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काशीनामा - प्रसाद प्रतिमा , स्पंदन और हिंदी गौरव !

                    त बीस फरवरी २०१३ का दिन बनारस के लिए ख़ास रहा । कालजयी  "कामायनी" के रचनाकार महाकवि जयशंकर प्रसाद की काशी में अबतक कोई प्रतिमा नहीं थी , उसका अनावरण हुआ । काव्य केन्द्रित पत्रिका " स्पंदन " का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और नवगीतकार पंडित श्रीकृष्ण तिवारी को हिंदी गौरव सम्मान राज्य हिंदी संस्थान की ओर से दिए जाने  की घोषणा हुई । भारतेंदु और प्रेमचंद की काशी खुश हुई ;  हिंदी की  गौरव पूर्ण सरिता प्रवाहित जो है । 
 
काशी में पहली जयशंकर प्रसाद प्रतिमा स्थापित -
                प्रसाद प्रतिमा का अनावरण क्वींस कॉलेज के प्रांगण में हुआ । यह अवस्थापना समारोह पूरी तरह महाकवि जय शंकर प्रसाद को समर्पित रहां , जहां साहित्यनुरागियों का एक स्वप्न साकार हुआ। लम्बी कवायद के बाद प्रसाद न्यास के बैनर तले क्वींस कॉलेज में प्रसाद प्रतिमा अनावरण समारोह आयोजित किया गया जहां से साहित्य संव‌र्द्धन की दिशा-दशा तय करने के साथ ही सरकार के लिए कई संदेश भी निकले। महाकवि की 123 वीं जयंती पर आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि संस्कृत के मूर्घन्य विद्वान प्रो.रेवा प्रसाद द्विवेदी रहे। प्रसाद जी की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रो.द्विवेदी ने कहा-बेशक, वे एक आध्यात्मिक एवं कालजयी पुरूष थे। उनकी भाषा अद्वितीय है। वे कालीदास के भक्त थे। कामायनी की भाषा में महाकवि ने बहुत से संस्कृत के शब्दों का प्रयोग किया। बोले, जब भावों को व्यक्त करने में शब्द की दुरूहता आए तो वह संस्कृत के वांग्मय से लेना चाहिए। अपने अध्यक्षीय संबोधन में ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता ज्ञानेन्द्र पति ने कहा- प्रसाद जी जैसे व्यक्ति शताब्दियों में एक बार ही धरा पर आते हैं। उन्होंने प्रसाद जी के काव्यों व नाटकों पर भी गहराई से प्रकाश डाला। प्रसाद जी की कृतियों पर रोशनी डालते हुए उनके पौत्र एवं प्रसाद न्यास के व्यवस्थापक महाशंकर प्रसाद ने कहा-महाकवि ने साहित्य की सभी विधाओं को स्पर्श किया। शायद ही कोई ऐसी विधा हो जो उनसे अछूती रही हो। प्रसाद जी का दैनिक अनुशासन उन्हें चलता-फिरता आदर्श संस्थान मानती है। अपरिहार्य कारणों से दिल्ली से समारोह में शिरकत करने न आ सके प्रसाद न्यास के अध्यक्ष आईआरएस जय प्रकाश सिंह ने अपने संदेश में प्रसाद-प्रतिमा अवस्थापना समारोह का मार्ग प्रशस्त करने वाले साहित्यकारों के प्रति आभार जताया। विश्वास व्यक्त किया कि इस तरह के आयोजन से नई पीढ़ी में साहित्य से जुड़ने की ललक के साथ-साथ संस्कार का भाव भी भरेगा। स्वागत करते हुए प्रसाद न्यास व भारतीय बाल अकादमी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ.अशोक राय ने जीवन व उनकी कृतियों से सीख लेने के लिए प्रेरित किया। लब्ध कवि व साहित्यकार पं.धर्मशील चतुर्वेदी बोले, प्रसाद जी का पूरा जीवन अनुशासन से पूर्ण था। उनके साहित्य ने स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी। डॉ.बलराज पांडेय ने प्रसाद जी को छायावाद का दृष्टा कहा। समारोह में विजय कृष्ण, डॉ.अमिताभ तिवारी, पं.श्रीकृष्ण तिवारी, डॉ.जितेन्द्र नाथ मिश्र व मयंक अग्रवाल आदि ने भाग लिया। संचालन डॉ.अखिलेश कुमार व आभार प्रकाश महाशंकर प्रसाद ने किया। 
काव्य केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "स्पंदन" के प्रवेशांक का लोकार्पण -
           
         नीचीबाग वाराणसी ,  सुडिया स्थित सरस्वती इंटर कालेज में बीस फरवरी की शाम ऐतिहासिक रही । हिंदी की कर्मभूमि काशी में काव्य केन्द्रित त्रैमासिक "स्पंदन" का लोकार्पण हुआ । इस अवसर पर प्रतिष्ठित लोककवि पंडित हरिराम द्विवेदी , शायर मेयार सनेही , दैनिक "गांडीव" के संपादक श्री राजीव अरोडा , कथाकार डॉ मुक्ता , कवि श्रीकृष्ण तिवारी , समालोचक डॉ जीतेंद्र नाथ मिश्र  एवं श्री देवी प्रसाद कुंवर आदि अतिथियों ने स्पंदन के बसंत अंक (प्रवेशांक) का लोकार्पण किया । सभी ने इस पत्रिका के उपयोगी एवं सार्थक सुदीर्घ जीवन की कामना की । वक्ताओं ने कहा की किसी भी पत्रिका के कितने अंक प्रकाशित हुए और वह कितने पन्नो की है यह महत्वपूर्ण नहीं अपितु उसकी रचनाओं का जीवन और प्रभाव कितना रहा यह बात अहमियत रखती है । 
इस अवसर हुए काव्य पाठ में दानिश जमाल , मंजरी पाण्डेय , अभिनव अरुण , संतोष सरस , विजेन्द्र मिश्र दबंग , कुंवर सिंह कुंवर आदि रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से उपस्थित लोगों का मन मोहा । 
               स्पंदन के प्रधान संपादक वासुदेव ओबेराय , प्रबंध संपादक गौतम अरोरा सरस , और संपादक ख्यात ग़ज़लकार धर्मेन्द्र गुप्त साहिल ने अपने विचार प्रकट करते हुए रेखांकित किया की आज बनारस से एक नयी काव्य पत्रिका के प्रकाशन की आवश्यकता क्यों महसूस की गयी । उन्होंने सभी से इस यात्रा में सहयोग की अपेक्षा की । के - ३\१0 - ए , माँ शीतला भवन , गायघाट , वाराणसी -2२१00१ से प्रकाशित हो रही ये पत्रिका त्रैमासिक आधार पर प्रकाशित होगी और इसमें राष्ट्रीय स्तर के रचनाकारों को शामिल किया जायेगा । 
 
पंडित श्रीकृष्ण तिवारी को हिंदी गौरव -
           त्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पिछले कुछ वर्षों से अटके पड़े राज्य पुरस्कारों की घोषणा की है । इसमें बनारस के चर्चित नवगीतकार पंडित श्री कृष्ण तिवारी को "हिंदी गौरव " सम्मान प्रदान किया गया  है । बनारस के लिए यह हर्ष का समाचार रहा । बीस फरवरी को हुए विभिन्न समारोहों में पंडित श्रीकृष्ण तिवारी को नगर के साहित्यकारों ने इसकी बधाई दी । पंडित तिवारी गत अगस्त - सितम्बर में इंग्लैंड में विभिन्न नगरों में हुए कवि सम्मेलनों में भी ICCR भारत सरकार की ओर  से गए थे । उन्होंने कहा कि  यह सम्मान काशी की गौरवशाली काव्य - साहित्य परंपरा का सम्मान है । 
 
                                                                                                            -(c)- अभिनव अरुण 
                                                                                                                  [22022013]

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Comment by Abhinav Arun on April 30, 2013 at 3:51pm

आज यह कालजयी गीत ओ बी ओ पर प्रस्तुत कर आपने सही अर्थों में एक सशक्त रचनाकार को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है आदरणीय श्री |  इससे कतिपय अनभिज्ञ सदस्य पंडित जी के लेखन से भी परिचित हो सकेंगे । इस और अन्य ओज पूर्ण गीतों को पंडित जी की  प्रभावपूर्ण शैली में सुनना एक अनुभव होता था । बहुत साधुवाद अब यह गीत ओ बी ओ के दस्तावेज में भी दर्ज हो गया !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 30, 2013 at 3:47pm

परम श्रद्धेय श्री कृष्ण तिवारी जी को भाव भीनी श्रद्धांजलि | ऐसे कालजयी रचनाकार का जाना सम्पूर्ण जगत की साहित्यिक क्षति है

जानकारी उपलब्ध कराने के लिए श्री अभिनव अरुण जी हार्दिक आभार स्वीकारे  
भीलों ने बाँट लिए वन उनका कालजयी नवगीत पढने को मिला, हार्दिक आभार श्री सौरभ जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 30, 2013 at 3:35pm

एक अपूरणीय क्षति का दुखद समाचार मन को कचोट गया. आह निकल गयी.

परमश्रद्धेय श्रीकृष्ण तिवारी जी को कई-कई दफ़े पढ़ा है हम लोगों ने.  साहित्य के क्षेत्र में माँ शारदा के पुत्र को अश्रुपूरित नमन.

भीलों ने बाँट लिए वन उनका कालजयी नवगीत था.  इस मंच के सुधी पाठकों केलिए प्रस्तुत कर रहा हूँ -

भीलों नें बाँट लिये वन
राजा को खबर तक नहीं.. .

पाप चढ़ा राजा के सिर
दूध की नदी हुई जहर
गाँव, नगर धूप की तरह
फैल गयी यह नयी खबर
रानी हो गयी बदचलन
राजा को खबर तक नहीं.. .

कच्चा मन राजकुँवर का
बे-लगाम इस कदर हुआ
आवारा छोरों का संग
रोज खेलने लगा जुआ
हार गया दाँव पर बहन
राजा को खबर तक नहीं

उल्टे मुँह हवा हो गयी
मरा हुआ साँप जी गया
सूख गये ताल-पोखरे
बादल को सूर्य पी गया
पानी बिन मर गये हिरन
राजा को खबर तक नहीं.. .

एक रात काल देवता
परजा को स्वप्न दे गये
राजमहल खण्डहर हुआ
छत्र-मुकुट चोर ले गये
सिंहासन का हुआ हरण
राजा को खबर तक नहीं.. .

सादर श्रद्धांजलि और अश्रुपूरित नमन उस अद्भुत शब्द चितेरे को .. .

 

Comment by Abhinav Arun on April 30, 2013 at 3:19pm

     हिंदी साहित्य विशेष कर नवगीत के क्षेत्र में गत पांच दशक से सक्रिय  पंडित श्रीकृष्ण तिवारी का विगत २ ८ अप्रैल २ ० १ ३ को निधन हो गया वे ७ ४ वर्ष के थे और कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे । सम्पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ काशी के मणिकर्णिका घाट पर २ ९ अप्रैल को हुई  अंत्येष्टि में शहर के साहित्यकार और उनके चाहने वाले बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।  

       वो हम बनारस के लिखने पढने वालो के सच्चे अर्थों में अगुआ थे  । काशी के इस प्रतिनिधि का जाना बहुत बड़ी क्षति है । पंडित जी के साथ कई कई आयोजनों में , मंचों , गोष्ठियों में और आकाशवाणी में बिताये पल बार बार कौंध - कचोट - स्मरण आ रहे हैं , मन व्यथित है !

  

उनकी रचनाएँ कालजयी है .."भीलों ने बाँट लिए वन , राजा को खबर तक नहीं " अपातकाल के दौरान चर्चित गीत था जिसने उन्हें बड़ी प्रसिद्धि दी । अभी कुछ माह पहले ही वो काव्य पाठ के लिए भारत सरकार की और से लन्दन भी गए थे और हिंदी गौरव सम्मान तो कुछ दिन पहले राज्य सरकार की और से मिला था । 

      विनम्र श्रद्धांजलि एक महान साहित्य सेवी को !!! 

Comment by Abhinav Arun on February 24, 2013 at 6:35am
आभार आदरणीय श्री , सही कहा समय चमक दमक और मुलम्मों का है. परंपरा और उसके प्रतीक दालान के बुज़ुर्ग की मानिंद हो गये हैं जिसकी आशीष भाती है ,सीख नही .
Comment by Abhinav Arun on February 23, 2013 at 7:41pm
आदरणीया मँजरी जी आप स्वयम् उस एक कार्यक्रम में साथ थीं .आपके अनुमोदन हेतु आभार !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 23, 2013 at 6:25pm

अपने घर में ही आखिर प्रसादजी कितने दिनों तक बेठौर रहते ! शहर के लहुराबीर पर स्थित ऐतिहासिक क्वींस कॉलेज ने मान दिया. वैसे उस कॉलेज से भी जिम्मेदार व्यवस्था कम मज़ाक नहीं कर रही है.

साहित्यिक गतिविधियों की कभी धुरी रहा यह केन्द्र अपने बेलौसपन में ठहाके तो लगाता है, मग़र अब कहकहे आँखों की कोर के अनायास भीग जाने का सबब ज्यादा बनते हैं.

भाई अरुण अभिनवजी,  चाहे जो हो यह शहर जिजीविषा से भरा हुआ है. शहर की साहित्यिक गतिविधियों पर ऐसे ही सूचनाएँ साझा करते रहें, प्रतीक्षा रहेगी.

रपट के लिये हार्दिक धन्यवाद.

Comment by mrs manjari pandey on February 23, 2013 at 6:09pm

आदरणीयअरुण जी   जी सांगोपांग रपट काशीनामा रुचिकर लगा आप काशी के सच्चे संदेशवाहक हो गए।बधाई।

Comment by Abhinav Arun on February 23, 2013 at 4:19pm

बहुत शुक्रिया  आदरणीया डा. प्राची जी , रपट आपको रुचिकर लगी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2013 at 3:35pm

काशी नगर में महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की प्रतिमा के अनावरण की सुन्दर रिपोर्ट प्रस्तुत की है आदरणीय अरुण जी.

हार्दिक शुभकामनाएं 

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