आँगन का एक छोटा सा
पौधा
जो बढ़ना चाहता है
छटपटाता है बढ़ने को
पर
बड़े पेड़ का बडप्पन
रोकता है उसे
टोकता है उसे
न बढ़ने देने का डर
देता है उसे
हौसला व चाहत फिर भी
जीवित है उसमे
आगे बढ़ने का साहस
निहित है उसमे
कुछ करने ललक है उसमे
एक उम्मीद
उस छोटे से पौधे की
कि
एक दिन वह छोटा सा पौधा
भी
उस बड़े से पेड़ से कही
आगे होगा
वो छोटा सा पौधा
तो बढा जा रहा है
खड़ा हो रहा है
वो छोटा सा पौधा.......
Comment
bahut kgubsurat soch
Afreen!
thnku so mch...bas koshish me kuchh likh pane ki
उम्मीद की कोंपल यदि उग गयी है. यह भरोसे के लिये बहुत है. अच्छी कविता. शुभकामनाएँ.
आगे बढ़ने की चाह, कुछ ह्रदय में असमंजस, दिल में कुछ दबा दबा सा डर, किन्तु यह हमेशा याद रखने की जरुरत कि कभी ना कभी वो बड़ा पेड़ भी छोटा पौधा हुआ करता था, और बेतरतीब बढ़ते शाखाओं को आज भी काट छाट किया जाता है, जरुरत बढ़ते रहने की है, समय खुद बड़ा कर देगा |
एक खुबसूरत और संदेशपरक अभिव्यक्ति हेतु बधाई आपको |
सच यही कविता है.
किस तरह से व्यंजना दी जाती है, इस रचना से मिलती है|
नमन है आपकी लेखनी को.
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