काव्यगोष्ठी , परिचर्चा
कभी किसी विषय का विमोचन ,
आये दिन होते रहते
कविता पाठ के मंचन .
बाज़ न आते आदत से
ये कवियों की जो जात है .
वाह -वाह क्या बात है !
वाह -वाह क्या बात है !
इन्हें आदत है बोलने की
ये बोलते जायेंगे ,
हमारा क्या है , हम भी
सुनेंगे , ताली बजायेंगे .
पल्ले पड़े न पड़े , कोई फर्क नहीं
बस ढiक का तीन पात है .
वाह -वाह क्या बात है !
वाह -वाह क्या बात है !
ये निठल्ले , निकम्मे कवि
बे बात के ही पड़ते…
Added by praveen singh "sagar" on November 3, 2012 at 2:00pm — 7 Comments
वचन दिया जो तुमने प्रीतम
जीवन भर साथ निभाने का
पवित्र अग्नि को साक्षी मान
परिस्तिथियों से ना घबराने का
साथ फेरों का बंधन दे
अपना बनाया मेरा मन
हर ख़ुशी कर, मुझे अर्पण
प्रेम की ज्योति चित जगा
कदम मिलाकर चलूंगी में भी
बन संगनी तेरी हमदम
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
तुझे निहारूं
लम्बी उम्र की दुआ मैं मांगूं
नेत्र में तेरा अक्स बना
तुझे मैं चाहूं उम्र भर
हर पल और जीवन…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 3, 2012 at 1:07pm — No Comments
पापा मम्मी आप भी आओ
उन पुरानी गलिओं से फिर
ख्याल अपने दिल तक आये
आँगन में थे खिलते उन कलियों से
सवाल अपने दिल तक आये
दौरते आते सारे किस्से
कोई बैठकर मुझे सुनाओ
आँखे तरस रही दर्शन को
पापा मम्मी आप भी आओ
गहरी जाती उन घाटीयों से
संकराति गूंजे घूम रही हैं
चट्टानों पे रेत की बूंदे
अब भी मानो झूम रही हैं
भूलते जाते उन पन्नो से
पुरानी कुछ गजलें सुनाओ …
Added by AJAY KANT on November 3, 2012 at 12:27pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2012 at 11:23am — 2 Comments
जब कभी मेरी बात चले
ख़्वाब में भी कोई ज़िक्र चले
मेरे हमदम मेरे हमराज़
यूं ही खामोश रहो
शायद ही कभी
ठिठुरते हुए बिस्तर पे
कभी चांदनी बरसे
या फिर झील के ठहरे हुए पानी में
कभी लहरे मचले
जब कभी आँखों के समंदर में
कोई चाँद उतरे
मेरे हमदम मेरे हमराज
यूं ही खामोश रहो…
Added by Gul Sarika Thakur on November 2, 2012 at 10:05pm — 9 Comments
गीत:
उत्तर, खोज रहे...
संजीव 'सलिल'
*
उत्तर, खोज रहे प्रश्नों को, हाथ न आते।
मृग मरीचिकावत दिखते, पल में खो जाते।
*
कैसा विभ्रम राजनीति, पद-नीति हो गयी।
लोकतन्त्र में लोभतन्त्र, विष-बेल बो गयी।।
नेता-अफसर-व्यापारी, जन-हित मिल खाते...
*
नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।
भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।
दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...
*
एक हाथ से दे, दूजे से ले लेता है।
संविधान बिन पेंदी नैया खे लेता…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 5:56pm — 7 Comments
मौत भी अब तो बहाने बनाने लगी है दोस्तों
देखकर उनको ये भी नखरे दिखाने लगी है दोस्तों
हार जाना ही था शायद हिम्मत को मेरी
किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों
क्या थी जिन्दगी और क्या हो गई है
रौशनी भी अब डराने लगी है दोस्तों
खो गये मेरे ख्वाब इस शहर में न जाने कहाँ
हकीक़त ही बस अब भाने लगी है दोस्तों
हो गई दोस्ती मेरी गमो से कुछ यूँ
खुशियाँ अब मुझको रुलाने लगी है दोस्तों
कहो तुम ही अब अंजाम-ए-जिन्दगी क्या हो…
Added by Sonam Saini on November 2, 2012 at 1:55pm — 12 Comments
मूक हो गई
रांगा माटी
नीरव नभ
अनुनाद
रम्य तपोवन
गुमशुम-गुमशुम
झर गए पारिजात
कासर घंटे
ढाक सोचते
ढूंढ रहे
वह नाद
भरे-भरे मन
प्राण समेटे
भींगे सारी रात
कमल-कुमुदिनी
मौन मुखर हैं
कहां भ्रमर
कहां दाद
पंकिल पथ पर
हवा पूछती
कैसे ये संघात
जाओ अपने
देश को पाती
यह पता
कहां आबाद
अपनी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on November 2, 2012 at 1:28pm — 3 Comments
विवाह : एक दृष्टि
द्वैत मिटा अद्वैत वर...
संजीव 'सलिल'
*
रक्त-शुद्धि सिद्धांत है, त्याज्य- कहे विज्ञान।
रोग आनुवंशिक बढ़ें, जिनका नहीं निदान।।
पितृ-वंश में पीढ़ियाँ, सात मानिये त्याज्य।
मातृ-वंश में पीढ़ियाँ, पाँच नहीं अनुराग्य।।
नीति:पिताक्षर-मिताक्षर, वैज्ञानिक सिद्धांत।
नहीं मानकर मिट रहे, असमय ही दिग्भ्रांत।।
सहपाठी गुरु-बहिन या, गुरु-भाई भी वर्ज्य।
समस्थान संबंध से, कम होता सुख-सर्ज्य।।
अल्ल गोत्र कुल आँकना, सुविचारित…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 11:08am — 3 Comments
गीत:
समाधित रहो ....
संजीव 'सलिल'
+
चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,
कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।
दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-
कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।
जो जताते हैं हक वे न सच जानते,
जानते भी अगर तो नहीं मानते।
'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-
रार सच से सदा वे रहे ठानते।।
दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,
मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।
राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-
बाँटता रौशनी, दीप होता…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 10:06am — 8 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2012 at 8:26pm — 10 Comments
नीला नभ
फिर निखर गया
लौट चले
बादल के यूप
कच्चे गुड़ की
गंध समेटे
नाच रही
मायावी धूप
खिलखिल करती
कास की पंगत
कासर घंटे
अगरू धूप
फुदक रही
फिर से गौरैया
माटी सोना
चांदी धूप
Added by राजेश 'मृदु' on November 1, 2012 at 5:00pm — No Comments
उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !
“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on November 1, 2012 at 3:30pm — 10 Comments
Added by shikha kaushik on November 1, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
मेरे घर में आँगन नहीं है,
देहरी और दहलीज नहीं है ,
दरवाजे से सांखल गायब ,
दस्तक देती तहजीब नहीं है ,
मेरा घर पत्थरों के शहर में बसता है
|
मेरे घर की पास की गलियां ,
जब तब रोतीं हैं बिन घूँघट के,
किसी के आने की उम्मीद लगाये,
रात को भी ये जागती रहती हैं ,
मेरा घर पत्थरों के शहर में बसता है
वर्तमान को पोषित करती भर्मित…
ContinueAdded by Er.vir parkash panchal on November 1, 2012 at 11:30am — 4 Comments
नज़र से उसकी नज़र मिल गयी
Added by Ranveer Pratap Singh on October 31, 2012 at 11:00pm — 2 Comments
अनायास
तरंगित कल्मषों
बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर
किसी निविड़ एकांत में
जब समस्त दिशाएं खो चुकी हों
अपनी पगध्वनि
सारे पदक्षेप
और तिरोहित हो चुके हों
निष्ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,
अपनी सारी भभक सारी तपिश
और साथ लेकर अपने
सारे चटकीले रंग
आना तुम भी
बस एक बार…
Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
रक्त से सनी
भूमि
सुर्ख नहीं
हरी भरी
फलती फूलती
कलकल निनाद से
बहती श्वेत धारा
धो डालती है
सारे पाप
गंगा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 31, 2012 at 4:00pm — 4 Comments
करवा चौथ -एक सत्य कथा (हास्य व्यंग) लघु कथा
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 31, 2012 at 3:56pm — 4 Comments
बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l
दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll
थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l
मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll
प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l
प्रभु संग मधुर मिलन, हुई…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 3:07pm — 16 Comments
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