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मेरे कुछ हाइकू...( 5 - 7- 5 )

1.

प्रकृति प्यारी 

रुई बिछी धरती

ये बर्फ़बारी .

२.

मुखौटे छाए

जनमानस लुटा

चुनाव आये .

३.

उड़ते गिद्ध

फिर मारा आदमी

लो आया युद्ध .

४.

ये दुपहरी 

अलसाया शरीर

जेठ का माह .

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

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Comment

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 1:42pm

शानदार प्रस्तुति| बधाई| साभार,

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 12:13pm

सुंदर कृतित्व बधाई स्वीकार करें 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 12:00pm

adarniya mahoday ,

sahitya jagat main naya hoon, hiku pahli baar jaan raha hun. vidha kya hindi group join karne par sikhne ko milegi. 

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 3, 2012 at 11:17am

आदरणीया राजेश कुमारी जी व माननीय श्री योगराज प्रभाकर जी ( योगराज भाई साहिब आप ने ही मार्गदर्शन किया था मेरा की ये विधा मात्रा व लय की द्रष्टि से कैसी होने चहिये .तभी से मैं प्रयासरत हूँ ..गुरु सम भ्राता  को सादर नमन )..आप दोनों प्रबुद्ध साहित्यकारों का धन्यवाद व नमन .


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:54am

बहुत सुन्दर हाइकू, कथ्य और शिल्प की दृष्टि से उत्तम. हार्दिक बधाई डॉ अजय जी. 

.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2012 at 8:35am

sabhi haaiku uttam hain varn paimaane ke aadhar par bhi khare utarte hain.bahut badhaai.

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