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मुखौटे

मुखौटे
हर तरफ मुखौटे..
इसके-उसके हर चहरे पर
चेहरों के अनुरूप
चेहरों से सटे
व्यक्तित्व से अँटे
ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल..।

मुखौटे जो अब नहीं दीखाते -
तीखे-लम्बे दाँत, या -
उलझे-बिखरे बाल, चौरस-भोथर होंठ
नहीं दीखती लोलुप जिह्वा
निरंतर षडयंत्र बुनता मन
उलझा लेने को वैचारिक जाल..
..... शैवाल.. शैवाल.. शैवाल..

तत्पर छल, ठगी तक निर्भय
आभासी रिश्तों का क्रय-विक्रय
होनी तक में अनबुझ व्यतिक्रम
अनहोनी का प्रति पल संशय..
जो उस पल अनुचित, इस पल उचित
जो इस पल अनुचित, उस पल उचित
संशय.. संशय.. संशय
व्याप्त कराता अहिर्निश भय ।

निर्लज्ज क्षुधा का सचल स्वरूप
वीभत्स लोभ का स्थूल प्रारूप
व्यापक होने की दानवी हठ
भरमा देने की पीड़क धुन
भाव नहीं अब सूक्ष्म तनिक भी
स्थूल.. स्थूल.. हर कुछ स्थूल - ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल ।

कैसे वर्ग
कैसे कक्ष
कैसे ध्रुव
कैसे अक्ष
वाकपटु व्यवहार-विचार
शब्द-नियोजन, रंगा परमार्थ
शब्द-जाल, अश्लीलतम स्वार्थ
सम्बन्ध हुआ ऊँकड़ू समूल.. ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल ।

तत्त्व-सार तीक्ष्ण खंजर सा
व्यवहार परस्पर अंध-गह्वर सा
आरी-सा दाँतुल छलकता प्यार
हर कंधा अगला - उन्नति द्वार..!

घात संयोजन पूर्ण व्यवस्थित
पल-पल, क्षण-क्षण मनस अचंभित..
टीसती मधुता, स्वप्न में उलझन
विश्वास पीड़ित, त्रासद घुटन
समय-घड़ी दिन-प्रहर प्रतिकूल..
कार्य-संपादन क्रिया नियंत्रण..
रोम-रोम में, शिरा-शिरा में असह्य वेदना
संदर्भ आह के शूल-त्रिशूल.. ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल ।
मुखौटे -
हर तरफ मुखौटे ..
चेहरों के अनुरूप
चेहरों से सटे
व्यक्तित्व से अँटे - ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल.. ।

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 28, 2010 at 6:19pm
तत्त्व-सार तीक्ष्ण खंजर सा
व्यवहार परस्पर अंध-गह्वर सा
आरी-सा दाँतुल छलकता प्यार
हर कंधा अगला - उन्नति द्वार..!

वोह क्या कहू मैं निशब्द हूँ , कभी कभी महसूस होता है की क्यू ना OBO ५ साल और पहले लेकर आया ताकि ऐसे ऐसे विद्वानों की संगति और पहले हुई होती | बहुत बढ़िया सौरभ सर , बधाई इस खुबसूरत रचना पर ,
Comment by Pooja Singh on September 28, 2010 at 12:38pm
आदरणीय सौरभ जी ,
प्रणाम आज के परिवेश के अनुसार आपने बहुत ही सही कहा है , की {निर्लज्ज क्षुधा का सचल स्वरूप
वीभत्स लोभ का स्थूल प्रारूप
व्यापक होने की दानवी हठ
भरमा देने की पीड़क धुन
भाव नहीं अब सूक्ष्म तनिक भी
स्थूल.. स्थूल.. हर कुछ स्थूल - ज़िन्दा.. ताज़ा.. छल के माकूल ।
मुखौटे -
हर तरफ मुखौटे ..
चेहरों के अनुरूप} बढिया है , यह व्यंग भरी कविता " हर चेहरे के उपर एक चेहरा है " बधाई स्वीकार करे |

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