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ज़िंदगी क्या है..


मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,
तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..

ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,
ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,
तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..

किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,
सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,
तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..

किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,
किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके मुस्काना,
हंसी अपनी या तड़प ग़ैर की, खुशी क्या है..

कोई दरिया लिए दिल में है, मग़र हंसता है,
कोई देता है दहाड़ें, तो होंठ कसता है,
निरा बाज़ार नकल्लों का है, असली क्या है..

सिवा इंसान, मारे उतना जितना खा पाए,
यही बस एक, जितना खाए, भूख बढ़ जाए,
ना जाने कौन जानवर है, आदमी क्या है..

कोई नख़रे में हो नाराज़, और ना बात करे,
कोई क़ाबिल, किसी मजबूर का ना साथ करे,
है बेबसी या गुनाह, या है बेरुखी, क्या है..

जिसे नदिया मिली बहती, वो चाहे दरिया को,
जिसे इक बूंद नहीं, ताके वो गगरिया को,
है दुआ कौन खरी, सच्ची तिश्नगी क्या है..

किसी को दिल में बसा लेना, उम्र भर के लिए,
किसी नए का साथ, हर नए सफ़र के लिए,
है बला क्या ये इश्क़, और-ये दिल्लगी क्या है..

मैं तुझको कब तलक गिनाऊं, के कमी क्या है,
तू मुझको अब तो ये बता, के ज़िंदगी क्या है..

**********************************************
एक मक़ता इस नज़्म से अलग, पर इसी क़ाफ़िए पर:

"कोई शायर है, या पागल है, दिवाना है कोई,
ये जिसका नाम है 'घायल', ये वाक़ई क्या है.."
**********************************************

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Comment by Aditya Singh on March 5, 2012 at 8:27pm

Sabhi ka bahut bahut shukriya.. mujhe behad khushi hai ki aap sab ko meri rachna pasand aai :)

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 12:30pm

कोई दरिया लिए दिल में है, मग़र हंसता है,
कोई देता है दहाड़ें, तो होंठ कसता है,
निरा बाज़ार नकल्लों का है, असली क्या है..

सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2012 at 10:47pm

सुन्दर प्रस्तुतिकरण .. . बधाई.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 12:52pm

bahut khub Aditya ji, sadar badhai.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 12:07pm

सवालों पर आधारित आपकी यह नज़्म वास्तव में प्रशंसनीय है| साभार,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 11:39am

जिसे नदिया मिली बहती, वो चाहे दरिया को,
जिसे इक बूंद नहीं, ताके वो गगरिया को,
है दुआ कौन खरी, सच्ची तिश्नगी क्या है..vaah...vaah har ek sher kabile daad hai badhaai kabool kijiye.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2012 at 10:14am

किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,
किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके मुस्काना,
हंसी अपनी या तड़प ग़ैर की, खुशी क्या है..

वाह वाह, सवालों के सायें में कही गई यह नज्म बहुत ही सुन्दर है, कहन भी बेहतरीन है, मन में उमड़ते घुमड़ते हुयें सवालों को आपने जुबान दे दिया है, बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 1, 2012 at 10:54pm

किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,
सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,
तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..

bahut sundar bhav evam prastutikaran. kushwaha 

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