है प्रियवर, तुम कब आओगे भेजो तुम सन्देश
थक गई मोरी अँखियाँ अब तो भेजो तुम सन्देश
भेजो तुम सन्देश प्रिये तो झपकूँ अपने नैन
राह तकूँ मै हर आहट पे देखूँ द्वारे ओर
ना जाने क्यों आज भ्रमित हो मेरा मन घबराये
मेरा मन घबराये प्रियवर क्यों तुम मुझको बिसराए ?
अपने मन की आकुलता को केसे मैं समझाऊँ ?
कैसे मै समझों प्रिये कि तुम बिन जीवन सुना - सुना है
मेरी पीड़ा के सागर को मथने तुम कब आओगे ?
इसी प्रश्न के उत्तर हेतु तुमको पाती भेज रही I
है प्रियवर तुम कब आओगे तुम कब आओगे ......
मोनिका जैन "डॉली"
Comment
भाव पूर्ण रचना पर बधाई स्वीकार करें
बहुत सुन्दर प्रयास है मोनिका जी, जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं. कृपया आदरणीय सौरभ जी की बात पर भी गौर फरमाएँ
.
मोनिकाजी, इस रचना को गेय बनाया जा सकता था. भाव और शब्द के साथ कहन-विधा भी एक तत्त्व है न !
भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति हेतु बधाई. शुभेच्छा.
सुन्दर भावों की प्रस्तुति मोनिका जी| आभार..
virah ki agan virah vedna ko prastut karti hui rachna bahut sundar.
थक गई मोरी अँखियाँ अब तो भेजो तुम सन्देश
sundar bhav, badhai
मोनिका जी, दिल में उठ रहे भावनाओं को अनगढ़े रूप में जस की तस रख दी है, बढ़िया है, कविता की पहलु पर और कसने की जरुरत है, संभावनाएं आप में बहुत है , आप यूँ ही लिखती रहिये , बधाई इस प्रयास पर |
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