For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ

बह्र : 1222 1222 122

तुम्हारे शहर से मैं जा रहा हूँ

बिछड़ने से बहुत घबरा रहा हूँ

 

वहाँ दुनिया को तू अपना रही है

यहाँ दुनिया को मैं ठुकरा रहा हूँ

 

उठा कर हाथ से ये लाश अपनी

मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ

 

तुम्हारे इश्क़ में बन कर मैं काँटा

सभी की आँख में चुभता रहा हूँ

 

नहीं मालूम जाना है कहाँ पर

न जाने मैं कहाँ से आ रहा हूँ

 

मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे

तुम्हीं से रात दिन लड़ता रहा हूँ

 

पढ़ा इक लफ़्ज़ भी उसने ने मेरा

ग़ज़ल जिसके लिए लिखता रहा हूँ

 

मुहब्बत करने वाले मर गए हैं

मैं दिल को कब से ये समझा रहा हूँ

 

नहीं आया मुझे वो रोकने को

उसे मालूम है मैं जा रहा हूँ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on July 20, 2019 at 11:36am

'मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे

तुम्हीं से रात दिन लड़ता रहा हूँ'

बहुत खूब!

आदरणीय महेंद्र जी, ख़ूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 27, 2019 at 3:49pm

क्या बात है लाजवाब | समर सर की इस्लाह भी लाजवाब | 

Comment by दिगंबर नासवा on February 20, 2019 at 12:17pm

उम्दा ग़ज़ल और लाजवाब शेर ...

बहुत बधाई 

Comment by Balram Dhakar on February 11, 2019 at 10:56pm

आदरणीय महेंद्र जी, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई, इस शानदार ग़ज़ल के लिए।

सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on February 2, 2019 at 4:09pm

आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। आद0 समर कबीर साहब की इस्लाह भी उत्तम। बहुत बहुत बधाई आपको इस सृजन पर

Comment by Samar kabeer on February 1, 2019 at 9:53pm

जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'वहाँ दुनिया को तू अपना रही है'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'वहाँ दुनिया को तुम अपना रहे हो'

कारण ये कि उर्दू शाइरी में महबूब को स्त्रीलिंग नहीं लेते ।

'उठा कर हाथ से ये लाश अपनी'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'उठा कर लाश ये हाथों से अपने'

कारण ये कि एक हाथ से लाश उठाना मुमकिन नहीं ।

'पढ़ा इक लफ़्ज़ भी उसने ने मेरा'

इस मिसरे में 'ने' को "न" कर लें ।

Comment by Surkhab Bashar on February 1, 2019 at 9:50am

जनाब महेंद्र कुमार जी, आदाब उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारक बाद कुबूल करें

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2019 at 6:20am

आ. भाई महेंद्र जी, अच्छी गजल हुयी है हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
21 hours ago
Yatharth Vishnu updated their profile
yesterday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Thursday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Nov 6
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Nov 6
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service