फिर भी आँख है सूनी.. Copyright ©
फिर भी आँख है सूनी..
उस राह को तकते हुए..
जो जाती है सीधे तेरे दर पे..
तुमने कहा मैं भूल गया आना..
कहा तुमने मैं भूल गया तुमको..
सुना मैंने भी कुछ ऐसा ही था कि मैं..
पर तुम क्या जानो क्या बीती है मुझ पर..
सारा जमाना क्या , हम…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 10, 2011 at 11:00am — No Comments
Added by Lata R.Ojha on January 9, 2011 at 10:30pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on January 9, 2011 at 7:31pm — No Comments
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on January 8, 2011 at 7:20pm — No Comments
कभी कभी आधी बात सुनाने के बाद वही स्थिति हो जाती हैं , जो गुरु द्रोणाचार्य की हुई थी , उन्होंने सुना अश्वस्थामा मारा गया बाकि शब्द शंख के आवाज में दब गए , और वह समझे उनका बेटा मारा गया और इसी अघात में वह भी मारे गए , आजकल ऐसा ही हो रहा हैं लोग बाग पूरे शब्द को सुन नही रहे और आधे पे अर्थ को अनर्थ बना दे रहे हैं !
एक माँ बाप की एक ही लड़की थी , उसकी माँ औलाद (लड़का) नहीं होने के कारण रो रही थी और बेटी उसे सांत्वना दे रही थी , माँ मैं दुनिया की उस सोच को ख़त्म कर दूंगी की…
ContinueAdded by Rash Bihari Ravi on January 8, 2011 at 3:00pm — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 7, 2011 at 8:52pm — 2 Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 6, 2011 at 6:12pm — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on January 6, 2011 at 5:19pm — No Comments
Added by रंजना सिंह on January 6, 2011 at 1:08pm — No Comments
चुन-चुनकर भॆजा जिन्हॆं,निकलॆ नमक हराम !
सिसक रही हर झॊपड़ी, मंत्री सब बदनाम !!
मंत्री सब बदनाम, शहद घॊटालॊं की चाटी !
है गंदा इनका खून, नियत गंदी परिपाटी !!
भारत भाग्य विधाता ,भारत की अब सुन !
हॊ परसुराम अवतार, इन्हॆं मारॆ चुन चुन !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:31am — No Comments
बापू जब सॆ आपकी,पड़ी नॊट पर छाप !
पड़ॆ-पड़ॆ अब जॆब मॆं,करतॆ रहॊ विलाप !!
करतॆ रहॊ विलाप, तुम बंद तिजॊरी मॆं,
शामिल हॊ गयॆ आप,यहाँ रिश्वतखॊरी मॆं,
सत्य-अहिंसा साधक,हॆ राम नाम कॆ जापू
दॆश हुआ आज़ाद ,क्यूँ बिलख रहॆ हॊ बापू !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:29am — No Comments
नॆता खायॆं खीर अरु ,जनता चाटॆ पात !
लॊकतंत्र की छाँव मॆं,अजब निराली बात !!
अजब निराली बात, न अर्थ दिमाग मॆं चढ़तॆ,
है घायल संविधान, अनुच्छॆद संसद मॆं सड़तॆ,
सहनशीलता धन्य लात, गाली, जूतॆ सह लॆता !
निर्लज्ज नमक-हराम भ्रष्ट हैं आज कॆ नॆता !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:27am — No Comments
डाला डांका दॆश मॆं ,खुली लूट पर लूट !
पकड़ॆ गयॆ सुयॊग सॆ,आयॆं फ़ौरन छूट !!
आयॆ फ़ौरन छूट,पहुँच इनकी ऊपर की,
बात-बात मॆं खात कसम झूठी रघुबर की,
एक सॆ बढ़कर एक यहाँ नित नया घॊटाला !
अजब लुटॆरॆ मॆरॆ दॆश कॆ,घर मॆं डांका डाला !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:24am — No Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:20am — No Comments
Added by praveena joshi on January 5, 2011 at 9:01pm — 2 Comments
Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:08pm — No Comments
Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:07pm — No Comments
Added by satish mapatpuri on January 5, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
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