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ग़ज़ल : मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

बहर : २१२२ १२१२ २२ [इस बहर को ११२२ १२१२ २२ भी लेने की छूट होती है]

 

मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

की है तौबा न यूँ पिलाया कर

 

जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए

ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 21, 2012 at 3:30pm — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
शब्द शून्य संसार (कुण्डलिया छंद )डॉ प्राची

भाव शून्यता क्या रचे, शब्दों की रसधार 
सर्वस लय कर मन बने, शब्द शून्य संसार ll
शब्द शून्य संसार, शांत गहरे सागर सा 
पाए निज विस्तार, अखंड अनंताम्बर सा ll
अक्षय अच्युत ब्रह्म,  असत् है सारी द्विजता …
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Added by Dr.Prachi Singh on November 21, 2012 at 10:45am — 6 Comments

दर्दे तन्हाई

२१२ २१२

मैं जहाँ भी रहूँ,

तू भी आती है क्यूँ।



मैं अकेला कहाँ,

तेरी यादों में हूँ।



ठोकरें भी लगें,

तो भी चलता रहूँ।



मेरी बर्बादियाँ,

चल रही दू ब दूँ।



कत्ले अरमाँ या जाँ,

बोल दे क्या करूँ।



जिस्म ठंडा हुआ,

रूह जलती है क्यूँ।



है तेरी याद में,

दीद में खूँ ही खूँ।



ज़ख़्मी सारा जिगर,

दर्द कैसे सहूँ।



आशियाना नहीं,

बेठिकाना फिरूँ।



यार भी छल…

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Added by इमरान खान on November 20, 2012 at 11:30pm — 9 Comments

आज करना कुछ नया-सा चाहता हूँ

आज करना कुछ नया-सा चाहता हूँ

आस के जज़्बात भरना चाहता हूँ

 

ये ग़ज़ल मेरी अधूरी है अभी तक

बस तेरी ख़ुशबू मिलाना चाहता हूँ

 

शौक़ है ये और ज़िद भी है हमारी

दिल में दुश्मन के उतरना चाहता हूँ

 

ख़ौफ़जद है ज़िंदगी अब तो हमारी

प्यार के कुछ रंग भरना चाहता हूँ 

 

दुश्मनों ने दोस्त बन कर जो किया था

गलतियाँ उनकी भुलाना चाहता हूँ

(मात्रा  2122  2122  2122  की कोशिश की है ।)

Added by नादिर ख़ान on November 20, 2012 at 11:00pm — 6 Comments

जिंदगी तेरा दायरा मालूम..........

जिंदगी तेरा दायरा मालूम........

इस जमाने का फलसफा मालूम।।

किस तरह आये थे यहाँ मालूम ,

और जाने का रास्ता मालूम........

रात दिन सामना सवालों से,

मन में है कितनी दुविधा मालूम।।

भूख से पेट खाली है कितना,, 

जबकि मौसम है खुशनुमा मालूम।।

लोग खुश हैं कि मर गया सुजान,,

कौन थे ये पता करो मालूम।।   सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on November 20, 2012 at 9:39pm — No Comments

कुछ और ...

कुछ और शाम इंतज़ार सही
कुछ और दिल बेकरार सही

कुछ और रखी जिन्दगी दांव पे
कुछ और तेरा ऐतबार सही

कुछ और गम के समंदर पालूँ
कुछ और काज़ल की धार सही

कुछ और चले ये रात अँधेरी
कुछ और सर्द अंगार सही

कुछ और चाँद की ख्वाहिश मेरी
कुछ और तेरा ये प्यार सही

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on November 20, 2012 at 8:56pm — 3 Comments

जल दोहे

[1]   जल चरणों के श्लोक यह ,  जग हित में शुभ-लाभ !

       पी कर विष   प्रदूषण  का ,   हुआ   नीर   अमिताभ !!

[2]   पाट कर   सब ताल कुँए   ,   हम ने   की यह भूल !

       पानी  -  पानी    हो    गई     ,    निज  चरणों की धूल !!

[3]   कर न  पायें  दीपक  ज्यों   ,    तेल   बिना    उजियार !…

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Added by लतीफ़ ख़ान on November 20, 2012 at 4:57pm — No Comments

त्योहार के हादसे

त्योहार के हादसे

 

 

छठ पूजा के दिन आज,

हुई बड़ी दुर्घटना, कई,

आदमी मरे पटना में,

त्योहार को हुई,फिर ये घटना । 

 

भारत की यह नियमित घटना,

होती है हर साल, कभी यहाँ,

तो कभी वहाँ, कुचले जाते,

हैं लोग प्रार्थना करते-करते…

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Added by akhilesh mishra on November 20, 2012 at 10:57am — 6 Comments

meri bheegi palke(n)

तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /

जाने फिर बोल रहा कौन //
मिलते थे कहने को हम दोनों नित्य प्रति / 
लकिन संबंधों को शायद ही मिली गति /
तुम ही जब कर सकी कोई आरम्भ नहीं /
मेरे मन को लगा इति का अवलम्ब सही /
देहरी से औप्चारिक्तायों की बंधे रहे  , दोनों के आचरण दोनों के कुंठित मौन //
तुम भी हो चुप- चुप मैं भी हूँ  मौन , जाने फिर बोल रहा कौन //
परिचय के…
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Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments

वो ट्रेन वाली लड़की ..........

सभी से सादर निवेदन है कि यह मेरी प्रथम कहानी है कृपया अपने विचा रखें .....

कभी-कभी लोकल सवारी गाड़ी में चलते हुए भी ऐसा महसुस होता है कि जैसे उसकी रफ़्तार जिंदगी से तेज हो गयी हो तो वहीँ कभी-कभार किसी सुपरफास्ट ट्रेन में भी आदमी ऐसे झेल जाता है कि मानो मंजिल ही दोगुने रफ़्तार से भाग रही हो और हम कहीं पीछे छूटते जा रहे  ! जनवरी के जाड़े की वो रात आज भी मै भुल नहीं पाया हूँ जब वो पहली और अंतिम बार मुझसे मिली थी ! वाकया लगभग डेढ़ साल पहले का है ,जब २२ जनवरी की उस रात…

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Added by शिवानन्द द्विवेदी सहर on November 19, 2012 at 10:49pm — 5 Comments

ज़िन्दा हूँ

फूल ही सही मगर ख़ारों में ज़िन्दा हूँ
मय बनकर ही तलबदारों में ज़िंदा हूँ

मैं इश्क हूँ मुझे आशारों में न ढूंढ
मैं तेरी आँख के इशारों में ज़िन्दा हूँ

मुझे आसमाँ की आज़ादी मिली न कहीं
मैं तेरी याद के इज्तिरारों में ज़िन्दा हूँ

न दे गवाही मुझे इनकारों की तमाम
मैं तेरे खामोश इकरारों में ज़िंदा हूँ

ये माना कि किश्ती है जलजलों में अभी
मैं मगर उम्मीद के किनारों में ज़िन्दा हूँ

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on November 19, 2012 at 9:35pm — No Comments

जल ही जीवन है.(बैरवे छंद)

तीन भाग जल धरती,शेष जमीन,

प्रकृति  सींचे  वरना, नीर विहीन/

धरती जल को दुहता,मनुज प्रवीण,

जाने जल बिन होगा, जीवन  हीन/

प्रकृति  भक्षक बनते,  मानव दीन,

बरसें  मेघ   लगाओ, वृक्ष  नवीन/

नद जल सारा खींचा, कूप बनाय,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:08pm — 2 Comments

नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार

नाना नाती उवाच -------पिकहा बाबा अवतार 

-----------------------------------------------------

नाना नाना ई बतावा फिर कौनो  बात हो गई 
चेहरा काहे लटकौले नानी से मुलाक़ात हो गई 
चुप रहो नाती न बोलो पकड़ो   ई दस रुपिया
दोनों ओर आग लगावत नानी के तुम खुफिया 
------------------------------------------------------
नानी खफा बहुत हमसे ढूंढ रही वो बेला 
कौन बनाया लेखक हमको  इंटरनेट…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 19, 2012 at 5:18pm — 9 Comments

सिला

वोह दूर क्या हुए 

इतनी दूर हो गए 
मेरी मुहब्बत के शायद 
हर किस्से भूल गए 
किससे करें शिक्वा-ए-दिल          
किससे  करें गिला 
जिंदगी के आखरी लम्हात में 
हम तन्हा  हो गए
'दीपक' था जलता क्यूँ न 
जलकर लुत्फ़ ही आया 
लेकिन मुझको जलाकर वोह 
खामोश चले गए …
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2012 at 11:30am — 4 Comments

जन्मदिन की शुभकामनाओ पर तहे दिल से धन्यवाद आभार (19 नवम्बर,2012)

ओबीओ ही मात्र मंच, जहाँ मिले प्यार कुछ ख़ास 
सड़सठ पार बसंत पर, हुआ अहसास कुछ ख़ास ।
 
हुआ अहसास कुछ ख़ास, घर में ख़ुशी मनाई,
दूरभाष पर मित्र ने रह रह  घंटी खूब बजाई ।
 
धन्यवाद किस विधि मै करू, शब्द नहीं है पास,
धन्यवाद प्रभु आपका, जीवन में भरी मिठास ।
 
ओबीओ में प्रभु कृपा से,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2012 at 11:00am — 2 Comments

माँ को कैसे दूं श्रद्धांजली ,

माँ तुझे सलाम

 

 

वो चेहरा जो

        शक्ति था मेरी ,

वो आवाज़ जो

      थी…

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Added by shalini kaushik on November 19, 2012 at 12:31am — 4 Comments

मेरे कमरें के केलेंडर पर

मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया

तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"

झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया

छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया

मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया

Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

लघुकथा: लिटमस टेस्ट

 "प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !"  आकाश  शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !

"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !

"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"

“कौन मित्र?”

“अभिनव, कॉलेज वाला...!”

“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”

“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”

“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!”…

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 18, 2012 at 8:00pm — 14 Comments

''समझ''

उम्र की दौड़ में हम बदल जाते हैं

वक्त की ठोकरों से संभल जाते हैं l

चाँद-तारों की हसरत है जिनको नहीं    

सूखी रोटी खुशी से निगल जाते हैं l

कूड़े-कर्कट में पाया हुआ जो मिला

उन खिलौनों से ही वो बहल जाते हैं l

हैं जहाँ में बहुत जिनमें है वो हवस   

जो भी देखा उसी पर मचल जाते हैं l

बिन किसी बात हम उनको खलने लगें

इस दुनिया में ऐसे भी मिल जाते हैं l      

राजे-दिल खोलो जिसको अपना समझ…

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Added by Shanno Aggarwal on November 18, 2012 at 7:30pm — 6 Comments

छियासी वर्षीय मराठी नेता को श्रद्धांजली

बाला साहेब ठाकरे अब नहीं रहे 
उन्हें हजारे लोग श्रद्धांजली देते रहे 
किसी ने उन्हें महाराष्ट्र का शेर कहा 
किसी ने उन्हें शिवाजी के बाद का 
मराठी सेवक कह कर नवाजा है ।
देश के बड़े कार्टूर्निष्टों में से एक थे
"सामना"में छपे उनके लेख बताते- 
स्पष्ट-वक्ता बेबाक टिपण्णी करनेवाले, 
जिनके साथ लाखो लोग यात्रा में चल रहे 
हजारे…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 18, 2012 at 4:36pm — 4 Comments

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