For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,996)

जीने के बहाने आ गए

सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए 

याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए 



आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ 

जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए 



दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर 

ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए 



ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है 

चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए 



उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर 

बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए 



हैं "सिया' के…

Continue

Added by siyasachdev on September 21, 2011 at 2:19am — 7 Comments

प्रेम की सीख

बस प्रेम सिखाने आई थी ??

जो प्रेम सिखाकर जाती हो ??

ख्वाबों में आकर नींद के थैले से 

यूँ चैन चुराकर जाती हो...

 

तुमने ही सिखाया था मुझको 

सूनी…

Continue

Added by Vikram Srivastava on September 21, 2011 at 12:28am — 4 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

                   लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - दो ---------------------

तब मैं बी. ए. पार्ट -1 का छात्र था जब वर्माजी मेरे मकान में बतौर किरायेदार रहने आये थे . वे पिताजी का एक सिफारिशी खत अपने साथ लाये थे कि वर्मा जी मेरे आज्ञाकारी छात्र रहे हैं, बगलवाले फ्लैट में इनके रहने की व्यवस्था करा देना . मुझे भला क्यों आपत्ति होती . वर्माजी रहने लगे और मैं…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 11:00pm — No Comments

बोध कथा: शब्द और अर्थ -- संजीव 'सलिल'



बोध कथा:

शब्द और अर्थ 

संजीव 'सलिल'

*

शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त होने पर चैन की साँस ली और कमर सीधी करने के लिये लेटा ही था कि काम करने की मेज पर कुछ हलचल सुनाई दी. वह मन मारकर उठा, देखा मेज पर शब्द समूहों में से कुछ शब्द बाहर आ गये थे. उसने पढ़ा - वे शब्द थे प्रजातंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 20, 2011 at 2:30am — 3 Comments

'रिश्तो का सच'

मां की ममता, पिताजी का त्याग,

बहन की समझदारी, भाई का प्यार!

क्या यही है रिश्तो की बुनियाद,

ये रिश्ते कभी नहीं होते बेकार!

माँ की ममता हमारे दुख भूलती,

हमको हमेशा सही राह दिखाती!

पिताजी कात्याग देता देता अनुशासन का पाठ,

बनता है हमको और भी महान!

बहन की समझदारी हमें हमेशा हौसला दिलाती,…

Continue

Added by Smrit Mishra on September 20, 2011 at 1:14am — 1 Comment

नहीं आऊँगी (कहानी )

नहीं आऊँगी (कहानी )

           लेखक - सतीश मापतपुरी

----------------- अंक - एक --------------------

मैं जब कभी बरामदे में बैठता हूँ , अनायास मेरी निगाहें उस दरवाजे पर जा टिकती है, जिससे कभी शालू निकलती थी और यह कहते हुए मेरे गले लग जाती थी - " अंकल, आप बहुत अच्छे हैं."

         कई साल गुजर गए उस  मनहूस घटना को बीते हुए. वक़्त ने उस घटना को अतीत का रूप तो दे दिया, किन्तु ...............  मेरे लिए वह घटना आज भी ................. शालू की यादें शायद कभी भी मेरा पीछा…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 12:43am — No Comments

हमसफ़र

बस दो कदम और साथ आओ तो सही
साथ चलने का वादा निभाओ तो सही

तुम ही कहते थे चलोगे साथ मेरे सदा
और कहते थे "कभी आजमाओ तो सही"

इतना बड़ा सफ़र देखो बातों में कट गया
चुप न रहो, गीत कोई सुनाओ तो सही

रूठ कर मुँह न फेरो ऐ मेरे हमसफ़र
हुई है क्या खता ये बताओ तो सही

था ये मुश्किल सफ़र, राह थी बड़ी कठिन
सामने है अब मंज़िल, मुस्कुराओ तो सही

हो जायेगा "विक्रम" आसान हर सफ़र
कोई हाथ हाथों में लेकर कदम बढाओ तो सही

Added by Vikram Srivastava on September 19, 2011 at 9:59pm — 3 Comments

ग़ज़ल

अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे 

ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे 

 

मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा 

हम तेरे वास्ते हर राह से हट…

Continue

Added by siyasachdev on September 19, 2011 at 9:25pm — 4 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - ड्रीम गर्ल हेमामालिनी ने गुजरात पहुंचकर कहा - नरेन्द्र मोदी विकास के लिए जाने जाते हैं।

पहारू - और गोधरा कांड के लिए...



2. समारू - गृहमंत्री कहते हैं - छत्तीसगढ़ के एनजीओ नक्सलियों की मदद कर रहे हैं।

पहारू - ये तो वही हुआ, हमारी बिल्ली और हमहीं से म्याऊ ???



3.समारू - अमरकंटक स्थित सोनकुण्ड में एक साधु के समाधि लेने की खबर है।

पहारू - नित्यानंद के ‘नित्य-आनंद’ की खबर अब सुनने में नहीं आ रही है।



4. समारू - छग के आधे एनजीओ, नेताओं व अफसरों… Continue

Added by rajkumar sahu on September 19, 2011 at 9:00pm — No Comments

शोर-ए-दिल

हर किसी में, गर खुदा का नूर है |

कोई मिलता खुश, कोई रन्जूर है ||
अपने-अपने ह|ल में सब मस्त हैं |
कोई अपनों में है, कोई दूर है ||
जोर कुछ चलता नहीं, तकदीर पर |
बे-वज़ह इन्सां हुआ, मगरूर है ||
ठोकरों पे रख दिया, जिसने ज़हाँ |
उसको दुनिया ने कहा, मन्सूर है ||
ज़िन्दगी इनाम है, चाहे सजा |
इसको जीने पे, शशि मजबूर है ||

 

Added by Shashi Mehra on September 19, 2011 at 6:30pm — 1 Comment

कविता : हंसकर जियो जिंदगी ....

 
हंसकर जियो जिंदगी दिल उदास क्यों करते हो.
कल की छोडो कल पर आज एहसास क्यों करते हो.
           गुजरे हुए कल को भूल जाना है बेहतर.
           गम में अश्क बहाने से मुश्काना है बेहतर.
जब होनी को अनहोनी में हम ढाल नहीं सकते.
जब किस्मत में लिखी बात को टाल नहीं…
Continue

Added by Noorain Ansari on September 19, 2011 at 1:30pm — No Comments

दोहा सलिला: एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

एक हुए दोहा यमक:

-- संजीव 'सलिल'

*

पानी-पानी हो रहे, पानी रहा न शेष.

जिन नयनों में- हो रही, उनकी लाज अशेष..

*

खैर रामकी जानकी, मना जानकी मौन.

जगजननी की व्यथा को, अनुमानेगा कौन?

*

तुलसी तुलसी-पत्र का, लगा रहे हैं भोग.

राम सिया मुस्का रहे, लख सुन्दर संयोग..

*

सूर सूर थे या नहीं, बात सकेगा कौन?

देख अदेखा लेख हैं, नैना भौंचक-मौन..

*

तिलक तिलक हैं हिंद के, उनसे शोभित भाल.

कह रहस्य हमसे गये,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 19, 2011 at 7:08am — No Comments

मानसरोवर -- 7

 मतिमान सोचा करते हैं, चिंता भीरु करते हैं.

क्षणिक मोद में जो इठलाते, वही विपति से डरते हैं.

                जिस तरह गोधुलि का होना, निशा - आगमन का सूचक है.

               जैसे छाना जगजीवन का, पावस का सूचक है.

               वैसे ही सुख के पहले, दुःख सदैव आता है.

             जो मलिन होता दुःख से, सुख से वंचित रह जाता है.

सुख - दुःख सिक्के के दो पहलू , भेद मूर्ख ही करते हैं.

मतिमान सोचा करते हैं, चिंता भीरु करते हैं.

            दुःख…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 18, 2011 at 3:45am — 2 Comments

ये कैसी अंध भक्ति ?

हर बरस यह बात सामने आती है कि प्रतिमाओं के विसर्जन तथा श्रद्धा में लोग कहीं न कहीं, अंध भक्ति में दिखाई देते हैं और अन्य लोगों को होने वाली दिक्कतों तथा प्रकृति को होने वाले नुकसान से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। अभी कुछ दिनों पहले जब गणेश प्रतिमाएं विराजित हुईं, उसके बाद कान फोड़ू लाउडस्पीकरों ने लोगों को परेशान किया। प्रशासन की सख्त हिदायत के बावजूद फूहड़ गाने भी बजते रहे। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर जिस तरह तेज आवाज में गानें दिन भर बजते रहे या कहें कि दिमाग के लिए सरदर्द बने ये भोंपू रात…

Continue

Added by rajkumar sahu on September 17, 2011 at 9:35pm — No Comments

आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।

क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है

आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।



गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल 

आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।



मेरे अपनों का करम है क्या कहूं

यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।



जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब

दिल के आगे आदमी मजबूर है।



उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये

यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।



आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये

मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।



जुर्म यह था मैं ने सच…

Continue

Added by siyasachdev on September 15, 2011 at 9:10pm — 19 Comments

फिराक़ गोरखपुरी

फिराक़ गोरखपुरी का असल नाम था रघुपति सहाय। 28 अगस्‍त 1896 को उत्‍तर प्रदेश के शहर गोरखपुर में पैदा हुए। उनके पिता का नाम था, बाबू गोरखप्रसाद और वह आस पास के इलाके के सबसे दीवानी के बडे़ वकील थे। रघुपति सहाय का लालन पालन बहुत ही ठाठ बाट के साथ हुआ था। 1913 में गोरखपुर के जुबली स्‍कूल से हाई स्‍कूल पास किया। इसके पश्‍चात इलाहबाद के सेंट्रल कालेज में दाखिला लिया। इंटरमीडेएट करने के दौरान ही उनकी मनमर्जी के विरूद्ध उनके पिता ने रघपति सहाय की शादी करा दी गई। यह विवाह उनकी जिंदगी में अत्‍यंत…

Continue

Added by prabhat kumar roy on September 15, 2011 at 8:30pm — 5 Comments

अपने विश्वास के साथ...

 

 

सारी बातें भूलाकर

तुम्हारे दिये हर दर्द का

तोहफ़ा बनाकर

मै उठती हूँ हर सुबह

एक नई उमँग के साथ

कि शायद...

हाँ शायद

पा ही लूँगी

जो खोया था

आज ही होगा अंत

इन दुखदायी पलों का

मगर

घेर लेती है मुझे

फ़िर वही

जानी-पहचानी सी

मुस्कुराहट

मुह टेढ़ा किये

सुनो!

तुम्हारे ये बहाने

बदलते क्यों नही?

मेरा विश्वास…

Continue

Added by सुनीता शानू on September 15, 2011 at 5:00pm — 2 Comments

तड़पता हूँ के अब रोज़ तिरे दिल को दुखा कर

क्यों आ गया मैं हाय कभी हाथ छुड़ा कर,

तड़पता हूँ के अब रोज़ तिरे दिल को दुखा कर।

 

आज नदामत से पथरा गई हैं ये आंखें

आजा के बस इक बार तो आंचल से हवा कर।

 

दिन को सुकूँ शब को भी आराम नहीं है,

हवा भी चली आज ये नश्तर से चुभा कर।

 

अब ए दिल मुझे हयात की ख्वाहिश नहीं रही,

आया है वो मुकाम के मरने की दुआ कर।

 

दरे मौत पे आकर अटका है ये 'इमरान'

आ जा के मिरे जिस्म से ये रूह जुदा कर।

 

इमरान…

Continue

Added by इमरान खान on September 15, 2011 at 2:23pm — 4 Comments

फिर प्रारम्भ होगा सृष्टिचक्र

 

 पुरुष !
विवाह रचाओगे ?
पति कहलाना चाहोगे?
पत्नी को प्रताड़ित करना छोड़ ,
अच्छे जीवन साथी बन पाओगे?


मेरी ममता तो जन्मों की भूखी है ,
बच्चों के लिए बिलखती है,
सृष्टि-चक्र, मेरे ही दम पर है…
Continue

Added by mohinichordia on September 15, 2011 at 11:25am — 1 Comment

आतंकवाद की भेंट चढ़ गई एक लव स्टोरी

वो मासूम सा लड़का उसे बचपन से भला लगता था ,छोटी छोटी सी आँखें,घुंघराले बाल ,वो हमेशा से छुप छुप के उसे देखती आई थी ,जब वो अपना बल्ला  लेकर खेलने जाता, अपने दीदी की चोटी खींचकर भाग जाता, मोहल्ले के बच्चो के साथ गिल्ली डंडा खेलता हर बार वो बस उसे चुपके से निहार लिया करती थी. जैसे उसे बस एक बार देख लेने भर से इसकी आँखों को गंगाजल की पावन बूदों सा अहसास मिल जाता था . घर की छत  पर खड़ा होकर  जब वो पतंग उडाता वो उसे कनखियों से देखा करती थी जेसे जेसे उसकी पतंग आसमान में ऊपर जाती, इसका दिल भी जोरों…

Continue

Added by kanupriya Gupta on September 15, 2011 at 10:30am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
13 hours ago
Yatharth Vishnu updated their profile
yesterday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Thursday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Nov 6
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Nov 6
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service