूफ़ां मॆं जलानॆ का ॥१८॥

मॆरा वज़ूद सलामत है, तॊ फ़ज़्ल सॆ उस कॆ,
हर रंग दॆखा है मैनॆ भी, यहाँ पर ज़मानॆ का ॥१९॥

इंसानियत चौराहॊं पॆ, नीलाम हॊ रही है अब,
ईमान मॊहताज़ है खुद की आबरू बचानॆ का ॥२०॥

हवॆलियॊं मॆं क्या नहीं हॊता, आज कल भला,
नाम अख़बारॊं मॆं छपता है,फ़क्त डाकखानॆ का ॥२१॥

मुँह तॊ काला हॊना ही था,एक दिन सभी का,
काम क्या था कॊयलॆ की, दलाली मॆं खानॆ का ॥२२॥

लटकाया कसाब कॊ पर,करॊड़ॊं फ़ूँकनॆ कॆ बाद,
मतलब क्या निकला उसॆ,बिर्यानी खिलानॆ का ॥२३॥

भूत बन कॆ सतायॆंगॆ, हमारॆ कैदियॊं कॊ दॊनॊं,
अच्छा नहीं लगा तरीका,जॆल मॆं दफ़नानॆ का ॥२४॥

सरकार अपनी आशावादी,है यॆ मानता हूं मैं,
शायद रिसर्च जारी हॊ, मुर्दॊं सॆ उगलवानॆ का ॥२५॥

क्यॊं त्यॊहारॊं कॆ बहानॆ,  गलॆ मिलतॆ है लॊग,
हमारॆ यहाँ चलन है, रॊज गलॆ सॆ लगानॆ का ॥२६॥

हाँथ मिलानॆ सॆ रिश्तॆ,यॆ मज़बूत हॊतॆ नहीं हैं,
चलन हॊना चाहियॆ दिल सॆ, दिल मिलानॆ का ॥२७॥

यॆ नफ़रत का बगीचा, सियासत नॆ लगाया है,
नायाब तरीका है उसका, यही कुर्सी बचानॆ का ॥२८॥

सियासी दरिन्दॊं का खॆल नहीं,तॊ और क्या है,
हौसला किस मॆं है वरना, बस्तियाँ जलानॆ का ॥२९॥

यॆ ज़माना मॆरी भी, ऎसी तैसी कर दॆता मगर,
मुझॆ आता है हुनर खॊटॆ,सिक्कॊं कॊ चलानॆ का ॥३०॥

नॆताऒं सॆ सीखा है हुनर, हमनॆं भी यॆ "राज",
अँगूठा चूमनॆ का पहलॆ फ़िर अँगूठा दिखानॆ का ॥३१॥

कवि-"राज बुन्दॆली"
२१/०२/१३

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 8:48pm

rajesh kumari ji bahut bahut aabhaar aapka,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:25pm

Manoj Nautiyal,,,,,जी,,,,इस स्नेह के लिये दिल से आभार आपका,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:24pm

ajay yadav,,,,,,, जी,,,,,इस स्नेह के लिये दिल से आभार आपका,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:19pm

vijay nikore,,,,,जी,,,,आदरणीय,,,,आपको प्रणाम करता हूं इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:18pm
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:18pm

वीनस केसरी,,,,,जी,,,,आदरणीय,,,,आपको प्रणाम करता हूं इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:17pm

Ashok Kumar Raktale,,, ,,,,,जी,,,,आदरणीय,,,,आपको प्रणाम करता हूं इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:17pm

Dr.Prachi Singh,,,,,जी,,,,आदरणीया,,,,आपको प्रणाम करता हूं इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:16pm

Dr.Ajay Khare ,,,,,जी,,,,आदरणीय,,,,आपको प्रणाम करता हूं इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 24, 2013 at 12:15pm

आदरणीय,,,, Saurabh Pandey जी गज़ल के मामले मे मै अभी बच्चा हूं,,,प्रयास कर रहा हूं आप लोगो से कुछ सीखने का,,,, आपको प्रणाम करता हूं इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,आभार,,,,,,,,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service