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ग़ज़ल-2 (Aleem Azmi)

तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हू
महसूस हुआ है तुम्हे देख रहा हू

ऐसा भी नहीं है तुम्हे याद करू मैं
ऐसा भी नहीं है तुम्हे भूल गया हू

शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू

ए रात मेरी सम्त ज़रा सोच के बढ़ना
मलूँ नहीं तुम्हे क्या मैं अलीम जिया हू

तकब्बुर - घमंड
सम्त - मेरी तरफ , जानिब
जिया -रौशनी उजाला

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2010 at 8:51pm
शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू ,

Bahut sahi kaha hai aapney Aleem Bhai, aap ki Gazal mey likhi batey bilkul sahi hai, mainey bhi kuch logo ko dekh raha hu ki wo TAKABBUR key karan hi dub rahey hai,barhaal achhi Gazal pesh kiya hai aapney shukriya,
Comment by Admin on May 21, 2010 at 11:11am
बहुत बढ़िया अलीम भाई, ओपन बुक्स ऑनलाइन का यही मकसद है की अनुभवी साहित्यकारों के बीच मे रह कर नई प्रतिभा को सीखने का मौका मिलेगा,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 21, 2010 at 10:36am
ऐसा भी नहीं है तुम्हे याद करू मैं
ऐसा भी नहीं है तुम्हे भूल गया हू

शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू
bahut shaandar rachna hai ye aapki aleem bhai...
Comment by Khushboo on May 21, 2010 at 10:35am
तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हू
महसूस हुआ है तुम्हे देख रहा हू
bahhut hi badhiya....

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2010 at 9:55am
अलीम भाई, आपकी गजल-1 ओर गजल-2 पढ़ी l आपका प्रयास बहुत सराहनीय है लेकिन वजन पर थोडा और ध्यान देने कि ज़रुरत है ! अच्छे शायरों क़ी रचनायें पढ़ा कीजिये और इस बात पर निगाह रखा कीजिये क़ी आज कल किस तरह के आशार कहे जा रहे हैं !

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