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इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए

आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए

अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए

गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......

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Comment

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Comment by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 6:30pm

shukriya shanu ji. Aabhar apka

Comment by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 4:45pm

वाह बहुत सुन्दर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2010 at 8:45pm
आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए

दुष्यंत भाई, बहुत ही जबरदस्त और उम्दा ग़ज़ल कही है आपने, हम सब तो आपके फ़ैन हो गये है, जय हो, बहुत बढ़िया ,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 21, 2010 at 12:01pm
अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए
waah dushyant jee waah....ekdam kamaal ki gazal hai ye aapki....man khush ho gaya padh kar,,....
Comment by Admin on May 21, 2010 at 11:57am
इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए,

बहुत बढ़िया दुष्यंत साहिब, आप की ग़ज़ल बज्म मे चार चाँद लगा देते है,

कृपया ध्यान दे...

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