चार कुण्डलियाँ
(१)
लीला है उस राम की, अन्ना यहाँ हजार
लोग जमा हो गये हैं, छोड़ दिया घरबार
छोड़ दिया घरबार, सह रहे आँधी-पानी
अनशन की शुरुआत, शुरू वही कहानी
भाग रही है भीड़, सभी कुछ गीला-गीला
हे प्रभु इस…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 19, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
आँगन का एक छोटा सा
पौधा
जो बढ़ना चाहता है
छटपटाता है बढ़ने को
पर
बड़े पेड़ का बडप्पन
रोकता है उसे
टोकता है उसे
न बढ़ने देने का डर
देता है उसे
हौसला व चाहत फिर भी
जीवित है उसमे
आगे बढ़ने का साहस
निहित है उसमे
कुछ करने ललक है उसमे
एक उम्मीद
उस छोटे से पौधे की
कि
एक दिन वह छोटा सा पौधा
भी
उस बड़े से पेड़ से कही
आगे होगा
वो छोटा सा पौधा
तो बढा जा रहा है
खड़ा हो रहा है…
Added by Yogyata Mishra on August 18, 2011 at 9:12pm — 6 Comments
Added by VIBHUTI KUMAR on August 18, 2011 at 5:13pm — 1 Comment
शपथ
राखी की मुझे
बहन
देश की
रक्षा में होना
कुर्बान
मन में
पालना नहीं
दुविधा
रखूंगा
सदा देश का
सम्मान
बहना
खिला अब तो
मिठाई....
एकादशी विधा में लिखे ये छंद गणेश भैया मैं आपको समर्पित करता हूँ ...आप इस विधा के अविष्कार कर्ता हैं ..इसलिए प्रथम प्रतिक्रिया के लिए आप से अनुरोध भी करता हूँ
डॉ.…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 18, 2011 at 3:42pm — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on August 18, 2011 at 3:19pm — 5 Comments
पास आ कातिल मेरे मुझमें जान आने दे,
जान ले लेना पर थोडा तो संभल जाने दे।
तूँ तसव्वुर में मेरे रहा है बरसों से,
खुद को नजरों से सीने में उतर जाने दे।
कुछ ठहर जा कि छुपा लूँ मैं दर्द सीने का,
या तेरे सीने से लिपट कर बिफर जाने दे।
तुझको पाना नहीं है मेरी मंजिल,
तूँ जरा खुद में मुझको समां जाने…
ContinueAdded by Gyanendra Nath Tripathi on August 18, 2011 at 1:30pm — 2 Comments
यह देश चोर और लूटेरों का है. यहां चोर और लुटेरों की संस्कृति विद्यमान है. वजह भी साफ है हजारों सालों से हम लुटते आ रहे हैं. लुटेरे थक गये पर हम नहीं थके. सोने की चिडि़यां दुनिया भर के दानवों का शिकार बनती रही है और आज भी बनी हुई है. फर्क सिर्फ इतना आया है कि आज हमें आजादी जैसी लाॅलीपाॅप थमा कर हमें लूटा जा रहा है. छोटा सा एक उदाहरण है: रोजगार सेवक जैसी नौकरी करने वाले स्वीकार करते हैं कि महिने में कम से कम 1 लाख से डेढ़ लाख की कमाई होती है. मुखिया जैसे बिना वेतन के कार्य करनेवाले थौक के भाव…
ContinueAdded by Rohit Sharma on August 18, 2011 at 12:14pm — No Comments
भ्रष्टाचार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है और इस बार वह सब पर भारी नजर आ रहा है। सत्ता के रसूख का दंभ भरने वाली सरकार भी डरी-सहमी हैं। आधुनिक भारत के ‘गांधी’ के नए अवतरण के बाद ‘भ्रष्टाचार का भूत’ को देश से भगाने के लिए ‘अनशन यज्ञ’ का सहारा लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह नए भारत की ‘अगस्त क्रांति’ है। हालात ऐसे बन गए हैं, जो भी भ्रष्टाचार की खिलाफत में मुंह मोड़ेगा, वह क्रांति की चपेट में आ जाएगा और देश में इस क्रांति से हजारों-हजार बावले नजर आ रहे हैं, ‘हजारे’ के साथ। भले ही कई बरसों…
ContinueAdded by rajkumar sahu on August 18, 2011 at 1:15am — No Comments
Added by Shashi Mehra on August 17, 2011 at 6:29pm — No Comments
अन्ना हजारे आज जिस लोकपाल बिल हेतु संघर्ष कर रहे हैं, यह भविष्य में कितना सार्थक होगा यह कहना भविष्य की बात है. परन्तु उनका संघर्ष इस बात को पूरजोर तरीके से एकबार फिर साबित कर दिया है कि इस देश में अपने अधिकार और अपनी बातों को रखने की कहीं से भी आजादी नहीं है. यहाँ अभिव्यक्ति की कोई भी स्वतंत्रता नहीं है. उनको तो बिल्कुल ही नहीं जो देश के शासक वर्ग के खिलाफ आवाज उठाते हैं. भ्रष्टाचार जैसे सर्वव्यापी घृणित रोग के खिलाफ लड़ने वाले जब इस ‘‘आजाद’’ देश में अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं और उन्हें…
ContinueAdded by Rohit Sharma on August 17, 2011 at 3:49pm — No Comments
शर्मशार किये गाँधी को, नहीं माफ़ करेंगे
लायेंगे वक़्त को , तेरा भी इन्साफ़ करेंगे
माँग रहे बस रास्ता, दे दो ऎ जंगल मुझे
मज़बूर किये तो तुझे, जड़ से साफ़ करेंगे
Added by VIBHUTI KUMAR on August 17, 2011 at 12:58pm — No Comments
भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के लिए अन्ना हज़ारे आगे आए सरकार का रुख़ हम सबने देखा. अब वो समय आ गया हे की देश मे क्रांति हो और देश नया रूप नया रंग ले एक नई सुबह हो.…
Continueभारत माँ को नमन अपनी जमीन सबसे प्यारी है ; अपना गगन सबसे प्यारा है ;
बहती सुगन्धित मोहक पवन ;
इसके नज़ारे चुराते हैं मन ;
सबसे है प्यारा अपना वतन ;
करते हैं भारत माँ को नमन
वन्देमातरम !वन्देमातरम !
करते हैं भारत माँ ! को नमन .
उत्तर में इसके हिमालय खड़ा ;
दक्षिण में सागर सा पहरी अड़ा ;
पूरब में इसके खाड़ी बड़ी ;
पश्चिम का अर्णव करे चौकसी ;
कैसे सफल हो कोई दुश्मन !
करते हैं भारत माँ को नमन !
वन्देमातरम !वन्देमातरम !
करते…
Added by shikha kaushik on August 16, 2011 at 7:52pm — No Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 16, 2011 at 11:00am — 3 Comments
राष्ट्र के कर्णधार उठो , मानवता के पहरेदार उठो .
तुमको वतन पुकार रहा , तेरे पौरुष को ललकार रहा.
भारत माँ का उद्धार करो.
भ्रष्टाचार - संहार करो .
नृप ! बैठ तख़्त क्या सोच रहा ? अवमूल्यन में क्या खोज रहा ?
सत्ता की कुछ मर्यादा है , जनतंत्र से कुछ तेरा वादा है.
दृग मूंद लिए सब सपना है.
आँखे खोलो सब अपना है.
यह जग माया का है बाज़ार , जहाँ रिश्तों के कितने प्रकार .
कोई मातु - पिता कोई भाई है , कोई बेटी और जमाई है.
कोई…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 16, 2011 at 12:18am — 2 Comments
Added by Shashi Mehra on August 15, 2011 at 12:10pm — 4 Comments
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
रोते-बिलखते लोगों को फिर एक बार हंसाये हम.
जो अब तक सही आजादी पाने से महरूम है.
जो अपने घर में आज भी बेबस लाचार मजलूम है.
स्वतंत्र देश में जकड़े है जो गुलामी की जंजीरों से.
खेलते है देश के नेता जिनके मासूम तकदीरों से.
जो तन्हा भूखे-नंगे सोते है आसमान के नीचे.
उनके बंजर चेहरों को आओ मिलकर सींचे.
उनके रहने खातिर एक आशिया बनाये हम.
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
उखाड़ फेके…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 15, 2011 at 9:30am — 5 Comments
प्यार-एकता की खुश्बू से महके चमन हमारा I
सारी दुनिया में सबसे आगे हो वतन हमारा I
कुर्बानी देकर पायी है आजादी की दौलत I
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो-छोड़ो बैर और नफ़रत I
देश के टुकड़े करने को, दुश्मन ने जाल पसारा है I
नींद से जागो, आज हिमालय ने हमको ललकारा है…
Added by satish mapatpuri on August 15, 2011 at 2:00am — 6 Comments
Added by इमरान खान on August 14, 2011 at 10:14pm — 1 Comment
Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 3:33pm — 11 Comments
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