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बुढापा जो बरपा है

अभी अभी मैं नींद से जागा…

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Added by Ravindra Koshti on May 16, 2011 at 12:26am — 2 Comments

नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !

नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !

सूनेपन की रेत पे लम्हे दुःख की सुबहो - शाम लिखेंगे…

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Added by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 8:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल : - राग मुझको सुहाता नहीं दोस्तो

ग़ज़ल : - राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो !

राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो ,

मैं कोई गीत गाता नहीं…

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Added by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

ज्ञान का दीप

ज्ञान का दीप

जिंदगी प्रेम में ही  गर  मिली रह गयी,
ज्ञान का दीप कैसे जला पाओगे ?…

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Added by R N Tiwari on May 15, 2011 at 7:00pm — 2 Comments

गजल-मुफलिसी बेबाक हो गई

गजल

 

मुफलिसी बेबाक हो गई।
भूख ही खुराक हो गई।।

 

जिसने किया खुदी को बुलंद
जहाँ में उसकी धाक हो गई।।

 

जो पल में छीन लेते थे जिंदगी।
वो हस्तियां भीं खाक हो गई।।

 

किसी को गरज नहीं यहां जहाँ की।
सबको अपनी प्यारी नाक हो गई।।

 

जिसने इंकलाब का बिगुल बजाया।
उसकी बात "चंदन" मजाक हो गई।।

Added by nemichandpuniyachandan on May 15, 2011 at 5:30pm — 1 Comment

कैसे दोगे पीर ...?

स्वाती की बूंदों सा टपका

स्नेह, बन गया मोती

विरहा चातक जलता फिरभी

बन दीपक की ज्योती...



नयनों में छवि छोड़ सदा को

चाँद बस गया दूर…

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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 15, 2011 at 8:25am — 5 Comments

ग़ज़ल : नासूर है ...

फ़िक्रमंदों का अज़ब दस्तूर है 
ज़िक्र हो बस फिक्र का मंज़ूर है
 
जो कभी इक शे'र कह पाया नहीं 
वो मयारी हो गया मशहूर है
 
जो किसी परचम तले आया नहीं
वो नहीं आदम भले मजबूर है
 
मोड़ औ नुक्कड़ ज़हां के देख लो 
ये कंगूरा  तो बहुत मगरूर है
 
चन्द साँसों का सिला जो ये मिला 
चौखटों की शान का मशकूर है
 
ये कसीदे शान में किस की…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 15, 2011 at 1:30am — 9 Comments

एक गीत...

आप सभी ने मेरी ग़ज़लों को सराहा...धन्यवाद के साथ हिंदी का एक गीत आप सबके समक्ष रख रहा हूँ...आशा करता हूँ कि इसके लिए भी आप लोगों का आशीर्वाद मुझे पूर्ववत मिलेगा...

= सावन के अनुबंध =

सावन के अनुबंध...

            नयन संग सावन के अनुबंध..... 

रिश्तों की ये तपन कर गई, मन…

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Added by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 4:49pm — 4 Comments

कुछ पल

कुछ पल चलना चाहता हू मैं ,…
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Added by Ravindra Koshti on May 14, 2011 at 1:30pm — 2 Comments

मेरी अपनी दो ग़ज़लें....

साथियो,

सादर वंदे,

मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......

 

= एक =

रूह शादाब कर गया कोई.…

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Added by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 9:00am — 13 Comments

एक आरजू

मेरी आवाज़ में कुछ ऐसा असर हो जाये !

याद  जिसको मै करूँ उसको खबर हो जाये !!


काश तशरीफ़…
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Added by Hilal Badayuni on May 14, 2011 at 5:30am — 8 Comments

महीन रेशम की डोरी है ये.

mere dost sankalp sharma ki sagaye pe kuch bhav vyakat karne ki koshish mai ye gahzal huee hai. umeed hai aapko pasand ayegi ..



---



महीन रेशम की डोरी है ये, ना ज़ोर इस पे तुम आज़माना

जहाँ ज़रूरत हो जीतने की, बस यूँ ही करना तुम हार जाना



न देखना एक दूसरे को...... भले ही आँखों मे प्यार क्यूँ हो

जो देखना हो, वो साथ देखो बस इक तरफ ही नज़र उठाना



कभी जो जाओगे बृंदावन तो बुलाना राधा ही राधा उसको

कन्हिया जो हो कहाना खुद तो, हां कान्हा जैसे नज़र… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on May 13, 2011 at 1:00pm — 9 Comments

GAZAL by AZEEZ BELGAUMI

ग़ज़ल 



अज़ीज़ बेलगामी



हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए

हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए



अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार

जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए



वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं

थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए



मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब

मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए



दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ

किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए



गुलशन के बीच खिलने लगे…
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Added by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 10:11am — 16 Comments

शाया हो गया

जो  कहा,वो,कह न पाया हो गया 
शब्द का सब अर्थ जाया हो गया
 
आदमी अब इक अज़ब सी शै बना 
आज अपना कल पराया हो गया
 
बाप उस दिन दो गुना ऊंचा हुआ 
जब कभी बेटा सवाया हो गया
 
ज़िन्दगी दी और सिक्के पा लिए 
सब कमाया बिन कमाया हो गया
 
जब दिमागों की सड़न देखी गयी
आसमां तक बजबजाया हो गया
 
कल नये रंगरूट सा भर्ती हुआ
चार दिन…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 6:00am — 5 Comments

सामयिक गीत : देश को वह प्यार दे दो... ----संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत :

देश को वह प्यार दे दो...

संजीव 'सलिल'

*

रूप को अब तक दिया जो,

देश को वह प्यार दे दो...



इसी ने पाला हमें है.

रूप में ढाला हमें हैं.

हवा, पानी रोटियाँ दीं-

कहा घरवाला हमें है.



यह जमीं या भू नहीं है,

सच कहूँ माता मही है.

देश हित हो ज़िंदगी यह-

देश पर मरना सही है.



आँख के सब स्वप्न दे दो,

साँस का सिंगार दे दो...

*

देश हित विष भी पियें हम.

देश पर मरकर जियें हम.

देश का ही गान… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments

गीत - तिनका तिनका लौटा दे



हे परोपकारी भगवन

तू रीते घट भर दे

सूखे ताल तलैया भर दे

पथिको को छैया दे…

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Added by vimla bhandari on May 11, 2011 at 1:37pm — 3 Comments

प्यार की वैज्ञानिक व्याख्या

क्या?

प्यार की वैज्ञानिक व्याख्या चाहिए

तो सुनो

ब्रह्मांड का हर कण

तरंग जैसा भी व्यवहार करता है

और उसकी तरंग का कुछ अंश

भले ही वह नगण्य हो

ब्रह्मांड के कोने कोने तक फैला होता है



आकर्षण और कुछ नहीं

इन्हीं तरंगों का व्यतिकरण है

और जब कभी इन तरंगों की आवृत्तियाँ

एक जैसी हो जाती हैं

तो तन और मन के कम्पनों का आयाम

इतना बढ़ जाता है

कि आत्मा तक झंकृत हो उठती है

इस क्रिया को विज्ञान अनुनाद कहता हैं

और आम इंसान

प्यार



इसलिए… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2011 at 1:04pm — 5 Comments

मैं जंगल का मोर

मैं जंगल का मोर
शहर में कैसे नाचूँ....
कहाँ मेरी चित चोर 
मैं जिनके नैना बाचूँ
दिखे मेरी मन मीत
कुहू कर उसे बुलाऊँ
छलके मन की प्रीत
झूमकर नाचूं गाऊँ 

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 11, 2011 at 8:42am — No Comments

दूध का क़र्ज़

दूध का क़र्ज़



गंगा नहा आए जमुना नहा आए -2

क़र्ज़ तेरे ढूध का माँ कोई चुका ना पाए-२

काशी जा आए,मथुरा जा आए-२

भूलते नहीं माँ तेरी ममता के साए-२

गंगा नहा आए ज----------------

(१) बिन तेर दुनियां में कोई ना मेरा-2

बिन तेर सूना माँ रैन बसेरा-2

नींद ना आए माँ अखियों में बिन तेरे-२

बिन तेरे लोरी माँ कोई सूना ना पाए-२

गंगा नहा आए ज---------------

(२)उंगली पकड़कर चलना सिखाया-२

हर दुःख ग़म से हमको बचाया-२

तू ही बचाए माँ हर इक मुसीबत… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 4:03pm — 2 Comments

औरत एक औरत भी है

औरत कभी मां है

कभी बहन, कभी बेटी

तो कभी पत्नी या प्रेयसी

इन सबसे अलग

औरत एक औरत भी है

 

अपने आप में मरती है

उफ! तक भी नहीं करती है और

पुरूष के अहं मो टूटने से

बचाए रखती है

 

वह जानती है

पुरूष एक बार टूट जाएगा तो

दुबारा जुड़ नहीं पाएगा

जबकि औरत?

 

औरत ने पाई है मिट्टी की प्रकृति

टूटते ही अपने आंसुओं से

गुथेगी खुद को, और जुड़ जाएगी

नई…

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Added by rajendra kumar on May 10, 2011 at 1:42pm — 2 Comments

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