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ज़रा सोच लो
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दूसरों को ठोकरें मारने वालो
ज़रा सोच लो एक पल को
पराये दर्द का एहसास
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते

रजनी छाबरा

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Comment

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Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 3:04pm
lajabab,
Comment by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 6:41pm
जाके पैर ना फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई की आधुनिक और बेहतरीन अभिव्यक्ति, बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएँ आद्रेया रजनी जी
Comment by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:30pm
पराये दर्द का एहसास
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते
काश! इसका एहसास ज़माने को हो जाता. रजनी जी, इस बेहतरीन रचना के लिए धन्यवाद.
Comment by Biresh kumar on May 29, 2010 at 2:06am
concentrate prastuti!!!!!!!!
Comment by Kanchan Pandey on May 28, 2010 at 9:23pm
Bahut badhiya didi, har baar ki tarah ees bar bhi aek shandar prastuti, Thanks

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2010 at 8:32pm
बहुत बढ़िया कविता लिखी है दीदी, थोड़े मे बहुत कह दी है आप, बहुत बढ़िया,
Comment by Admin on May 28, 2010 at 5:05pm
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते
वाह दीदी वाह , इसे कहते है छोटा पैकेट बड़ा धमाका , कम शब्दों मे बहुत बड़ा सन्देश मिल रहा है इस कविता से, बहुत ही ससक्त अभिव्यक्ति है आपका, बहुत बहुत धन्यवाद इस रचना हेतु,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 28, 2010 at 4:41pm
दूसरों को ठोकरें मारने वालो
ज़रा सोच लो एक पल को
पराये दर्द का एहसास

bahut hi badhiya rachna hai rajani didi.......bahut bahut dhanyabaad yahan humlogo ke beech share karne ke liye...

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