क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है
आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।
गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल
आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।
उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।
आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।
जुर्म यह था मैं ने सच बोला "सिया"
आज हर अपना ही मुझ से दूर है।
Comment
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है.......siyochit gazal hai...nice..
//मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।//
खूबसूरत शेर ! शानदार अशआर, इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई सियाजी !
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल .हर शेर शानदार .बहुत बहुत बधाई !!
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल. हरेक शेर बहुत उम्दा.
Bahut hi sunder gazal bani hai. Jurm yeh tha main ne sach bola siya, aaj har apna hi mujh se door hai. meri ore se aap ko abhivaadan.
सिया, गजल बहुत सुंदर है..आप बहुत ही सुंदर लिखती हो...जिंदगी की कड़वी सचाई पर निर्भीकता से..बधाई है आपको.
janab वीनस केशरी ji bahut bahut shukria.aapne pasand farmaya uske liye bahut shukraguzaar hun.nawazish hain aapki...salamati ho
janab Saurabh Pandey ji...aapne ..pasand farmaya uske liye .tahe dil se shukriyaa ada karte hain aapka ,isse aap qubool farmaae...salamati ho
janab Arun Kumar Pandey 'Abhinav ji..aapake khoobsurat comment ke liye bahut bahut shukria...nawazish hain aapki !!!salamati ho
janab Brij bhushan choubey ji... bahut bahut shukria aapne pasand farmaya uske liye bahut shukraguzaar hun.nawazish hain ..salamati ho
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