त्यागपत्र (कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
................ अंक -- एक ...................
'प्रबल प्रताप ज़िन्दावाद ' के नारे से पंडाल गूंज उठा. पी. पी.सिंह के नाम से जाने जानेवाले प्रबल प्रताप सिंह के मंत्री बनने के उपलक्ष में इस समारोह का आयोजन हुआ था. जनता - जनार्दन के बीच उनकी अच्छी -खासी लोकप्रियता थी. उनके दर्शनार्थ भीड़ उमड़ पड़ी थी. गिरधरपुर निर्वाचन -क्षेत्र की जनता - जनार्दन को नाज़ था कि वो प्रदेश को एक मंत्री देने का गौरव हासिल करने जा रहे हैं.सच ही तो है…
ContinueAdded by satish mapatpuri on October 30, 2011 at 3:00am — 5 Comments
दोहा सलिला:
दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.....
संजीव 'सलिल'
*
दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.
बिम्ब भाव रस कथ्य के, पंचतत्व नवरंग..
*
दिया दिया लेकिन नहीं, दी बाती औ' तेल.
तोड़ न उजियारा सका, अंधकार की जेल.. -यमक
*
गृहलक्ष्मी का रूप तज, हुई पटाखा नार. -अपन्हुति
लोग पटाखा खरीदें, तो क्यों हो बेजार?. -यमक,
*
मुस्कानों की फुलझड़ी, मदिर नयन के बाण. …
Added by sanjiv verma 'salil' on October 27, 2011 at 9:07am — 5 Comments
जब से दिल दिवाल हुआ है, दिवाली का रूप बदल गया.
जब से नियति मलिन हुई है, अर्द्धरात्रि में धूप निकल गया.
पर पीड़ा पर होने वाली, धड़कन जानें कहाँ गयी?
संवेदना- चेतना - निष्ठा, मानवता अब कहाँ गयी ?
जब से नफ़रत- क्रोध बसा है, इंसानों का रूप बदल गया.
जब से दिल दिवाल हुआ है, दिवाली का रूप बदल गया.
रीति - रिवाज़ में लोग बाग. अब छिपकर सेंध लगाते हैं.
पटाखों के बीच, गोलियों का भी शोर मिलाते हैं.
जब से इसका चलन हुआ है, पर्व - त्यौहार का रूप बदल…
ContinueAdded by satish mapatpuri on October 26, 2011 at 2:43pm — No Comments
व्यंग्य रचना:
दीवाली : कुछ शब्द चित्र:
संजीव 'सलिल'
*
माँ-बाप को
ठेंगा दिखायें.
सास-ससुर पर
बलि-बलि जायें.
अधिकारी को
तेल लगायें.
गृह-लक्ष्मी के
चरण दबायें.
दिवाली मनाएँ..
*
लक्ष्मी पूजन के
महापर्व को
सार्थक बनायें.
ससुरे से मांगें
नगद-नारायण.
न मिले लक्ष्मी
तो गृह-लक्ष्मी को
होलिका बनायें.
दूसरी को…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 26, 2011 at 8:00am — 4 Comments
सबकी आँखों को सुन्दर से सपने मिले.
सारी धरती पे खुशियों की बरसात हो.
ईद का दिन - दिवाली की हर रात हो.
OBO परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली हार्दिक शुभकामनाएं.
Added by satish mapatpuri on October 26, 2011 at 2:53am — No Comments
दोहा सलिला :
दोहों की दीपावली:
--संजीव 'सलिल'
दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.
श्री गणेश के बिम्ब को, अलंकार अनुमान..
दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.
सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..
अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.
माटी का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..
मन का दीपक लो जला, तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 25, 2011 at 12:30pm — 7 Comments
Added by satish mapatpuri on October 25, 2011 at 12:53am — 1 Comment
आज तिमिर का नाश हुआ
दीपों की लगी कतार
कार्तिक अमावस्या लेकर आई
यह आलोकित उपहार
द्वार द्वार पर दीप जलें
घर घर हुआ श्रृंगार
हर देहरी प्रदीप्त हुई
बिखरा हर्ष अपार
झाड़ बुहार आँगन को
लक्ष्मी को दें आमंत्रण
करबद्ध हो सब करें
मन से रमा का वंदन
सभी को शुभ दीपावली...
दुष्यंत..........
Added by दुष्यंत सेवक on October 24, 2011 at 6:38pm — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on October 23, 2011 at 8:30pm — 10 Comments
कैसे तुझे बताऊँ माँ कि
याद तेरी यहाँ आती है
तेरे प्यार की वो दुनियां अब
आँख मेरी भर जाती है |
भूखी तू रह जाती है पर
खाना मुझे खिलाती है
राह का मेरी मिटाने अँधेरा
तू दीपक बन जाती है |
जब,राह नजर न आती है
गोद तेरी तो उस पल भी माँ
स्वर्ग धरा बन जाती है |
दया भाव …
Added by Ajay Singh on October 23, 2011 at 12:53pm — 1 Comment
Added by Rash Bihari Ravi on October 22, 2011 at 2:00pm — 8 Comments
श्री रामचंद्र जी के अयोध्या लौटने पर उनके स्वागत में एक गीत -
हेली मंगल गाओ आज ,
सहेली मंगल गाओ आज |
ढोल नगाड़ा नौपत बाजे
अयोध्या में आज
तोरण द्वार सजे सब आँगन
कौशल्या घर आज |
मोत्यां चौक पुरावो है सखी
झिलमिल आरती थाल
रामचंद्र जी लौटेंगे सखी
सीता लखन संग आज |
शुभ घड़ी आई भ्राता मिलाई
दशरथ के घर आज
भरत की तपस्या लायेगी
सखी ! खुशियों का अम्बार…
ContinueAdded by mohinichordia on October 21, 2011 at 9:00pm — No Comments
सदियों से हम, साल में इक दिन, घर-घर दीप जलाते हैं |
इस दिन को कह कर दीवाली, खुशियाँ बहुत मनाते हैं ||
दीप जलें, अंधियारा भागे, हो जाता उजियारा है |
हर दिन ख़ुशी के दीप जलाएं, बनता फ़र्ज़ हमारा है ||…
Added by Shashi Mehra on October 21, 2011 at 9:30am — No Comments
Added by Noorain Ansari on October 20, 2011 at 9:06am — 4 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on October 19, 2011 at 8:00pm — 4 Comments
लघुकथा - बकाया !
डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 9:00am — 16 Comments
मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|
जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की. |२|
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|
जान देकर जो गये अपनी शहीदाने…
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 12:30am — 8 Comments
समाजसेवी अन्ना हजारे ने पिछले दिनों तेरह दिनों तक अनशन करके ‘अन्नागिरी’ को हवा दे दी है। देश में अब तक नेतागिरी, चमचागिरी, बाबागिरी की हवा चल रही थी। अन्नागिरी के हावी होते ही अभी भ्रष्टाचारियों के मूड खराब हो गए हैं, क्योंकि जहां-तहां अन्नागिरी ही छाई हुई है। हर जुबान से बस अन्नागिरी की लार लपक रही है। किसी को अपनी बात मनवानी है तो वह, बस अन्नागिरी करने लग जा रहा है। वैसे हमारे समाजसेवी अन्ना जी ‘अनशन’ के लिए माहिर माने जाते हैं, लेकिन उनके पीछे जो लोग ‘अन्नागिरी’ का सहारा लेने लगे हैं,…
ContinueAdded by rajkumar sahu on October 18, 2011 at 1:17am — No Comments
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