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दोहा सलिला: नीति के दोहे संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला

नीति के दोहे

संजीव 'सलिल'

*

रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .

व्यर्थ  घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।



खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।

बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।



फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।

कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।



सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।

नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।





दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।

अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।…

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Added by sanjiv verma 'salil' on November 18, 2012 at 1:21pm — 1 Comment


सदस्य टीम प्रबंधन
आदरणीय योगराजभाईजी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

शब्द-पुष्पों का एक गुच्छा सादर प्रस्तुत है -- 

हर दिल  के  दरबार में,  बादशाह बेताज  

सहज-धीर-उद्भाव-नत, ओबीओ सरताज  

ओबीओ सरताज, पूर्ण जो जीवन जीता  

’जो कुछ है, वह सार’, सोच का सुगढ़ प्रणेता  …

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Added by Saurabh Pandey on November 18, 2012 at 11:30am — 25 Comments

"परमसत्ता अदृश्य का दृश्य हो जाना "

भीषण अंधकार

गहरा तम

डरावना सन्नाटा…

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Added by mohinichordia on November 18, 2012 at 9:05am — 3 Comments

वे तो हमारी कविता कम सुनते थे हम उनसे हमारी हास्य कवितायें ज्यादा सुनते थे

हिन्दू हृदयसम्राट श्री बाला साहेब ठाकरे के देहावसान से मुझे वैयक्तिक दुःख पहुंचा है . उनकी सुप्रसिद्ध कार्टून पत्रिका मार्मिक के वर्धापन समारोह हों या उनके नाती-नातिन के जन्म-दिवस समारोह, अनेक बार उनके साथ रंगारंग महफ़िलें जमती थीं जिनमे वे तो हमारी कविता कम सुनते थे हम उनसे हमारी हास्य कवितायें ज्यादा सुनते थे . अनेक कवियों की कवितायें उन्हें याद थीं और हू बहू उसी शैली में सुना कर तो वे विस्मित कर देते थे .…

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Added by Albela Khatri on November 18, 2012 at 1:00am — 3 Comments

अहवाल-ए-ज़वाल

२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२

पुर-शुआ पुर-शुआ था हमारा शहर, रोशनी में नहाया हुआ था समाँ,

आज लेकिन न जाने ये क्या हो गया, हो गया है अँधेरा अँधेरा जवाँ।



हैं तवारीख में दास्तानें सभी, वक्त की मार से खाक में मिल गये,

जो जवाहर सजाते रहे ताज में, और ताबे रहा जिनके सारा जहाँ।



उल्फतों से यही हाय कहता रहा, मैं तुम्हारा बना हूँ सदा के लिये,

पर अचानक उसी ने गज़ब ये किया, चल दिया ठोकरें दे न जाने कहाँ।



बन्द कर के निगाहें भरोसा किया, जानो…

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Added by इमरान खान on November 17, 2012 at 2:00pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
चौंच में लेकर तिनका ( कुण्डलिया )

लेकर तिनका चौंच में ,चिड़िया तू कित जाय

नीड महल का छोड़ के , घर किस देश बसाय

घर किस देश बसाय ,सभी सुख साधन छोड़े

ऊँची चढ़ती बेल , धरा पे वापस मोड़े

देख बिगड़ते बाल, माथ मेरा है ठनका

जाती अपने गाँव , चौंच में लेकर तिनका

***************************************

(अपने एक ख़याल के ऊपर बनाई यह कुंडली )

चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे…

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Added by rajesh kumari on November 17, 2012 at 11:00am — 18 Comments

चन्द्रबदन!

चन्द्रबदन!

तेरे कपोल पे तेरे नैनों का नीर

लागे जैसे सीप में मोती

शशी से भी तू सुन्दर लागे

जब ओढ़ चुनर तू है सोती

झरने सी तू चंचल है

सुन्दरता से भी सुन्दर है

सुगंध तेरी  जैसे कोई संदल

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…

 

तेरे केशों में…

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Added by Ranveer Pratap Singh on November 16, 2012 at 10:30pm — 8 Comments

मच्छर

        मच्छर

इस युग के दो महान प्राणी

जिनकी महिमा सबने जानी

लेता सब कुछ न कुछ देता   

एक  मच्छर दूसरा  है नेता

---------------------------------

गली नुक्कड़ हो या चौबारा 

हर जगह है इनकी पौ बारा 

जिनके बूते जग में हैं  पलते 

अवसर पा शरीर में डंक भरते 

---------------------------------

सूरत सीरत पे इनकी न जाओ 

लाख बचो इनसे पर बच न पाओ 

भुनभुना के मीठा संगीत सुनाते 

चुपके से  जनता का खून पी…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 16, 2012 at 5:02pm — 16 Comments

गिरती दीवारें सूने खलिहान है

गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है

चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है

जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है

लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है

हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है

Added by नादिर ख़ान on November 16, 2012 at 4:30pm — 12 Comments

ज़माना

               ज़माना 

             -------------

जनता देखो  आया अब  कैसा जमाना

कवि को मना  है आज कल मुस्कुराना 

लिखने पे पड़ता अब  इन्हें जेल जाना 

जनता देखो  आया अब  कैसा जमाना

--------------------------------------------

न खींचो अब कोई चित्र ये जंतु विचित्र 

बैठ कर सदन में खूब मौज लेते सचित्र 

ऐसा न  था कभी इनका चरित्र पुराना 

जनता देखो अब  आया कैसा जमाना 

------------------------------------------

उजले तन…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 16, 2012 at 2:52pm — 4 Comments

भारतमाता की जय-जय हो

विजय मिली है, सदा विजय हो।

भारतमाता की जय-जय हो॥

बेटों के उर लगन लगी है।

विश्वविजय की चाह जगी है॥

उनके बल का कभी न क्षय हो।

भारतमाता की जय-जय हो॥

ले के दलबल निकल पड़े हैं।

कर अस्त्रों से भरे पड़े हैं॥

लगते ऐसे हुई प्रलय हो।

भारतमाता की जय-जय हो॥

क्रोधानल से नैन लाल हैं।

नाहर सम नख-मुख विशाल हैं॥

देख जिसे भय को भी भय हो।

भारतमाता की जय-जय हो॥

अरिसेना सब भाँप रही है।

थर-थर करती काँप रही है॥

अतिशीघ्र नवयुग का उदय…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 16, 2012 at 1:24pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कुछ ख़याल

(1) घर की छत के दो बड़े स्तम्भ गिर चुके हैं देखो छोटे स्तंभों पर कब तक टिकती है छत !! 

(2)सबने कहा और तुमने मान लिया एक बार तो कुरेद कर देखते मेरी राख शायद मैं तुमसे कुछ कहती !!

(3)जिंदगी में बहुत दूर तक तैरने पर कोई नाव  मिली ,कुछ गर्म धूप  कुछ नर्म  छाँव  मिली !!

(4)अपनों के हस्ताक्षर के साथ जब कोई कविता आँगन से बाहर जायेगी ,तो जरूर नया कोई गुल खिलाएगी!!

(5)चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो…

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Added by rajesh kumari on November 16, 2012 at 11:14am — 15 Comments

अमृत समान हे चाय मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा

                                                                      

                                                                      

तुम शीतल, ग्रीष्म, उभय तापी;

तुम  बहुप्रकार, तुम  बहुरंगी !

हो  रंग, रूप  व  ताप  कोई,…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 16, 2012 at 10:27am — 14 Comments

समस्त ओबीओ परिवार की ओर से आप सभी को यम द्वितीया व भाई दूज पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं..

लेखा जोखा विश्व का, हर प्राणी का ज्ञान,

स्वागत वंदन आपका, चित्रगुप्त भगवान.

चित्रगुप्त भगवान, आपकी महिमा न्यारी.

जो भी धर ले ध्यान, मोक्ष का हो…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on November 16, 2012 at 12:00am — 4 Comments

जिंदगी मांगे...

उसने जो खा लिया वही मांगे.........
इस तरह कैसे जिंदगी मांगे........।

आज माहौल यूँ बनाया है।।
कुछ ग़लत कुछ कहें सही मांगे

सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on November 15, 2012 at 10:09pm — 1 Comment

मुझे ऐसे न खामोश करें

 

 

आज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,

मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !

तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,

फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !…

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Added by shikha kaushik on November 15, 2012 at 7:02pm — 3 Comments

धड़कनें जलती बुझती रही रात भर...

दिल की लौ थरथराती रही रात भर,

धड़कनें जलती बुझती रही रात भर।



गिर के खुद ही सम्भलती रही रात भर,

ज़िन्दगी लड़खड़ाती रही रात भर।



मैंने रब से भी कितनी ही फरियाद की,

एक तसल्ली ही मिलती रही रात भर।



बुझ न जब तक गई इन चराग़ों की लौ,

तेज़ आँधी ही चलती रही रात भर।



शाम घिरने से लेके सहर खिलने तक,

दर हवायें बजाती रही रात भर।



उसका वादा था वो पर नहीं आ सका,

ये खलिश दिल जलाती रही रात भर।



जब हवा रात भर ठंडी ठंडी… Continue

Added by इमरान खान on November 15, 2012 at 11:26am — 8 Comments

बचपन की यादो का चिटठा- लक्ष्मण लडीवाला

रह रह कर बचपन  याद आता है मुझे 
क्यां अल्हड मस्ती थी मेरे गाँव में 
सब बह गया लगता है अब- 
शहर के इस सीमेंट कंक्रीट की छाव में 
खूब खेलते थे मस्ती से सब मिल-
गाँव के खेत में, पेड़ की छाँव में ।
 
यदा कदा बेबस ही बचपन याद आता है,
देखते थे रम्भाती गायों को  साँझ में,
नाचते मोरों के झुंडो को खेत में,
सुनते थें कोयल की कुहू कुहू,
सारी यादे हवा हो गयी अब- 
शाद बह…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 15, 2012 at 10:30am — 2 Comments

जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं

जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं॥

कागज़ी कश्ती की तरहा फिर बिखर जाता हूँ मैं॥

कैसी वहशत है जुनूँ है और है दीवानपन,

तू ही तू हरसू नज़र आया जिधर जाता हूँ मैं॥

सारे मंज़र, तेरी यादें सब जुदा हो जाएंगी,

सोचकर तनहाई में अक्सर सिहर जाता हूँ मैं॥

किसकी नज़रों ने दुआ दी है, के तेरी बज़्म में,

बेहुनर हूँ जाने कैसे बाहुनर जाता हूँ मैं॥

तेरी यादों का ये जंगल मंज़िले ना रास्ते,

जिस्म अपना छोडकर जाने किधर जाता हूँ मैं॥

दर्द-ओ-ग़म के…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 15, 2012 at 1:30am — 10 Comments

सिमट के रह गयी किताबों में

सिमट के रह गयी किताबों में ज़रुरत मेरे बच्चों की
लूट के ले गयीं ये तालिमें फुर्सत मेरे बच्चों की

खेल खिलौनें सैर सपाटें किताबों की बातें हैं
दुबक के रह गयी दीवारों में ज़न्नत मेरे बच्चों की

पकड़ के अँगुली जब वो मेरी मुझसे आगे आगे चलते
मुझको भली लगती है ऐसी हरकत मेरे बच्चों की

मेरी उम्र का बोझ उठाये नन्हे नन्हे कन्धों पर
कहने को मासूम दिखे है हिम्मत मेरे बच्चों की

Added by ajay sharma on November 14, 2012 at 10:30pm — 2 Comments

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