1212 1122 1212 112
हैं मुन्तज़िर मेरे अहबाब देखने के लिए ।
जमीं पे उतरेगा महताब देखने के लिए ।।1
न जाने कैसा नशा है तुम्हारी सूरत में ।
सुना है रिन्द हैं बेताब देखने के लिए ।।2
तू अपनी तिश्नगी पे यार आज काबू रख ।
मिलेंगे और भी ज़हराब देखने के लिए ।।3
बहेंगे आप भी दरिया ए अश्क़ में इक दिन ।
अगर यूँ आएंगे शैलाब देखने के लिए ।।4
कुछ इस तरह से ख़ुदा ने नसीब बख़्शा है ।
हमें मिला ही…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2021 at 8:52am — 4 Comments
2122 2122 2122 2122
कैसे कह दें मुल्क में कितनी निखर आयी सियासत ।
क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत ।।
चाहतें सब खो गईं और खो गए अम्नो सुकूँ भी ।
इक तबाही का लिए मंज़र जिधर आई सियासत ।।
नफ़रतों के ज़ह्र से भीगा मिला हर शख़्स मुझको ।
कुर्सियों के वास्ते जब गाँव- घर आई सियासत।।
मन्दिरो मस्ज़िद में बैठे खून के प्यासे बहुत हैं ।
क्या हुआ इस मुल्क में जो इस कदर आई सियासत ।।
आदमी का ख़्वाब देखो फिर ठगा सा…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 23, 2020 at 1:00am — 8 Comments
212 1212 1212 1212
ख़ाक हो गयी खुशी, था आग का पता नहीं ।
ख़्वाब सारे जल गए, मगर धुआँ उठा नहीं ।
पूछिये न हाले दिल यूँ बारहा मेरा सनम ।
ये हमारे दर्दोगम का सिलसिला नया नहीं ।।
इक नज़र से दिल मेरा वो लूट कर चला गया ।
इस सितम पे क्यूँ अभी तलक कोई खफ़ा नहीं ।।
रूबरू था हुस्न …
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2020 at 11:31pm — 7 Comments
2212 2212 2212 2212
मैं ठोकरें खाता रहा मुझ पर तरस आता था कब ।
इस ज़िंदगी पर सच बताएं आपका साया था कब ।।1
जीता रहा मैं बेखुदी में मुस्कुरा कर उम्र भर।
अब याद क्या करना कि मैंने होश को खोया था कब ।।2
वो कहकशां की बज़्म थी, उन बादलों के दरमियां ।
मुझको अभी तक याद है वो चाँद शर्माया था कब ।।3
जलते रहे क्यूँ शमअ में परवाने सारी रात तक ।
तू वस्ल के अंज़ाम का ये फ़लसफ़ा समझा था कब ।।4
जो अश्क़ में डूबा मिला था…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2020 at 5:44pm — 4 Comments
2122 2122 2122
अपनी रानाई पे तू मग़रूर है क्या ।
बेवफ़ाई के लिए मज़बूर है क्या ।।
कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।
तू बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या ।।
दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।
वो ज़रा सी उम्र में मशहूर है क्या ।।
तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।
शह्र का तेरे नया दस्तूर है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2020 at 3:00pm — 3 Comments
हासिल ग़ज़ल
221 2121 1221 212
बेचैनियों का दौर बढा कर चली गयी ।
महफ़िल में वो बहार जब आ कर चली गयी ।।
उसकी मुहब्बतों का ये अंदाज़ था नया ।
अल्फ़ाज़ दर्दो ग़म के छुपाकर चली गयी।।
उसको कहो न बेवफ़ा जो मुश्क़िलात में ।
कुछ दूर मेरा साथ निभाकर चली गयी ।।
साक़ी भुला सका न उसे चाहकर भी मैं ।
जो मैक़दे में जाम पिलाकर चली गयी ।।
हैरां थी मुझ में देख के चाहत का ये शबाब…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2020 at 1:37pm — No Comments
1212 1122 1212 22
यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1
मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।
वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2
उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3
खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4
निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2020 at 9:06pm — 6 Comments
2122 1122 1122 22
दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया ज़ख़्म कहीं था भी नहीं ।।
काश वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख़्स किसी का भी नहीं ।।
क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।
मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साक़ी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।
सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगा ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2020 at 10:00am — 10 Comments
ग़ज़ल
2122 2122 2122
मृत्यु के अनुरक्ति का अभिसार है क्या ।
मुक्ति पथ पर चल पड़ा संसार है क्या ।।
काल शव से कर चुका श्रृंगार है क्या ।
यह प्रलय का इक नया हुंकार है क्या ।।
आत्माओं का समर्पण हो रहा है ।
दृष्टिगोचर मृत्यु का उदगार है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 11, 2020 at 5:39pm — 4 Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 122
करेगा दम्भ का यह काल भी अवसान किंचित ।
करें मत आप सत्ता का कहीं अभिमान किंचित ।।
क्षुधा की अग्नि से जलते उदर की वेदना का ।
कदाचित ले रहा होता कोई संज्ञान किंचित ।।
जलधि के उर में देखो अनगिनत ज्वाला मुखी हैं।
असम्भव है अभी से ज्वार का अनुमान किंचित।।
प्रत्यञ्चा पर है घातक तीर शायद मृत्यु का अब ।
मनुजता पर महामारी का ये संधान किंचित ।।
चयन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 2, 2020 at 4:23pm — 9 Comments
1222 1222 122
निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।
रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।
हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।
तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।
कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।
ठहर जाती हैं नज़रें…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:35pm — 4 Comments
2122 2122 212
जाने कैसी तिश्नगी है ज़िंदगी ।
ख्वाहिशों की बेबसी है जिंदगी ।।
हर तरफ़ मजबूरियों का दौर है ।
ज़ह्र कितना पी रही है जिंदगी ।।
फ़िक्र किसको है सियासत तू बता ।
भूख से दम तोड़ती है जिंदगी ।।
दर्दो ग़म मत पूछिए मेरा सनम ।
बेवफ़ा सी हो गयी है ज़िन्दगी ।।
इस वबा के जश्न में तू देख तो ।
क्यूँ बहुत सहमी हुई है ज़िन्दगी ।।
है तबाही का नया मंज़र यहां…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:27pm — 1 Comment
हमारे इल्म का वो क़द्रदान थोड़ी है ।
हमें दे रोटियां कोई महान थोड़ी है ।।
उसे है बेचना हर ईंट इस इमारत की ।
हुज़ूर मुफ़्त में वो मिह्रबान थोड़ी है ।।
विकास सब का हो और साथ भी रहे सबका ।
ये राजनीति है पक्की ज़ुबान थोड़ी है ।।
लुढ़क रहे हैं ख़ज़ाने ये फ़िक्र कौन करे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 17, 2019 at 2:49pm — 1 Comment
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मत कहो आप दौरे गुरबत है ।
चश्मेतर हूँ ये वक्ते फुरकत है ।।
कुछ तो भेजी खुदा ने आफ़त है ।
ये तबस्सुम है या क़यामत है ।।
उसकी किस्मत को दाद देता हूँ ।
जिसको हासिल तुम्हारी कुर्बत है ।।
अलविदा मत कहें हुजूर अभी ।
बज़्म को आपकी ज़रूरत है ।।
इश्क़ में क्या …
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2019 at 12:30pm — 1 Comment
2122 2122 2122 212
कुछ मुहब्बत कुछ शरारत और कुछ धोका रहा ।
हर अदा ए इश्क़ का दिल तर्जुमा करता रहा ।।
याद है अब तक ज़माने को तेरी रानाइयाँ ।
मुद्दतों तक शह्र में चलता तेरा चर्चा रहा ।।
पूछिए उस से भी साहिब इश्क़ की गहराइयाँ ।
जो किताबों की तरह पढ़ता कोई चहरा रहा ।।
वो मेरी पहचान खारिज़ कर गया है शब के बाद ।
जो मेरे खाबों में आकर गुफ्तगू करता रहा ।।
साजिशें रहबर की थीं या था मुकद्दर का कसूर ।
ये मुसाफ़िर…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 12:33am — No Comments
ग़ज़ल
हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।
न जाने कितने क़ातिल घूमते हैं शह्र में तेरे ।
यहाँ कानून की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।
सियासत के पतन का देखिये अंजाम भी साहब ।
दरिन्दों को मिली जो कुर्सियां अच्छी नहीं लगतीं।।
वो सौदागर है बेचेगा यहाँ बुनियाद की ईंटें ।
बिकीं जो रेल की सम्पत्तियां अच्छी नहीं लगतीं ।।
बिकेगी हर इमारत…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 4, 2019 at 2:02am — 7 Comments
122 122 122 122
न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफर है ।।
मेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राजे दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मकतल सा मंजर हटा जब से चिलमन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 14, 2019 at 5:30pm — 3 Comments
1212 1122 1212 22/112
न पूछिये कि वो कितना सँभल के देखते हैं ।
शरीफ़ लोग मुखौटे बदल के देखते हैं ।।
अज़ीब तिश्नगी है अब खुदा ही खैर करे ।
नियत से आप भी अक्सर फिसल के देखते हैं ।।
पहुँच रही है मुहब्बत की दास्ताँ उन तक ।
हर एक शेर जो मेरी ग़ज़ल के देखते हैं ।।
ज़नाब कुछ तो शरारत नज़र ये करती है ।
यूँ बेसबब ही नहीं वो मचल के देखते हैं ।।
गुलों का रंग इन्हें किस तरह मयस्सर हो…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 6, 2019 at 2:51pm — 2 Comments
1212 1212 1212 1212
शराब जब छलक पड़ी तो मयकशी कुबूल है ।
ऐ रिन्द मैकदे को तेरी तिश्नगी कुबूल है ।
नजर झुकी झुकी सी है हया की है ये इंतिहा ।
लबों पे जुम्बिशें लिए ये बेख़ुदी कुबूल है ।।
गुनाह आंख कर न दे हटा न इस तरह नकाब ।
जवां है धड़कने मेरी ये आशिकी कबूल है ।।
यूँ रात भर निहार के भी फासले घटे नहीं ।
ऐ चाँद तेरी बज़्म की ये बेबसी कुबूल है ।।
न रूठ कर यूँ जाइए मेरी यही है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2019 at 9:30pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
लेती है इम्तिहान ये उल्फ़त कभी. कभी ।
लगती है राहे इश्क़ में तुहमत कभी कभी ।।
आती है उसके दर से हिदायत कभी कभी ।
होती खुदा की हम पे है रहमत कभी कभी ।।
चहरे को देखना है तो नजरें बनाये रख ।
होती है बेनक़ाब सियासत कभी कभी ।।
यूँ ही नहीं हुआ है वो बेशर्म दोस्तों ।
बिकती है अच्छे दाम पे गैरत कभी कभी ।।
मुझ पर सितम से पहले ऐ क़ातिल तू सोच ले ।
देती सजा ए मौत है कुदरत कभी कभी…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2019 at 6:42pm — 4 Comments
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