For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,987)

लोकगीत:पोछो हमारी कार..... संजीव 'सलिल'

लोकगीत:



पोछो हमारी कार.....



संजीव 'सलिल'

*

ड्राइव पे तोहे लै जाऊँ, ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.

पोछो न हमरी कार, ओ बलमा! पोछो न हमरी कार.....

*

नाज़ुक-नाज़ुक मोरी कलाई,

गोरी काया मक्खन-मलाई.

तुम कागा से सुघड़, कहे जग-

'बिजुरी-मेघ' पुकार..

ओ सैयां! पोछो हमारी कार.

पोछो न हमरी कार, ओ बलमा! पोछो न हमरी कार.....

*

संग चलेंगी मोरी गुइयां,

तनक न हेरो बिनको सैयां.

भरमाये तो कहूँ राम सौं-

गलन ना दइहों… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 29, 2010 at 7:00pm — 2 Comments

ग़मों की धूप

ग़मों की धूप से तू उम्र भर रहे महफ़ूज़,
ख़ुशी की छाँव हमेशा तुझे नसीब रहे ।
रहे जहाँ भी तू ऐ दोस्त ये दुआ है मेरी,
मसर्रतों का ख़ज़ाना तेरे क़रीब रहे।
तू कामयाब हो हर इम्तिहाँ में जीवन के,
तेरे कमाल का क़ायल तेरा रक़ीब रहे ।
तू राह-ए-हक़ पे हो ता-उम्र इब्न-ए-मरियम सा,
बला से तेरी कोई मुन्तज़र सलीब रहे ।
नहीं हो एक भी दुश्मन तेरा ज़माने में,
मिले जो तुझसे वो बन के तेरा हबीब रहे ।
न होगा ग़म मुझे मरने का फिर कोई ’शम्सी’,
जो मेरे सामने तुझ-सा कोई तबीब रहे ।

Added by moin shamsi on September 29, 2010 at 5:54pm — 1 Comment

ग़ज़ल:माँ के आँचल सा

ग़ज़ल



माँ के आँचल सा खिलता है गुलमोहर,

मुझसे अपनों सा मिलता है गुलमोहर.



तुम अपने रेखा चित्रों में रंग भरो,

मेरे सपनों में हिलता है गुलमोहर.



खुशबू वाले चादर तकिये और गिलाफ ,

बूढ़ी आँखों से सिलता है गुलमोहर.



चौड़ी होती सड़कों से खुश होते हम,

बची हुई साँसे गिनता है गुलमोहर.



भक्काटा* के शोर में छोटे बच्चे सा ,

अपने मांझे को ढिलता है गुलमोहर .



चटख चाँदनी जब करती सोलह सिंगार ,

झोली में तारे बिनता है… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल:आ रहा जब तक

ग़ज़ल



आ रहा जब तक पतन से अर्थ है,

आचरण पर बहस करना व्यर्थ है.



आपके चेहरे पे गड्ढे शेष हैं,

आईने पर धूल की एक पर्त है.



चौक पर कबिरा मुनादी कर रहा,

आइये देखें क्या उसकी शर्त है.



सत्य आँखों की परिधि से दूर था ,

आज न्यायालय में जीता तर्क है.



मार्क्स गाँधी गोर्की को भूलकर ,

पीढी क्या जानेगी क्या संघर्ष है .



क़त्ल भाषा धर्म जाति के सबब,

सभ्यता का क्या यही उत्कर्ष है.



दोष अपना मेरे ऊपर मढ़ गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

अथ से इति तक !

जब तक अथ से इति तक

ना हो सब कुछ ठीक ठाक ,

सुख की पीड़ा से अच्छा है

पीड़ा का सुख उठाना.

जब तक सुनी ना जाएँ आवाज़े

सिलने वाले हो हज़ार सूइयों वाले

और होंठों पर पहरे पड़े हों ,

चुप्प रहने से अच्छा है,

शब्दों की अलगनी पर खुद टंग जाना .

जब तक जले न पचास तीलियों वाली माचिस

या ख़ाक न हो जाएँ सडांध लिए मुद्दे

हल वाले हांथों का बुरा हो हाल

मेंड़ पर बैठने से अच्छा है बीज बन जाना .

जब तक मदारी का चलता हो खेल

और एक से एक मंतर हो रहें हो… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:00pm — 2 Comments

लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,

लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,

गिन चुन के बचे हैं बन्दे अब तो दिन चारी ,

धर्म कर्म तू कर ले बन्दे ले आगे की सुधारी ,

बच जायेगा इस जहाँ से कर ले सत्य सवारी ,

लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,

नाम काम ना आएगा जब भेजेगा ओ सवारी ,

बोल ना तुम पाओगे सन्देश भेजेगा अगरी ,

आँख की ज्योति कम हुई तुने चस्मा लगली ,

बाल सफ़ेद जब दिखा बन्दे मेहँदी से रंगवाली ,

लिखने वाला लिख दिया है करले तू तैयारी ,

एक ही रास्ता हैं इस जग में ओ हैं पालनहारी… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 29, 2010 at 2:49pm — No Comments

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को

भूलना मत दीन और ईमान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.

अमन से सुन्दर है कुछ दूजा नहीं.

प्रेम से बढ़कर कोई पूजा नहीं.

बांटना क्या राम और रहमान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.

प्यार और खुशियाँ ही बसती थी जहाँ.

हिन्द वो इकबाल का खोया कहाँ.

किसने जख्मी कर दिया मुस्कान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.

स्वार्थ से हरगिज़ ना तौलो प्यार को.

दुःख मे पुरी बदलो ना व्यवहार को.

थाम लो तुम गिर रहे इंसान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान… Continue

Added by satish mapatpuri on September 29, 2010 at 2:43pm — 1 Comment

मेरी हाइकू - एक प्रयास

बना ब्लू लेन

कामनवेल्थ गेम्स

लगता जाम



- - - -



घर से निकले

ट्रैफिक में फँसे

अब इंतजार



- - - -





आया सावन

बरस जाता पानी

टपकी छत



- - - -





खिलती धूप

रौशनी में नहाते

झूमते पेड़



- - - -





आया सावन

बरस जाता पानी

टपकी छत



- - - -



खिलती धूप

रौशनी में नहाते

झूमते पेड़



- - - -



साँझ की बेला

पेड़ों के… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on September 29, 2010 at 11:40am — 1 Comment

दोस्ती

यूँ तो बस एक रवायत है दोस्ती !
मगर खुदा की इबादत है दोस्ती !

दिल दरिया में जैसे एक कंकर आ गिरा,
कुछ ऐसी ही तो शरारत है दोस्ती !

लोग ढूँढ़ते हैं इस में नफा ही नफा,
उनके लिए बस कोई तिजारत है दोस्ती !

इश्क क्या आशिक क्या, हम क्या जाने,
हमारी तो इकलौती मोहब्बत है दोस्ती !

दोस्तों से धोखे बहुत खाए मगर,
क्या करें हमारी तो आदत है दोस्ती !

तू बस हमारा ही क्यूँ इम्तिहान लेती है,
तुझ से बस इतनी सी शिकायत है दोस्ती !

Added by Archana Sinha on September 29, 2010 at 12:30am — 1 Comment

सलुम्बर की वह काव्य संध्या



सलुम्बर की वह काव्य संध्या





आप हाड़ी रानी की कथा से कितने परिचित हैं , नहीं जानती .. मैं स्वयं भी कितना जानती थी , इस रानी को ! लेकिन इस नाम से पहला परिचय झुंझुनू शहर में जोशी अंकल द्वारा हुआ था . उन दिनों हम कक्षा नौ में थे . पापा की पोस्टिंग इस शहर में हुई ही थी. नए मित्र , नया परिवेश . मन में कई उलझनें थीं. जोशी अंकल हमारे पड़ोसी थे. बेटियां तो उनकी छोटी -छोटी थीं पर अंकल खासे बुज़ुर्ग लगते थे .. उनमें कुछ ऐसा था कि देखते ही… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on September 28, 2010 at 9:21pm — 2 Comments

बाल कविता

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
आपस में सब भाई-भाई ।

बहकावे में आ जाते हैं,
हम में है बस यही बुराई ।

अब नहीं बहकेंगे हम भईया,
हम ने है ये क़सम उठाई ।

मिलजुल कर हम सदा रहेंगे,
हमें नहीं करनी है लड़ाई ।

देश करेगा ख़ूब तरक़्क़ी,
हर घर से आवाज़ ये आई ।

Added by moin shamsi on September 28, 2010 at 3:30pm — 1 Comment

हास्य कविता: कान बनाम नाक --संजीव 'सलिल'

हास्य कविता:



कान बनाम नाक



संजीव 'सलिल'

*

शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार क्यों कान?

कहा नाक ने- 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?

क्यों अछूत श्रीमान, न क्यों कर मुझे खींचते?

क्यों कानों को लाड़-क्रोध से आप मींचते??



शिक्षक बोला- "छात्र की अगर खींच दूँ नाक,

कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?

बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.

ऊँची नाक हुई नीची, तो हुए फजीते..



नाक एक है कान दो, बहुमत का है राज.

जिसकी संख्या अधिक हो, सजे शीश… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 28, 2010 at 10:30am — 1 Comment

मेरा इक छोटा सा सपना

मेरा इक छोटा सा सपना
कब होगा वो पूरा अपना

देखो ये बरसाती मौसम
छत का मेरी टप-टप करना

बचपन की सब बातें मुझको
लगती मुझको जैसे सपना

राही भटका राहों में है
कोइ घट न जाए घटना

लम्बी तानू सोना चाहूं
मेरा इक छोटा सा सपना

Added by abhinav on September 27, 2010 at 7:30pm — 2 Comments

तुम चले क्यों गये ?

तुम चले क्यों गये

मुझको रस्ता दिखा के, मेरी मन्ज़िल बता के

तुम चले क्यों गये



तुमने जीने का अन्दाज़ मुझको दिया

ज़िन्दगी का नया साज़ मुझको दिया

मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर

इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया.

फिर कहो तो भला

मेरी क्या थी ख़ता

मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के

तुम चले क्यों गये



साथ तुम थे तो इक हौसला था जवाँ

जोश रग-रग में लेता था अंगड़ाइयाँ

मन उमंगों से लबरेज़ था उन दिनों

मिट चुका था मेरे ग़म का… Continue

Added by moin shamsi on September 27, 2010 at 5:56pm — 4 Comments

"एक आग्रह"

मैं भारत देश का एक जिम्मेवार और कर्त्वयानिस्थ नागरिक होने के नाते मैं इस देश के तमाम लोगो से एक आग्रह करना चाहूँगा की---

कल देश के इतिहाश में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है ,मेरा मतलब है की कल अयोध्या मामले पर माननीय अल्लाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा फैसला दिया जाने वाला है.

जहा तक मेरा सोच है ---फैसला चाहे जो भी ,जिसके पछ में आये .....हम जो भी है ,जिस धरम से है ,जिस जाती से है ,पर सबसे पहले हम इंसान है ,और हमें इन्सानियत का फ़र्ज़ सबसे पहले अदा करना होगा .

इसलिए कृपया अपने विचारो… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on September 27, 2010 at 5:00pm — 3 Comments

इंसानियत बगैर इंसान हैं! '' लोग ''

मतलब कठिन शब्दों काः-

1.तुर्बत = कब्र, 2.इख़्तिलात = मेलजोल, 3.इशरत = अहसास,

4.निस्बत = लगाव



ये कितना खुदगर्ज हुआ जरूरत में आदमी

जिस कदर बेखबर रहे तुर्बत1 में आदमी



इख़्तिलात2 किसी से न पेशे खिदमतगारी है

बेखुदी का परस्तिश है वहशत में आदमी



रहे सबको इशरत3 फकत् अपने सांसो की

नहीं सिवा इसके अब फुर्सत में आदमी



काटे सर गैरों की इलत्तिजाये ज़िन्दगी में

करे है दरिंदगी अपने निस्बत4 में आदमी



ढुंढ़े नहीं मिले नियाजे5 अदब वफाये… Continue

Added by Subodh kumar on September 27, 2010 at 2:00pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मुखौटे

मुखौटे

हर तरफ मुखौटे..

इसके-उसके हर चहरे पर

चेहरों के अनुरूप

चेहरों से सटे

व्यक्तित्व से अँटे

ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल..।



मुखौटे जो अब नहीं दीखाते -

तीखे-लम्बे दाँत, या -

उलझे-बिखरे बाल, चौरस-भोथर होंठ

नहीं दीखती लोलुप जिह्वा

निरंतर षडयंत्र बुनता मन

उलझा लेने को वैचारिक जाल..

..... शैवाल.. शैवाल.. शैवाल..



तत्पर छल, ठगी तक निर्भय

आभासी रिश्तों का क्रय-विक्रय

होनी तक में अनबुझ व्यतिक्रम

अनहोनी का… Continue

Added by Saurabh Pandey on September 27, 2010 at 1:00pm — 2 Comments

तुम्हारी याद आती है

तुम्ही पहचान हो मेरी,

तुम ही बस जान हो मेरी,

यह तुम हो जिससे हम 'हम' हैं

यह हम हैं जिसके रग-रग मे,

बसे बस तुम हो, तुम ही हो .



तुम्हारा नाम लेकर ही,

मेरी हर सांस आती है....

तुम्हारे बिन

मेरी साँसें न आती हैं ...न जाती हैं



तुम्ही हो मायने अबतक,

हमारे ज़िंदा रहने के.....

तुम्ही कारण बनोगे,

मौत मेरी जब भी आएगी



नही मालूम मुझको,

ज़िंदगी से चाहिए क्या अब ?

तुम्हारे प्यार और दीदार का बस

आसरा हो…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on September 27, 2010 at 5:30am — 2 Comments

इक नयी ज़िन्दगी

कुछ समय में यहाँ से चले जायेंगे,

इक नयी ज़िन्दगी को फिर अपनाएंगे|

याद आएगा कुछ, कुछ भूलेगा नहीं,

बाँध यादों की गठरी को ले जायेंगे|



क्या पता होगा अपना ठिकाना कहाँ,

क्या करें तय की हमको है जाना कहाँ|

मंजिल सामने होके आवाज देगी,

वक़्त के रास्ते हमको आजमाएंगे|

कुछ समय में .......................



तब तमाम ऑफिस के छोड़ कर मामले,

जी होगा साथ दोस्तों के कॉलेज चलें|

तब न होंगे ये दिन, ये समय, ये घडी,

गर होंगे तो ये दिन ही नज़र… Continue

Added by आशीष यादव on September 26, 2010 at 11:00pm — 11 Comments

वर्ल्ड हार्ट डे ('World Heart Day 26.09.2010) पर

कोई भी बात दिल से न अपने लगाइये,

अब तो ख़ुद अपने दिल से भी कुछ दिल लगाइये ।



दिल के मुआमले न कभी दिल पे लीजिये,

दिल टूट भी गया है तो फिर दिल लगाइये ।



दिल जल रहा हो गर तो जलन दूर कीजिये,

दिलबर नया तलाशिये और दिल लगाइये ।



तस्कीन-ए-दिल की चाह में मिलता है दर्द-ए-दिल,

दिलफेंक दिलरुबा से नहीं दिल लगाइये ।



दिल हारने की बात तो दिल को दुखाएगी,

दिल जीतने की सोच के ही दिल लगाइये ।



बे-दिल, न मुर्दा-दिल, न ही संगदिल, न… Continue

Added by moin shamsi on September 26, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, निज जीवन की घटना जोड़ अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service