बहर - 221 2122 221 2122
यूँ मेरी नज़रें ग़ज़लों की हर किताब पर हैं .......
जैसे....... शराबियों की नज़रें शराब पर हैं ....
जब .चल दिया मैं उनकी महफ़िल से तो वो बोले
ठहरो ......कुछेक पल लब मेरे ज़वाब पर हैं .....
हाँ , बेगुनाह होती है अपनी भावनायें
इल्जाम इसलिये तो लगते शबाब पर हैं .....
ऐ - मौला तुम भी रखना अपनी निगाहें उस पर
नज़रें ज़माने भर की उस इक ग़ुलाब पर हैं ......
मैंने चमकने की है जब से यूँ बात ठानी
तब से मिरी निगाहें उस आफ़ताब पर हैं .....
इक मेरा मुस्कुराना , दूजा है काम लिखना
यूँ ..... ख़ास पर्दे होते मेरे अज़ाब पर है ....
पंकजोम " प्रेम ".....
Comment
आदरणीय पंकजोम जी सादर नमस्कार। इस बढ़िया रचना पर मेरी बधाई प्रेषित है।
हार्दिक बधाई।
बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर
वाह बहुत खूब । कबीर साहब की इस्लाह कीमती है ।
आदरणीय पंकज भाई,दिली मुबारकबाद
जी आ0 दादा samar kabeer जी अभी दुरूस्त कर देता हूँ ग़ज़ल को ....... बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आपके आशिर्वाद का ...
बेहद शुक्रगुज़ार हूँ .. आपके आशिर्वाद आ0 दादा mohammed arif जी ....
जनाब पंक्जोम 'प्रेम'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये, 'पल लब' ।
4थे शैर के ऊला में 'तुम' की जगह "तू" शब्द मुनासिब होगा ।
5वें शैर के ऊला मिसरे में 'बात ठानी' की जगह "दिल में ठानी" करना मुनासिब होग़ा ।
आदरणीय पंकजोम जी आदाब,
एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास मगर और बेहतर हो सकती थी । हार्दिक बधाई.स्वीकार करें । गुणीजनों का इंतज़ार करें ।
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