For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,939)

-:प्रेम के कुछ मुक्तक:-

"कम से कम दो कदम प्रेम पथ पर चलें"…




Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 1:30am — 13 Comments

हाइकु गीत



 खुद बेवफा

 दूसरों से चाहते

 करें वो वफा |…

Continue

Added by dilbag virk on March 2, 2012 at 8:42pm — 6 Comments

वक़्त का वज़ूद

वक़्त का वज़ूद

वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वज़ूद

दिखता है चेहरे की गहराती लकीरों में

या मिलता है जीवन की भूलभुलैया में

स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद

है अब भी मेरे होने की महक

सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक ।

चलती थी एक गुड़िया उँगलियों को थामे

उन काँपती बेजान हाथों की नरमी

और छुपी उनमे उनके नेह की गरम

उन्हीं थापों से बीतती हैं रातें ,हँसती है शामें ।

चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से

जीवन को गुज़रता देखा सामने से

अतीत के गर्त में…

Continue

Added by kavita vikas on March 2, 2012 at 7:34pm — 6 Comments

अंतस का कोना...

बतकही कितनी भी
कर लूँ
रहता है खाली खाली
अंतस का कोना
ढोल बजा लूँ कितनी भी
रहता है सुना सुना
अंतस का कोना
शब्दों का मायाजाल है
जिंदगी का ख्याल है
कोशिश कितनी भी कर लूँ
रहता उदास है
अंतस का कोना
इश्वर के दरबार में
सब के लिए अरदास है
चलो अक दीप जला लूँ
जुगनुओ को दोस्त बना लूँ
अपनेपन के शोर से
गुंजित कर लूँ
अंतस का कोना.....

Added by MAHIMA SHREE on March 2, 2012 at 5:52pm — 9 Comments

मेरे कुछ हाइकू...( 5 - 7- 5 )

1.

प्रकृति प्यारी 

रुई बिछी धरती

ये बर्फ़बारी .

२.

मुखौटे छाए

जनमानस लुटा

चुनाव आये .

३.

उड़ते गिद्ध

फिर मारा आदमी

लो आया युद्ध .

४.

ये दुपहरी 

अलसाया शरीर

जेठ का माह .

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments

"तेरे मेरे बीच हैं"

यही है ख़ुदाई उसकी, छोटी सी ये इल्तजा,

जो कभी की थी उससे, पूरी वो न कर सका;


तेरे मेरे बीच हैं अब, मीलों के फ़ासले

कभी सामने थे तुम, आज हो गए परे


तेरे मेरे बीच…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 2:00pm — 21 Comments

रिक्त

मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से 

खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे



बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर 

फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे 



युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 

लग रहा फिर भी…

Continue

Added by Anand Vats on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments

जबान पर मसाला

हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,

अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.



पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,

जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 10:30am — 20 Comments

इंतज़ार बस इंतज़ार.............

है प्रियवर,  तुम  कब  आओगे  भेजो  तुम  सन्देश 

थक  गई  मोरी  अँखियाँ अब  तो  भेजो  तुम  सन्देश 

भेजो  तुम  सन्देश  प्रिये  तो झपकूँ अपने  नैन 

राह  तकूँ मै हर  आहट पे  देखूँ  द्वारे …

Continue

Added by Monika Jain on March 1, 2012 at 11:30pm — 7 Comments

ज़िंदगी क्या है..



मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,

तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..



ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,

ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,

तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..



किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,

सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,

तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..



किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,

किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके…

Continue

Added by Aditya Singh on March 1, 2012 at 5:54pm — 8 Comments

कन्या भ्रूण हत्या ..हाइकू ( ५-७-५ )

शोख सी परी .

ज्यों बनी, खून सनी.

कोख में मरी.

 

( शोख = चंचल ; कोख = माँ का गर्भाशय / Uterus ) 

 

 रचयिता  : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 4:08pm — 5 Comments

सीलन...

हर सुंदर

प्रभात वेला में

प्रतिदिन

मैं पाता हूँ

स्वयं को

सीलन भरी लकड़ी सा

जो चाहती है

सुलगना

और...

सुलगना भी

इस तरह की

उसमें होम हो जाए

सीलन .

सीलन अहम् की

बहुत सारे 

भ्रम की

मेरी हमसफ़र !

आओ ...

पवित्र अग्नि में

प्यार की .

भस्म कर दें

सीलन

हृदयों के

संसार की .

.

.

करोगी स्वीकार ?

मेरा निमंत्रण !!

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

सकून

सच्चाई को खोजने चला था,

झूठ ही झूट मिले,

मोहब्बत खोजने चला,

तो बेवफाई मिली,

जब खोजना छोड़ दिया,

तो तन्हाई मिली,

अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,

जो चाहा था बेवजह था

जो मिला है बेइंतहा है

यूही भटक रहा था

अब सकून ही सकून है |

Added by Sanjeev Kulshreshtha on March 1, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

"दुआ"

है अर्ज़ जो तेरी मैं दूँगी उसे सुना,

हौले से मेरे कान में कहती है ये सबा;

*

अल्फ़ाज़ बहुत आसमाने दिल पर उमड़ रहे हैं,

कोई नहीं बरसता मगर बनकर मेरी दुआ;…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 11:30am — 26 Comments

मुक्ति ......

सुंदर -असुंदर

रूप-रंग

उच्च-नीच

उतार-चढ़ाव

गुड़िया-गहने

बादल-बिजली

फूल-काँटे

जीत-हार

अपना-पराया

मान-अपमान…

Continue

Added by MAHIMA SHREE on February 29, 2012 at 11:00pm — 12 Comments

माँ

बचपन का क्या बयान करू, कुछ याद नहीं रहा दुनियादारी में, 

बस ये नहीं भूला की माँ जागती थी रात भर, मेरी हर बीमारी में. …

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on February 29, 2012 at 7:30pm — 14 Comments

"मुद्दतें" - ग़ज़ल

हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;

कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;



कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,

मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 29, 2012 at 2:51pm — 37 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तुम्हारी प्रेरणा

उपलब्धियों के मंच पर 

जब भी  कोई तुमसे पूछता कि 
तुम्हारी सफलता के पीछे किसका हाथ है 
तुम हमेशा मुझको अपनी ताकत 
बताते रहे |और उसके बाद
करतल ध्वनी 
की गूंजती आवाज से 
मेरा वो प्रेम का एहसास 
और बुलंद और गर्वित होता चला गया|
याद आया है वो हमारे मिलन का पहला दिन 
जब तुमने मेरे हाथ को थामते हुए कहा था 
कि मेरे अस्तित्व को आज पंख 
मिल गए |
और…
Continue

Added by rajesh kumari on February 29, 2012 at 1:52pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
फागुनी दोहे



फाग बड़ा चंचल करे, काया रचती रूप !

भाव-भावना-भेद को, फागुन-फागुन धूप !!



फगुनाई ऐसी चढ़ी,  टेसू धारें आग

दोहे तक तउआ रहे,  छेड़ें मन में फाग ॥



भइ, फागुन में उम्र भी करती जोरमजोर

फाग विदेही कर रहा, बासंती बरजोर !!…



Continue

Added by Saurabh Pandey on February 29, 2012 at 7:30am — 21 Comments

दस फागुनी दोहे -

दस फागुनी दोहे -

मन में संशय न रहे खुले खुले हों बंध ,

नेह छोह के पुष्प से निकले मादक गंध |

 

हुलस उलस इतरा रहे गोरी तेरे अंग ,

मेरे मन बजने लगे ढोल मजीरा चंग |

 

गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र ,

तू कानो में फूंकती आज मिलन के मन्त्र |

 

रंग लगाने के लिए तू बैठी थी ओट ,

मेरा मन…

Continue

Added by Abhinav Arun on February 29, 2012 at 7:30am — 26 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"///तंग" के मात्रा पतन में मुझे भी संशय है// इस शब्द में मात्रा पतन नहीं है बल्कि लुग़त के हिसाब…"
7 minutes ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जनाब अमीर जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें । 'उकता गये जहान की…"
10 minutes ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जनाब संजय शुक्ल जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें । दूसरे शे'र…"
18 minutes ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"इस ग़ज़ल पर अच्छी चर्चा हुई है,उसे पढ़े बग़ैर आप ग़ज़ल की तारीफ़ कर रहे हैं? ये ओबीओ की परिपाटी नहीं है ।"
32 minutes ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"क्या आप भी ओबीओ की परिपाटी भूल गए,और बिना ग़ज़ल पर हुई चर्चा पढ़े बग़ैर टिप्पणी करदी?"
35 minutes ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है, गुणीजन के…"
38 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
42 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी आ सुधार किया गया है ग़ौर कीजियेगा हर शख़्स को मिली हैं यहाँ अपनी इक नज़र "क्यों देखें…"
50 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"बहुत बहुत शुक्रिया आ हौसला अफ़ज़ाई का"
57 minutes ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, तरही मिसरे पर मज़ाहिया ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय आज़ी जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। चर्चा भी अच्छी हुई। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service