For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,936)

दोहे

दोहे सुनकर जीत के, मन को लेंगे जीत.

प्रेम मिलेगा आपको, साथ निभाए प्रीत..

 

सोमवार में पूज्य हैं, हम सबके शिवनाथ.

मंगल जो सुमिरन करे, बजरंगी हों साथ.

 

बुद्ध दिनों में शुद्ध अति, मिले त्याग उपदेश.

गुरु को गुरु पूजन करें, दूर रहें सब क्लेश..

 

शुक्रवार को साधिए, मन में हो संतोष.

शनि पूजन शनिवार जो, मिटे तभी सब दोष.

 

मन प्रसन्न रविवार को, सुख मिलता भरपूर.

सूर्य देव की हो कृपा, कष्ट सभी हों…

Continue

Added by Jeet Gaurav Awasthi on February 27, 2012 at 5:00pm — 2 Comments

आह



आह देशभक्त की है आह  एक पितृ की है ,

आह माँ की लिखने को कलम  उठाई  है .
आह बेटियों की है पुकार के ये  पूंछ…
Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 27, 2012 at 12:47am — No Comments

गोपी गीत दोहानुवाद -- संजीव 'सलिल'

  गोपी गीत दोहानुवाद

संजीव 'सलिल'

*

श्रीमदभागवत दशम स्कंध के इक्तीसवें अध्याय में वर्णित पावन गोपी गीत का भावानुवाद प्रस्तुत है.

धन्य-धन्य है बृज धरा, हुए अवतरित श्याम.

बसीं इंदिरा, खोजते नयन, दरश दो श्याम.. 

जय प्रियतम घनश्याम की, काटें कटें न रात.

खोज-खोज हारे तुम्हें, कहाँ खो गये तात??

हम भक्तन तुम बिन नहीं, रातें सकें गुजार.

खोज रहीं सर्वत्र हम, दर्शन दो बलिहार.. 

कमल सरोवर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on February 26, 2012 at 12:02pm — No Comments

जन्मदिन...

जन्मदिन पर .

तुमनें दी 

शुभकामनाएं

कुछ की

प्रभु से प्रार्थनाएं .

सोचता हूँ

तुम्हें आभार दूँ

या दिल की

गहराइयों से चलकर

रूह के धरातल पर

उबलते , उफनते

विचार दूँ ?

क्या बता दूँ ?

की मैं क्यों

हो जाता हूँ उदास

क्यों बस

एक ही एहसास

मुझे कर जाता है

अंतर से बदहवास

हर साल

जब देती हो तुम

कुछ सपनों में ढाल

प्रेम से बुना

दिल से…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on February 25, 2012 at 5:30pm — 2 Comments

कंगूरों तक चढूंगा

सुनो राजन !

तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !

और अब हम ही खड़े है

हाथ बांधे

सर झुकाए

सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !

जिस अटारी पर खड़े हो

सभ्यता की ,

तुम कथित आदर्श बनकर ,

जिन कंगूरों पर

तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,

उस महल की नींव देखो !

क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है

हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,

और दीवारें बनी है

ईंट से हैवानियत की !

 

है तेरे संबोधनों में दब…

Continue

Added by Arun Sri on February 25, 2012 at 10:55am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
(लघु कथा) अपना आशियाना

लघु कथा 

अरे भाई हँसमुख जी, आज क्यूँ उदास हो, क्या हुआ ? क्या बताऊँ मैं आज बहुत परेशां हूँ, आप ही बताओ आप को कैसा लगेगा यह जान कर कि आप जिस घर में पिछले दस साल से अकेले रहते हो, उसमे आप के अलावा कोई और भी अचानक आकर रहने लगे !! कल रात कुछ लोग अचानक मेरे घर में मेरे ही सामने मेरे घर में डेरा डाल कर बैठ गए और अपना आधिपत्य जताने लगे और मैं कुछ न कर सका | जी में तो आया कि एक एक को उठाकर फेंक दूं पर क्या करे हमारी भी कुछ अपनी…

Continue

Added by rajesh kumari on February 25, 2012 at 10:00am — 14 Comments

गजल : बात करने से ही बनती है बात दोस्तों.

बात करने से ही बनती है बात दोस्तों.

अब छोडो ये ख़ामोशी का साथ दोस्तों.
.

माना की बहूत दर्द है आज हमारे सीने में,

पर महज तड़प से नहीं बदलेगी,हालात दोस्तों,

कुछ ना पावोगे उम्मीदों की महफ़िल सजाने से,

जब तक हो ना उसपे अमल की बरसात दोस्तों.

कल का चेहरा दुनिया में देखा है किसने अबतक,

जो भी करना है कर दो…

Continue

Added by Noorain Ansari on February 24, 2012 at 6:30pm — 2 Comments

पापा

माँ को महसूस करती हूँ उनके अंदर ही,

जब दुनिया मे आऊँगी, मुझसे मिलने पापा आओगे न।

 

दिन भर आपका रास्ता देखती हूँ मै,

शाम को आकर मुझे अपनी बाहों का झूला, पापा झूलाओगे न।

 

आपके संरक्षण मे खुद को सुरक्षित महसूस करती हूँ मै,

यूं ही पूरा जीवन मुझे सुरक्षित महसूस, पापा कराओगे न।

 

छोड़ के अपना प्यारा आँगन,किसी और का घर सजाना हैं,

बेटी से बहू बनने तक का सफर पापा पूरा कराओगे न। 

Added by Vasudha Nigam on February 24, 2012 at 5:52pm — 1 Comment

उदबोध

प्रभुता  की बागडोर आप सबके ही हाँथ,
चेतना में आके मान  देश  का  बढाइये.…
Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 24, 2012 at 4:00pm — 10 Comments

मानसरोवर - 8

         

रे मानव क्या सोच रहा, इस मरघट में क्या खोज रहा ?
यथार्थ नहीं - यह धोखा है, सार नहीं यह थोथा है.
               यह जग माया का है बाज़ार.
               जहाँ रिश्ता का होता व्यापार.
कोई मातु - पिता, कोई भाई है, कोई बेटी और जमाई है.
कोई प्यारा सुत बन आया है, कोई बहन और कोई जाया है.
                    ये रिश्ते हैं छल के प्राकार.
                    ये हैं माया के ही प्रकार.
इस माया को ही…
Continue

Added by satish mapatpuri on February 24, 2012 at 2:05am — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुझको दुनिया में आने दो I मुझको दुनिया में आने दो I

यह कविता उन व्यक्तियों ,महिलाओं के सन्दर्भ में है जो कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भागीदार हैं इसके खिलाफ लड़ाई में मेरा यह छोटा सा प्रयास है !मेरी यह कविता QAWWA(मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स )

की बुक में पब्लिश होकर राष्ट्रपति महोदया के निर्देशानुसार स्वास्थ्य,परिवार कल्याण मंत्रालय की किताब हमारा घर में पब्लिश हुई|आज आप सब के सम्मुख रख रही हूँ कृपया प्रतिक्रिया…
Continue

Added by rajesh kumari on February 23, 2012 at 8:36pm — 11 Comments

नई उँगलियाँ

बहुत दुखते हैं

पुराने घाव ,

जब आती हैं

मरहम लगाने

नई उँगलियाँ !

उन्हें नही पता -

कितनी है

जख्म की गहराई ,

क्या होगी

स्पर्श की सीमा !

उनमे नही होती

पुराने हाथों जैसी छुअन !

 

रिसने दो

मेरे घावों को ,

क्योकि बहुत दुखतें हैं

पुराने घाव

जब आती है

मरहम लगाने

नई उँगलियाँ !

 

अब और दर्द सहा न जाएगा…

Continue

Added by Arun Sri on February 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments

लघुकथा--हेलमेट.

सरकार ने सख्ती दिखाई.फिर से हेलमेट की दुकानें सज गई.गोविन्द ने भी कुछ पैसे जमाये और एक हेलमेट की दुकान सड़क के किनारे खोलकर बैठ गया. धंधा चल निकला.लोगों के सरों की हिफाज़त के सरकारी फरमान के चलते गोविन्द और उस जैसे कई बेरोजगारों को काम मिल गया. तभी एक दिन दोपहर के वक़्त एक अनियंत्रित ट्रक गोविन्द की दुकान पर चढ़ गया. तमाम हेलमेट सड़क पर इधर-उधर बिखर गए. पुलिस वाले उन्ही हेलमेटों के बीच गोविन्द के धड से अलग हुये सिर की तलाश कर रहे थे..

....... अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on February 23, 2012 at 10:00am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कब तक जलो

फर्ज के अलाव में कब तक जलो 

परछाई भी कहने लगी इधर चलो 
चन्दन से लिपट खुद को समझ बैठे चन्दन, 
भ्रम जाल में खुद को कब तक छलो|
हम तो पानी पे तैरती लकड़ी हैं दोस्तों  
सागर भी कहता है अब यूँ ही गलो|
हंस- हंस के गले मिलते हैं जड़े काटने वाले, 
फिर चलते हुए कहते हैं फूलों फलो |
ख़त्म हो चुका है कब से तेल बाती का
पर उनका  यही कहना है रात भर बलो|
 फर्ज के अलाव…
Continue

Added by rajesh kumari on February 23, 2012 at 9:05am — 11 Comments

*स्वप्न*

       *स्वप्न*

सपनों को मत रोकों टोको,…

Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 22, 2012 at 11:30pm — 4 Comments

कुछ हाइकु

कुछ हाइकु 


(१)
मंदिर द्वारे 
 जीवन अभिशाप 
 देव दासी का
 (२)…
Continue

Added by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 1:00pm — 10 Comments

बिन तुम्हारे मैं अधूरा

अश्रु गण साथी रहे

मेरे ह्रदय की पीर बनकर !

रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !

मैं भटकता नीर बनकर !

तुम सुनहरे स्वप्न सी हो

मैं नयन हूँ !

बिन तुम्हारे मैं अधूरा

और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !

जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर

निज अहम के हार तक का ,

प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,

प्यार से उद्धार तक का

मार्ग हो तुम !

मै पथिक हूँ !

निहित हैं तुझमे सदा से

कर्म मेरे

भाग्य…

Continue

Added by Arun Sri on February 22, 2012 at 1:00pm — 7 Comments

अंतर



अक्सर सोचता हूँ…
Continue

Added by Rana Navin on February 19, 2012 at 1:32am — 1 Comment

सीखा है

सूखे पेड़ों से मैंने डटकर के जीना सीखा है,

हरे-भरे पेड़ों से मैंने झुककर जीना सीखा है,

मस्त घूमते मेघों ने सिखलाया मुझको देशाटन,

और बरसते मेघों से सब कुछ दे देना सीखा है।

 

हर दम बहती लहरों से सीखा है सतत्‍ कर्म करना,

रुके हुए पानी से मैंने थम कर जीना सीखा है,

जलती हुई आग से सीखा है जलकर गर्मी देना,

जल की बूंदों से औरों की आग बुझाना सीखा है।

 

सागर से सीखा है सागर जितना बड़ा हृदय रखना,

धरती से सब की पीड़ा का भार उठाना…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on February 18, 2012 at 10:06pm — 4 Comments

बलात्कार: उद्भव, विकास एवं निदान

शुरू में सब ठीक था

जब धरती पर

प्रारम्भिक स्तनधारियों का विकास हुआ

नर मादा में कुछ ज्यादा अन्तर नहीं था

मादा भी नर की तरह शक्तिशाली थी

वह भी भोजन की तलाश करती थी

शत्रुओं से युद्ध करती थी

अपनी मर्जी से जिसके साथ जी चाहा

सहवास करती थी

बस एक ही अन्तर था दोनों में

वह गर्भ धारण करती थी

पर उन दिनों गर्भावस्था में

इतना समय नहीं लगता था

कुछ दिनों की ही बात होती थी।



फिर क्रमिक विकास में बन्दरों का उद्भव हुआ

तब जब हम…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2012 at 8:04pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रदत्त चित्र पर अच्छे दोहे रचे हैं आपने.किन्तु अधिकाँश दोहों…"
17 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"देती यह तस्वीर  है, हम को तो संदेशहोता है सहयोग से, उन्नत हर परिवेश।... सहयोग की भावना सभी…"
20 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"   आधे होवे काठ हम, आधे होवे फूस। कहियो मातादीन से, मत होना मायूस। इक दूजे का आसरा, हम…"
24 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्र को साकार करता बहुत मनभावन गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहावलीः सभी काम मिल-जुल अभी, होते मेरे गाँव । चाहे डालें हम वहाँ, छप्पर हित वो छाँव ।। बैठेंगे…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"दिये चित्र में लोग मिल, रचते पर्ण कुटीरपहुँचा लगता देख ये, किसी गाँव के तीर।१।*घास पूस की छत बना,…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हाड़ कंपाने ठंड है, भीजे को बरसात। आओ भैया देख लें, छप्पर के हालात।। बदरा से फिर जा मिली, बैरन…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service