बहर - 221 1222 221 1222
ये मेरा नहीं यारो ये बुजुर्गों का मत है ......
माँ बाप के चरणों में दिखती यहाँ ज़न्नत है ......
बस मेरी ये नादानों से एक शिक़ायत है .....
बेटा लगे प्यारा क्यों बेटी से न चाहत है .....
ये ख़्वाब नहीं कोई ये एक हकीक़त है ....
कुछ लोग कहे उल्फ़त उल्फ़त नहीं आफ़त है ......
संसार में इन दोनों में फ़र्क हैं इतना सा
है हाथ अगर बेटा तो बेटी इबादत है .....
कुछ शख्स ही कह सकते है बात यहाँ मुँह पर
हर शख्स की होती ऐ - यारो कहाँ हिम्मत है ......
यूँ तो मिरा उन पर अब कोई नहीं हक़ है , पर
उनके लिए दो मिसरे लिखना मेरी उल्फ़त है .....
बस चंद ग़ज़ल से ही महकती है अलमारी
इसके सिवा इस मुफ़लिस के पास न दौलत है .....
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पंकजोम " प्रेम ".....
Comment
आपके आशिर्वाद का बेहद शुक्रगुज़ार हूँ , आ0 दादा लक्ष्मण जी ..... आ0 भाई सुरेन्द्र जी ..... आ0 दादा मुहम्मद आरिफ जी ..... सलामत रहिये
हार्दिक बधाई।
आद0 पंकजोम जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास। शेष गुनिजनो की बातों का संज्ञान लीजिये। इस प्रस्तुति पर मेरी बधाई।
आदरणीय पंकजोम जी आदाब,
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब और आदरणीयत्रनीलेश जी की बातों का तत्काल प्रभाव से अमल करें ।
आपके आशिर्वाद का बेहद शुक्रगुज़ार हूँ , आ0 दादा समर कबीर जी .... आ0 दादा नीलेश जी ..... ग़ज़ल को और दुरुस्त करने का प्रयास करता हूँ ..
जनाब पंक्जोम "प्रेम" जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले का ऊला मिसरा लय में नहीं है ।
बाक़ी अशआर में अल्फ़ाज़ की बन्दिश चुस्त नहीं है ।
आख़री शैर का ऊला भी लय में नहीं है,एक बात ये कि 'चन्द'शब्द बहुवचन के लिए है इसलिए आगे का शब्द 'ग़ज़ल' को 'ग़ज़लों' होना चाहिए,देखियेग ।
मतले का ऊला बुजुर्गों के बु पर लड़खड़ा गया है ..देखिएगा
सादर
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