For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चन्द्रबदन!

तेरे कपोल पे तेरे नैनों का नीर

लागे जैसे सीप में मोती

शशी से भी तू सुन्दर लागे

जब ओढ़ चुनर तू है सोती

झरने सी तू चंचल है

सुन्दरता से भी सुन्दर है

सुगंध तेरी  जैसे कोई संदल

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…

 

तेरे केशों में वृक्षों सी शीतलता

अधर में मदिरा सी मादकता

कमर समुद्र सी हिचकोले खाए

घूंघट में तू छुईमुई सी लजाये

वाणी, वीणा से भी मधुर

संगमरमर सा तेरा हर अंग है

हल्के हैं तेरे रंग के आगे

धरती पे जितने भी रंग हैं

तेज है तुझमें ईश्वर सा

है तुझे मेरा ये नमन

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…

 

तू ही सांझ, तू ही मेरा भोर है

छवि तेरी हर दिशा में हर ओर है

गंगा से अधिक तू पवित्र है

तू ही कविता भी तू ही मेरा चित्र है

तू ही धन है मेरे लिए

तू ही मेरा उपहार है

तू अमूल्य है मेरे लिए

तेरे आगे सब बेकार है

खो ना जाए तू कहीं

आ कर लूं मैं तेरा जतन

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन

 

आ मैं तेरा आलिंगन कर लूं

प्रेम से तुझको बाँहों में भर लूं

अधर से अधर को टकराऊँ

तुझमें ही मैं सिमटा जाऊं

प्रेम का रस भी तू

तू ही प्रेम का गीत है

तू ही सुगंध है प्रेम का

तू ही प्रेम संगीत है

अब नहीं है संयम मुझमें

आ कर ले तू मुझसे मिलन

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…

 

रणवीर प्रताप सिंह

 

 

 

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ranveer Pratap Singh on December 18, 2012 at 9:46pm

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 8:40pm

श्रींगार रस और अलंकर का संगम, रचना को एक अलग उचाई पर ले जाता है, इस बेहतरीन रचना पर बहुत बहुत बधाई |

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 21, 2012 at 9:17pm

@ manoj kumar chouhan shukriya

Comment by manoj kumar chouhan on November 20, 2012 at 2:24pm

BAHUT HI ACHHI ABHIVYAKTI

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 17, 2012 at 7:27pm

@ Laxman Prasad Ladiwala आपने तो मेरी बड़ाई में ही एक ही एक कविता लिख दी... बहुत बहुत धन्यवाद इस प्रतिक्रिया के लिए.

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 17, 2012 at 7:25pm

@ PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA बहुत धन्यवाद आपका, बस आपलोगों का आशीर्वाद इसी तरह से मिलता रहा तो और भी बेहतर  लिखता रहूँगा.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 2:44pm

आ मैं तेरा आलिंगन कर लूं

प्रेम से तुझको बाँहों में भर लूं

अधर से अधर को टकराऊँ

तुझमें ही मैं सिमटा जाऊं

प्रेम का रस भी तू

तू ही प्रेम का गीत है

तू ही सुगंध है प्रेम का

तू ही प्रेम संगीत है

अब नहीं है संयम मुझमें

आ कर ले तू मुझसे मिलन

चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…

आदरणीय रणवीर जी सादर 

मैं लिखना भी चाहूँ तो लिख नहीं सकता 

आपने बहुत बढ़िया लिख पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ. 

बधाई. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 17, 2012 at 10:08am

रणवीर प्रताप सिंह सरीके आशिक 

विशेषण शब्दों कोष के है वे मालिक 
देखते सुन्दरता और नयनों में चंचलता  

आह भरते देख केशों में वृक्षों सी शीतलता

झूमते देख अधर में मदिरा सी मादकता ।

बधाई उनको जो ऐसा भान  हुआ 

ऐसा अहसास हुआ, ऐसा भाव मिला  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
2 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
18 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service