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पशेमान सूरज पिघलने लगा(ग़ज़ल राज )

122 122 122 12

अना का जो खुर्शीद ढलने लगा

क़मर हसरतों का निकलने लगा

हटे मकड़ियों के वो जाले सभी

मेरा खस्ता घर भी सँभलने लगा

मुहब्बत का छोटा सा दीपक मेरा

ग़मों का अँधेरा निगलने लगा

मेरे आंसुओं की बनी झील में

पशेमान सूरज पिघलने लगा

चमन पर हुआ अब्र ज्यों महरबां

खजाँ का तभी रुख़ बदलने लगा

खुदा का करम चार हाथों से ये

सफीना मेरा आज चलने लगा

तरन्नुम में सुनकर सबा की ग़ज़ल

समंदर ख़ुशी से मचलने लगा

सदाकत का मीनार ऊँचा बहुत

जहाँ से वो बातिल फिसलने लगा

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2017 at 12:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया आद० डॉ० आशुतोष जी  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2017 at 12:09pm

आपको ग़ज़ल पसंद आई सतविन्द्र भैया बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2017 at 2:47pm
आदरणीया राजेश जी अब बात भली भांति समझ में आ गयी है मार्गदर्शन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 24, 2017 at 6:44am
उम्दा उम्दा उम्दा गजल दीदी,हार्दिक बधाइयाँ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 23, 2017 at 4:38pm

आद० आशुतोष जी ग़ज़ल आपको पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया 

पशेमान =लज्जित 

सूरज की ताब से घमंड का अर्थ लिया है -अर्थात आंसुओं को देखकर एक घमंडी का मन भी भी पिघल गया --इस शेर का आशय यही है 

सफीना -नाव/छोटा जहाज   जो पहले खुद दो हाथों से चलाती थी (अपनी गृहस्थी )साथी मिल गया तो चार हो गए हाथ -इसमें बिम्बात्मक भाव हैं .उम्मीद है अब स्पष्ट हो गए होंगे 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 23, 2017 at 4:33pm

आदरणीया राजेश जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है 

मेरे आंसुओं की बनी झील में

पशेमान सूरज पिघलने लगा

खुदा का करम चार हाथों से ये

सफीना मेरा आज चलने लगा... इन शेरो को पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूँ आपका मार्गदर्शन चाहिए पशेमान का अर्थ क्या होता है  सादर 

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