आप सभी ने मेरी ग़ज़लों को सराहा...धन्यवाद के साथ हिंदी का एक गीत आप सबके समक्ष रख रहा हूँ...आशा करता हूँ कि इसके लिए भी आप लोगों का आशीर्वाद मुझे पूर्ववत मिलेगा...
= सावन के अनुबंध =
सावन के अनुबंध...
नयन संग सावन के अनुबंध.....
रिश्तों की ये तपन कर गई, मन मर्यादा भंग,
हल्दी, सेंदुर, माहुर, हम, तुम, कितने प्राकृत रंग,
जीवन के बंधन सारे यूँ आज हुए स्वच्छंद ......
नयन संग सावन के अनुबंध...
तुम और मुझ से- हम तक आते, सदियाँ बीत गईं,
अब कैसा खोना-पाना, जब सांसें रीत गईं,
फूल, सितारे, ख़ुशबू, तुम, हम- जीवन के छलछंद ....
नयन संग सावन के अनुबंध...
Comment
बहुत ही खुबसुरत गीत बनाया है आपने नमन जी!
आप सभी विद्वतजनों का आभार...
आशा करते हैं कि आप सब का यही स्नेह सदैव बना रहेगा....
पुनःश्च आभार....
तुम और मुझ से- हम तक आते, सदियाँ बीत गईं,
अब कैसा खोना-पाना, जब सांसें रीत गईं,
सुन्दर भाव से रचा गीत ..आवश्यक सूचना:-
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