एक ग़ज़ल
धुंधले हैअक्स सारे,कुछ तो दिखाइये
इस बोदे आईने को थोडा हटाइये
सावन के आप अंधे,दीखेगा ही हरा
रुख दूसरे के जानिब चेहरा घुमाइये
अरायजनवीस लाखों जीते तो मिल गये
अब हार की सनद ये किस से लिखाइये
कैसे करेंगे अब हम खेती गुलाब की
गमलों की है रवायत,कैक्टस उगाइये
खाली हुई चौपाल और उजड़ा हुआ अलाव
हुक्का है…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 1:09am — 1 Comment
आंधी थी जो कर गयी,आँगन आँगन रेत
आई थी तो जायेगी,कहाँ रेत को हेत
रात चांदनी दूर तक टीलों का संसार
अळगोजे*की तान में बिखरा केवल प्यार
हडकम्पी जाड़ा पड़े,चाहे बरसे आग
सहज सहेजे मानखा माने सब को भाग
सतरंगी है ओढ़नी,पचरंगी है पाग
जीवन चाहे रेत हो मनवा खेले फाग
सुबह हुई कुछ और था,सांझ हुई कुछ और
आदम की नीयत हुआ,इन टीलों का तौर
…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 12:49am — No Comments
Added by rajkumar sahu on February 17, 2011 at 12:23am — No Comments
Added by Ratnesh Raman Pathak on February 16, 2011 at 6:42pm — No Comments
‘शीशी-बोतल तोड़ दो, दारू पीना छोड़ दो’, ‘शराब दुकान हटाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ’, ‘सरकार को जगाना है, नशामुक्त समाज बनाना है’ जैसे कई नारे लगाते हुए नवागढ़ की सैकड़ों महिलाएं शराब दुकान बंद कराने सड़क पर उतर आईं। महिलाआंे ने कचहरी चौक जांजगीर से रैली की शुरूआत की, जो विवेकानंद मार्ग होते हुए बीटीआई चौक पहुंची और फिर कलेक्टोरेट पहुंची। यहां कलेक्टर को महिलाओं ने एक ज्ञापन सौंपा और शराब दुकान को अगले वित्तीय वर्ष से बंद कराने की मांग की। यहां कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने मामले में राज्य षासन को अवगत कराने…
ContinueAdded by rajkumar sahu on February 16, 2011 at 12:47pm — No Comments
तब और अब
कुशल छेम पूछत रहे , दिल में राखी सनेह I
चले गए वे लोग सब, तजि मानुष के देह II
समय समय का खेल यह, भला बुरा न होय I
कारन सदा अदृश्य है, जानि सके न कोय II
चला गया सो चला गया , वर्तमान को जान I
आगे क्या फिर आएगा , उसको भी पहचान…
Added by R N Tiwari on February 16, 2011 at 12:17pm — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on February 15, 2011 at 9:30pm — No Comments
Added by अमि तेष on February 15, 2011 at 7:30pm — No Comments
Added by Rohit Singh Rajput on February 15, 2011 at 4:30pm — 3 Comments
Added by neeraj tripathi on February 15, 2011 at 4:07pm — No Comments
कुछ अहसास हर अहसास से परे
कुछ अरमान उम्मीदो से भरे
गम है लिखे मुक्कदर में सभी
केमहबूब का साथ हर गम हरे
किताब की लिखावट तो नीरस
हैशब्दों की बनावट भी नीरस है
गुलाबों सा महकता महबूब का प्रेम पत्र
लिये जिंदगी का हर रस है
दुनिया में अस्तित्व हीन हूँ
सनम ही मेरी दुनिया है
उसी में डुबा रहूँ ताउम्र
सनम ही मेरा अस्तित्व हैं
मिलन यामिनी में साथ बैंठे
खुला आसमा ताकते है
चाँद को…
ContinueAdded by Mayank Sharma on February 15, 2011 at 3:30pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on February 15, 2011 at 1:19am — No Comments
Added by R N Tiwari on February 14, 2011 at 5:57pm — No Comments
Added by Lata R.Ojha on February 14, 2011 at 5:27pm — 4 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 2:30pm — 10 Comments
Added by Aakarshan Kumar Giri on February 13, 2011 at 10:00am — 3 Comments
Added by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 13, 2011 at 9:01am — 8 Comments
Added by अमि तेष on February 13, 2011 at 12:28am — No Comments
चिड़िया तुम चहचहाइ
पौ फटने पर
तुम्हारे चहचहाने पर ही है
दारोमदार पौ फटने का.
अँधेरे को फाड़ कर निकलता
सिन्दूरी सूरज का गोला
चमत्कार है तुम्हारी ही आस्था का
तुम्हारी ही आस्था ने बिखेरे है
जीवन में रंग
पेड़ों को पराग
गेंहूँ को बाली
आदमी को भरा धान का कटोरा
मिला है तुम्हारे ही गीतों से
जानता हूँ आदमी आजकल
धान का कटोरा नहीं
बन्दूक की गोली लिये
ढूँढता है तुम्हे
पर…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 12, 2011 at 10:30pm — No Comments
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