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दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे
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मैं शिनावर हूँ तैर जाऊँगा नाव का इंतजार कौन करे
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-----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. राजेश मैम, बहुत अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल. ये अशआर विशेष रूप से पसन्द आये :
दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
जब नजर से ही काम चल जाए
तीर को दागदार कौन करे
आ. राज साहिब से मैं भी सहमत हूँ. यहाँ "कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है" "क़त्ल" की जगह "मौत" शब्द का प्रयोग बेहतर है.
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरणीया राजेश जी, इस सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दिली मुबारकबाद. कुछ अशआर खासकर काफी पसंद आए-
तीर मुड़ जाएगा मेरी जानिब
जानकर ये शिकार कौन करे
जब नजर से ही काम चल जाए
तीर को दागदार कौन करे
वाह वाह
मतला भी ख़ूबसूरत बना है-
दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
अति सुन्दर. क्या क़त्ल की जगह मौत का इस्तेमाल बेहतर होगा? दूसरा शेर.
जब नजर से ही काम चल जाए
तीर को दागदार कौन करे....
वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल की प्रस्तुति की है आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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