ज़रा सोच लो
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दूसरों को ठोकरें मारने वालो
ज़रा सोच लो एक पल को
पराये दर्द का एहसास
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते
रजनी छाबरा
Added by rajni chhabra on May 28, 2010 at 2:40pm —
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क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,
क्या मिलता हैं तुझको यैसे में मुझे तरपाकर ,
जानती हो तुझको ही चाहू रखा हु दिल में बसाकर ,
सातों जनम का साथ हैं अपना साबित करू अपनाकर ,
क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,
मेरी नेह के नाता जानम तेरी सुन्दर काया नहीं ,
जनम जनम का प्रीत का खेल तब मिले हम यही ,
एक बार तू पास तो आओ मुझे समझो अंग लगाकर ,
बात मेरी मनो मुझको जानो देखो न नजर मिलकर ,
क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,
Added by Rash Bihari Ravi on May 28, 2010 at 2:30pm —
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जिंदगी को कुछ यूँ गुज़ारना हमें मंजूर न था
हरने को हम तैयार थे पर जीतना उन्हें मंजूर न था
अजी करते भी तो क्या करते,
की आना उन्हें मंजूर न था इंतज़ार करना हमें मंजूर न था
बस जीते चले गए इसी तरह कुछ क्यूंकि
रोना हमें मंजूर न था,और हसना उन्हें मंजूर न था
हम तो कबसे बैठे ही थे उनका दामन थामने
पर क्या करे की हमारा साथ उन्हें मंजूर न था
मिलने की तो भरपूर छह थी,पर फिर वही किस्मत अपनी
की गिरना हमें मंजूर न था और उठाना उन्हें मंजूर न था
राहे तो हर पल मै…
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Added by Biresh kumar on May 28, 2010 at 12:51am —
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हम को भी तुमसे प्यार था और बेहिसाब था
था वक़्त आशिकी का दौरे शबाब था
आँखों में शराब जब वक्ते शबाब था
जुल्फे भी उनकी नागिन ऐसा जनाब था
जो तुम खफा हुए तो ज़माना खफा हुआ
हम पर खुदा कसम की कोई अज़ाब था
उसने जब अपने हाथ में मेहदी रचा लिया
सब कुछ मिटा के रख दिया जितना खवाब था
मुझसे बिछड़ के रुख की कशिश को भी खो दिया
चेहरा था पुर कशिश कोई ताज़ा गुलाब था
अलीम के होश उड़ गए देखा जो एक झलक
कयामत वो ढा रहा था और बेहिजाब…
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Added by aleem azmi on May 25, 2010 at 9:35pm —
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हा मैं पिता हु ,
और मुझे गर्व हैं ,
की मैं पिता हु ,
माँ को दुःख था ,
की मैं पिता नहीं हु ,
घर वाले परेशान रहते थे ,
की मैं पिता नहीं हु ,
आज मैं पिता हु ,
सब खुस हैं ,
माँ रहती तो ओ भी ,
खुश होती ,
मेरी पत्नी कहती हैं ,
की मैं पिता हु ,
कसम से मैं झूठ नहीं बोलता ,
मैं पिता हु ,
अपने दो बच्चो का पिता हु ,
Added by Rash Bihari Ravi on May 25, 2010 at 1:43pm —
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दौरे गम में भी सबको हंसाते रहे .
आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे .
किसमें हिम्मत जो हमपे सितम ढा सके .
वो तो अपने ही थे जो सताते रहे
जिन लबों को मुकम्मल हँसी हमने दी .
वो ही किस्तों में हमको रुलाते रहे .
उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .
काश !मापतपुरी उनसे मिलते नहीं .
जो मिलाके नज़र फिर चुराते रहे .
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611
Added by satish mapatpuri on May 24, 2010 at 4:00pm —
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दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता,
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता,
ऐसे ही गुज़रते दिन,और फिर महीना गुज़र जाता,
महीने गुज़रते केवल तो कोई बात न थी
पर कमबख्त पूरा साल भी गुज़र जाता
बस दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता
वक़्त का कहीं कोई रिश्तेदार भी न है
की दो पल कहीं बैठता और जरा बतियाता
इस्पे बस चलने का धुन सवार है
कोई कितनी भी दे सदा,
ये न रुकता बस चला जाता
इंसान बस गिनता रहता है घड़ियाँ…
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Added by Biresh kumar on May 22, 2010 at 11:07pm —
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देख कर लोग मेरे साथ में जल जाते है
हम कभी साथ में तनहा जो निकल जाते है
याद आये मेरी तस्वीर लगाना दिल से
देख तस्वीर तेरी हम भी बहल जाते है
तू में खाई है कसम साथ निभाना होगा
करके वादे को सभी लोग बदल जाते है
होके दीवाना मैं गलियों में फिरा करता हू
वह कभी सज संवर के जो निकल जाते है
है उन्हें नाज़ जवानी पे ये मगर ए अलीम
देखकर हमको सभी लोग अहल जाते है
aap kabhi bhi hume yaad kar sakte hai kyuki kuch dino ke liye aapse…
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Added by aleem azmi on May 22, 2010 at 9:33pm —
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वो सफ़र की घड़ी
वो मुहब्बत की छड़ी
वो श्वेत मुस्कान की लड़ी
जैसे मानो दुनिया ही खड़ी
ऐसी अदा दिखलाके वो
जाने कहाँ गुम हो गयी
मुझे तन्हा छोड़ के गयी
मुझे बेसहारा कर के गयी..
उसका नज़रें चुराना
शर्म से पलकें झुकाना
हर अदा को छुपाना
जैसे खुद ही को झुठलाना
इतना करके भी वो खुद को रोक ना सकी
जैसे रुँधे गले से मेरा नाम ले गयी
खुद को झुठलाके वो खुद ही गुम हो गयी
वो अंजानी नगर
वो अनचाहा सफ़र
वो…
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Added by ABHISHEK TIWARI on May 22, 2010 at 4:32pm —
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आज सुबह मैंगलोर में जो बिमान दुर्घटना हुआ, ओ टी भी पर देख के बड़ा दुःख हुआ जो लोग गुजर गए भगवन उनके आत्मा के सान्ती दे ,
Added by Rash Bihari Ravi on May 22, 2010 at 3:22pm —
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लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."
यह सुन कर खुश होती…
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Added by rajni chhabra on May 22, 2010 at 10:15am —
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खुद से बाहर निकल नही सकता
बर्फ हूँ पर पिघल नही सकता
मेरे अंदर दबा है ज्वालामुखी
आग लेकिन उगल नही सकता
तेरी आँखे बदल भी सकती हैं
मेरा चेहरा बदल नही सकता
मुझ को मिट्टी मे तुम मिला भी दो
तेरे साँचे मे ढल नही सकता
मुक्त आकाश का मैं पंछी हूँ
किसी पिंजरे मे पल नही सकता
Added by fauzan on May 22, 2010 at 1:36am —
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वो घटा आज फिर स बरसी है
मुद्दतों आँख जिस पे तरसी है
कल तलक जो मेरा मसीहा था
आज उसकी ज़बा ज़हर सी है
मर मिटा आपकी अदाओं पर
हर अदा आपकी कहर सी है
रूठ जाना ज़रा सी बातों पर
यह अदा भी तेरी हुनर सी है
खो न जाऊ तुम्हारी आँखों में
आँख "अलीम" तेरी नगर सी है
Added by aleem azmi on May 21, 2010 at 2:48pm —
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मैं रोता रहा रात भर चुपके चुपके
गई रात आई सहर चुपके चुपके
वह कुर्बत बढाने लगा आजकल है
मिलाता है मुझसे नज़र चुपके चुपके
तेरी चाहतें खीच लायी येह तक
मैं आया हू तेरे नगर चुपके चुपके
लगाया था तुमने मोहब्बत का पौधा
वह होने लगा है शजर चुपके चुपके
तेरी आशिकी का है चर्चा शहर में
यह फैली "अलीम" खबर चुपके चुपके
शजर - पेड़ , दरख़्त
कुर्बत - करीब आना
Added by aleem azmi on May 21, 2010 at 1:59pm —
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इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए
आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए
अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए
गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......
Added by दुष्यंत सेवक on May 21, 2010 at 11:42am —
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ये अंधकार ये वातावरण जो भय का है.
यही समय तो नये सूर्य के उदय का है.
ये ज़िंदगी का बही जाने किस समय का है.
ना इसमे आय का व्योरा ना कोई व्यय का है.
परास्त हो के भी अब मन मेरा उदास नही.
किअबकी हार मे भी स्वाद कुछ विजय का है.
भटक रहा हूँ जो जीवन के इस मरुस्थल मे
है इसमे दोष किसी का तो बस समय का है.
Added by fauzan on May 20, 2010 at 10:40pm —
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तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हू
महसूस हुआ है तुम्हे देख रहा हू
ऐसा भी नहीं है तुम्हे याद करू मैं
ऐसा भी नहीं है तुम्हे भूल गया हू
शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू
ए रात मेरी सम्त ज़रा सोच के बढ़ना
मलूँ नहीं तुम्हे क्या मैं अलीम जिया हू
तकब्बुर - घमंड
सम्त - मेरी तरफ , जानिब
जिया -रौशनी उजाला
Added by aleem azmi on May 20, 2010 at 10:05pm —
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ओ दिल्ली वालो ,
हमें इतना बताओ ,
हिन्दुस्ता पे जो खाज परे हैं ,
उसको कब मिटाओगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
हिन्दुस्ता पे बहुत ऐसे खाज हैं ,
उसको मिटाना जरुरी आज हैं ,
मेहमान बनाके कब तक ,
पैसा लुटाओगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
मेरी नहीं ये ,
देश की मांग हैं ,
आपको तो भोट दीखता ,
हमें हिंदुस्तान हैं ,
हिंद में ख़ुशी का ,
दिन कब लावोगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
हिन्दू ,…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 2:10pm —
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माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,
जनता माफ़ नहीं करेगी बोलेगी शैतान ,
जनता के नाम पर हिंदुस्तान को जला रहे हो ,
बिदेसी पैसा ले ले कर मौज मस्ती मन रहे हो ,
कब तक डरेगी जनता जिसे तू डरा रहे हो ,
जिस दिन डरना बंद करेगी हो जाओगे परेशान ,
माओबादी के झंडा तले फुकने मत दो हिंदुस्तान ,
झारखण्ड , छत्तीसगढ़ बंगाल में हाहाकार मचाये ,
बिहार में भी तुमने करोरो का तेल जलाये ,
मारते हो आम आदमी को जिसदिन ओ जागेगा ,
नजर नहीं आओगे मिट जायेगा नमो निसान…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 1:41pm —
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दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर
सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,
खिजां आ गई बहार आने से पहले
बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
*बज़्म- महफिल
मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले
*नाखुदा- मल्लाह, नाविक
कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,
राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले
*राब्ता-…
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Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 1:05pm —
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