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"परमसत्ता अदृश्य का दृश्य हो जाना "

भीषण अंधकार

गहरा तम

डरावना सन्नाटा

पसरा पड़ा था अंदर

मन के बहुत अंदर तक

हाथ को हाथ नहीं सूझता था

अँधेरी गलियां पार करते- करते

समय बीतता गया

मन रीतता गया

रास्ते के कंकरों पत्थरों से

पैर लहूलुहान हो गए

थम से गए ,

लगा जीवन हाशिये पर आ गया

एक दिन एक घंटी बजी दिमाग में ,

शंखध्वनी हुई

एक दीप तो जलाया ही जा सकता है

रास्ता तो बुहारा ही जा सकता हे

कई वर्षों से बिना कुछ किये

प्रमाद में चलती रही हूँ यूँ ही |

घंटी बजी तो

विचारों में परिवर्तन की

लहर उठी

दृष्टि बदली

सृष्टि का नया रूप दिखा

रौशनी की किरण दिखी

बस ,बस उसी क्षण

तैयारी हो गई

आगे के जीवन की

सुंदर जीवन की

घंटी किसने बजाई

आज तक समझ नहीं पाई

कहीं कुछ तो है

जो हमें राह दिखाता है ,

निराशा के क्षणों में

आशा की किरण बनकर आता है

गिरने पर उठाता है ,

चाहे उस अदृश्य ताकत को

हम देख नहीं पाते

आभार! आभार! आभार!

उस परमसत्ता का

परमात्मा का

आत्मा का

 

मोहिनी चोरडिया

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 9:13pm

मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे मै तो तेरे पास, उस परमसत्ता प्रेरणादायी परमात्मा का आभार व्यक्त करने के लिए लिखी सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें आदरेया मोहिनी जी.

Comment by shalini kaushik on November 18, 2012 at 3:46pm

adbhut ehsas.sundar bhavabhivyakti badhai


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Comment by rajesh kumari on November 18, 2012 at 12:20pm

वही  है अद्दभुत अनोखी परम शक्ति जिसे भगवान् कहते हैं हम को अंतर,बाह्य तिमिर से बाहर निकलने का रास्ता दिखाता  है और जीवन सफ़र पूरा होने पर वही गहन असीमित अमित अंधकार में विलीन कर देता है बहुत सुन्दर भावों की श्रंखला बनाती प्रस्तुति बहुत बधाई मोहिनी जी 

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