जो कल उन्मुक्त बेखौफ़ चलती थी
आज अकेले खामोश बैठी है
कल तक जिसका अलग अस्तित्व था
अब दुसरो से पहचान ही उसका अस्तित्व होगा
कल तक जो हर जिम्मेदारी से बचती थी
मदमस्त उल्लासित हो चहकती थी
अब दूसरो की जिम्मेदारी संभालेगी
अपनी हँसी लुप्त कर दूसरो को सँवारेगी
दुल्हन के सुर्ख लाल जोड़े में
एक बंदनी की भाँति लग रही
फ़ेरो की पवित्र अग्नि में
उसकी ख्वाहिशे सुलग रहीं
सर पर जड़ित स्वर्ण टीका
उसके विषाद मे…
ContinuePosted on March 27, 2011 at 3:00pm — 1 Comment
कुछ अहसास हर अहसास से परे
कुछ अरमान उम्मीदो से भरे
गम है लिखे मुक्कदर में सभी
केमहबूब का साथ हर गम हरे
किताब की लिखावट तो नीरस
हैशब्दों की बनावट भी नीरस है
गुलाबों सा महकता महबूब का प्रेम पत्र
लिये जिंदगी का हर रस है
दुनिया में अस्तित्व हीन हूँ
सनम ही मेरी दुनिया है
उसी में डुबा रहूँ ताउम्र
सनम ही मेरा अस्तित्व हैं
मिलन यामिनी में साथ बैंठे
खुला आसमा ताकते है
चाँद को…
ContinuePosted on February 15, 2011 at 3:30pm
यौवन आते ही उन्मुक्त हो उठे
उन्माद में भयमुक्त हो उठे
जमीं से कहा उगे थे जो
आसमा से उँचे हो उठे
पहली आजादी के अहसास से
खुलेपन की सास से
चलना कहा सिखा था
गिर पड़े उड़ने के कयास से
हवाओं से बाते करते थे
रफ़्तारो से मुलाकातें करते थे
कब मौत ने जिंदगी को पछाड़ दिया
हम तो आपसी हौड़ लगाया करते थे
फ़िक्र को धुआ करने मे
सूखे कंठ में मिठास भरने मे
कश लगाया पहली बार
हर…
ContinuePosted on January 16, 2011 at 2:19pm
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Comment Wall (5 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें !
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…