For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

November 2018 Blog Posts (98)

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

मर्म

सपनों का

बिना

काया का

साया

न अपना

न पराया

.................

कितने लम्बे

सपनों के धागे

सोच के पाँव

आसमाँ से आगे

नैन जागें

तो ये टूटें

नैन सोएं

तो ये जागें

......................

सर्द सवेरा

चाय की प्याली 

उठती भाप

अहसासों के टोस्ट

नज़रों की चुस्कियाँ

उम्र के ठहराव पर

काँपते हाथों सी

ठिठुरती…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 2:30pm — 6 Comments

गीतिका(आधार छंद-दोहा) -रामबली गुप्ता

सोच समझ कर बोलिए, बातें सदा विनीत

छूटा धनु से बाण जो, लौटा कब हे! मीत



तीर-धनुष-तलवार से, बड़े दया औ' प्रेम

इन्हें बना लें शस्त्र यदि, जग को लेंगे जीत।



द्वेष-दंभ सम अरि सखे! यहाँ मनुज के कौन

बिन इनके संहार के, उपजे कब हिय प्रीत



सतत प्रयासों के करें, ऐसे तीव्र प्रहार

पर्वत पथ खुद छोड़ दें, होकर भय से भीत



अधर-सुधा घट भौंह-धनु, मुख…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on November 19, 2018 at 1:21pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७१

2212 1212 2212 1212



ख़ुशियों से क्या मिले मज़ा, ग़म ज़िंदगी में गर न हो

शामे हसीं का लुत्फ़ क्या जब जलती दोपहर न हो



लुत्फ़े वफ़ा भी दे अगर बेदाद मुख़्तसर न हो

इक शाम ऐसी तो बता जिसके लिए सहर न हो



हालात जीने के गराँ भी हों तो क्या बुराई है

मजनूँ मिले कहाँ अगर सहराओं में बसर न हो



ऐसी रविश तो ढूँढिए गिर्यावरी ए आशिक़ी

तकलीफ़ देह भी न हो, नाला भी बेअसर न हो



ख़ुशियों के मोल बढ़ते हैं रंजो अलम के क़ुर्ब से

तादाद…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 10:00am — 15 Comments

कविता -2 ( झंझावात )

झंझावात

*******



झंझावात कितना प्रबल है!



दिशाएँ हो गईं निस्तब्ध,



नभ हो गया नि:शब्द,



सरस मधुर पुरवाई अपना दिखा गई भुजबल है।



झंझावात कितना प्रबल है!



शाखें हैं टूटी-टूटी,



सुमनों की किस्मत रूठी,



टप-टप बूँदों ने बेध दिया हर पत्ती का अंतस्थल है!



झंझावात कितना प्रबल है!



पंछी तिनके अब जुटा रहे,



चोटिल भावों को मिटा रहे,



दिन बीत गया अब रात हुई, यह जीवन नहीं सरल… Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 18, 2018 at 10:24pm — 3 Comments

गृहस्थ

छंद-आल्हा/वीर, बृज मिश्रित

-------------------------

जय जय जय भगवती भवानी

कृपा कलम पर रखियो मात

आज पुनः लिख्यौ है आल्हा

जामै चाहूँ तेरौ साथ
महावीर बजरंगी बाला

इष्टदेव मन ध्यान लगाय

निज विचार गृहस्थ पर मेरे

आल्हा में भर रह्यो सुनाय
नर नारी दोनों ही साधक

सर्जन पालन जिनकौ काम

एकम एक बनौ मिल गृहस्थ

कठिन साधना बारौ नाम
बात कहूँ गृहस्थ की पहली

रखो बंधुवर जाकौ ध्यान

नहीं बुराई करौ नारि की

जातै जुडौ…
Continue

Added by नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष on November 18, 2018 at 5:00pm — 2 Comments

कविता-1 साथी सो न , कर कुछ बात

साथी सो न, कर कुछ बात।

यौवन में मतवाली रात,

करती है चंदा संग बात,

तारें छुप-छुप देख रहे हैं, उनकी ये मुलाकात।

साथी सो न, कर कुछ बात।

झींगुर की झंकार उठी,

रह-रह, बारंबार उठी,

चकवा-चकवी की पुकार उठी, अब छोड़ो न मेरा हाथ।

साथी सो न, कर कुछ बात।

लज्जा से मुख को छुपाती,

अधरों से मधुरस टपकाती,

विहँस रही मुरझाई पत्ती, तुहिन कणों के साथ।

साथी सो न, कर कुछ बात।

-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by क़मर जौनपुरी on November 18, 2018 at 9:30am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७०

2122 1122 1122 22/ 112



सब्र रक्खो तो ज़रा हाल बयाँ होने तक

आग भी रहती है ख़ामोश धुआँ होने तक //१



समझेंगे आप भला क्यों ये गुमाँ होने तक

इश्क़ होता नहीं है दर्दे फुगाँ होने तक //२



तज्रिबा ये जो है सब आलमे सुग्रा का यहाँ

जाँ गुज़रती है सराबों से निहाँ होने तक //३



मुझको फ़िरदोस ने फिर से है निकाला बाहर

कौन है आलमे बाला में…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 11:00am — 11 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६९

2212 1212 2212 1212



ख़ुश्बू सी यूँ हवा में है, लगता वो आने वाला है

आबोहवा का हाल भी पिछले ज़माने वाला है //१



बाहों का तुम सहारा दो, तूफ़ान आने वाला है

दरिया तुम्हारे प्यार का सबको डुबाने वाला है ///२



बनते हो तीसमार खाँ, मेरी भी पर ज़रा सुनो

इक दिन ये वक़्त आईना तुमको दिखाने वाला है //३



मैं तो बड़े सुकून से सोया था तन्हा अपने घर

मुझको…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 10:15am — 6 Comments

गीत दफ्तर पर

सिस्टम से अब और निभाना मुश्किल है,

आँसू पीकर हँसते जाना मुश्किल है।।

लंबे चौड़े दफ्तर हैं पर छोटी सोच लिए।

भाँग कुएँ में मिली हुई है पानी कौन पिए।

कागज के रेगिस्तानों में भटक रहा,

मृग तृष्णा से प्यास बुझाना मुश्किल है।

भावुकता में मैदां छोड़ूँ क्या होगा।

कोई और यहाँ आकर रुसवा होगा।।

अजगर बन कर पड़ा रहूँ कैसे संभव,

जोंकों को भी खून पिलाना मुश्किल है।

लानत और मलामत का है भार बहुत।

न्याय नहीं निर्णय का शिष्टाचार…

Continue

Added by Ravi Shukla on November 16, 2018 at 9:48pm — 5 Comments

गज़ल -5 ( दोपहर की धूप में बादल सरीखे छा गए)

2122 2122 2122 212

दोपहर की धूप में बादल के जैसे छा गए

मह्रबां बन कर वो मेरी ज़िंदगी मेें आ गए//१

ज़िन्दगी जीते रहे हम दुश्मनों की भीड़ में 

रहबरों के संग में ही आके धोका खा गए //२

झूठ सीना तान कर मैदान में अब चल रहा

सच ज़ुबाँ पे जो भी लाए वे खड़े शरमा गए //३

सर उठाओ ना हमारे सामने सागर हैं हम

ताल हो तुम एक बारिस देखकर बौरा गए //४

भीड़ में वो खो गए जो मर मिटे ईमान पर

छापकर अख़बार झूठे…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 16, 2018 at 9:00pm — 7 Comments

हुस्न तेरी आशिकी से कौन रखता दूरियाँ - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" ( गजल )

२१२२/ २१२२/ २१२२/२१२

आप कहते पंछियों के , 'हमने पर कतरे नहीं'

आँधियों के सामने फिर क्यों भला ठहरे नहीं।१।



जो भी देखा उस पे उँगली झट उठा देता है तू

क्यों कहा करता जमाने ख्वाब पर पहरे नहीं।२।



एक जुगनू ही बहुत है वक्त की इस धुंध में

साथ देने  चाँद  सूरज  गर  यहाँ उतरे नहीं।३।



आईना वो बनके  चल  तू  पत्थरों के शहर में

जिन्दगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2018 at 7:34pm — 8 Comments

ग़ज़ल -- फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता / दिनेश कुमार

1212---1122---1212---22

.

फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता

मैं वो परिन्दा हूँ जो बालो-पर नहीं रखता

.

न चापलूसी की आदत, न चाह उहदे ( पदवी ) की

फ़क़ीर शाह के क़दमों में सर नहीं रखता

.

उरूज और ज़वाल एक से हैं जिसके लिये

वो हार जीत का दिल पर असर नहीं रखता

.

मिला नसीब से जो कुछ भी, वो बहुत है मुझे

पराई चीज़ पे मैं बद-नज़र नहीं रखता

.

नशा दिमाग़ पे दौलत का जिसके जन्म से हो

वो अपने पाँव कभी फ़र्श पर नहीं रखता

.

वो इस…

Continue

Added by दिनेश कुमार on November 16, 2018 at 3:04pm — 8 Comments

इस दर्पण में ......

इस दर्पण में ......

नहीं

मैं नहीं देखना चाहता

स्वयं का ये रूप

इस दर्पण में

नहीं देखना चाहता

स्वयं को इतना बड़ा होता

इस दर्पण में

मैं

सिर्फ और सिर्फ

देखना चाहता हूँ

अपना स्वच्छंद बचपन

इस दर्पण में

गूंजती हैं

मेरे कानों में

आज तक

माँ की लोरियाँ

ज़रा सी चोट पर

उसकी आँखों में

अश्रुधार

मेरी भूख पर

उसके दूध में लिपटा

उसका

स्निग्ध दुलार

कहाँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2018 at 6:40pm — 4 Comments

ग़ज़ल-4 (सब परिंदे लड़ रहे हैं...)

2122 2122 2122 212



सब परिंदे लड़ रहे हैं, आसमां भी कम है' क्या

इन सभी के हाथ में अब मज़हबी परचम है' क्या //१



क्यूँ सभी के अम्न के, क़ातिल बने हो रहबरों

घर चलाने के लिए घर में कहीं कम ग़म है क्या //२



एक क़तरा अश्क भी जो दे नहीं, वो हमसफ़र

दर्द से जो रोज़ खेले वो भला हमदम है क्या //३



दर्द से व्याकुल मरीज़ों के बने थे चारागर

जो दवा नासूर कर दे वो भला मरहम है क्या //४



जल रही हो जब ये धरती जल रहा हो जब चमन

ऐसे में जब आग बरसे…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 3:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

11212 11212. 11212. 11212

हुई तीरगी की सियासतें उसे बारहा यूँ निहार कर ।

कोई ले गया मेरा चाँद है मेरे आसमाँ से उतार कर ।।

अभी क्या करेगा तू जान के मेरी ख्वाहिशों का ये फ़लसफा ।

जरा तिश्नगी की खबर भी कर कोई शाम एक गुज़ार कर ।।

मेरी हर वफ़ा के जवाब में है सिला मिला मुझे हिज्र का ।

ये हयात गुज़री तड़प तड़प गये दर्द तुम जो उभार कर ।।

ये शबाब है तेरे हुस्न का या नज़र का मेरे फितूर है ।

खुले मैकदे तो बुला रहे तेरे तिश्ना लब को पुकार कर…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 15, 2018 at 12:17pm — 6 Comments

ग़ज़ल-3 (ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस एक पल में आ गया)

2122 2122 2122 212



ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस एक पल में आ गया,

नाम तेरा इक महक बन साँस में जब छा गया



उम्र भर भटका किये, इक पल सुकूँ की चाह में,

वो मिले तो रूह बोली, तूू सफ़ीना पा गया।



बस जुनूँ था आसमां में घर नया अपना बने

इस जुनूँ की चाह में सब घर ज़मीं का ढा गया



था किया वादा लड़ूँगा भूख से जो फ़र्ज है

भूख मेरी ही बड़ी थी सब अकेला खा गया



अब मसीहा सर झुकाकर खूब सेवा में लगे

लग रहा है दिन चुनावों का सुहाना आ गया



--…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 9:30am — 9 Comments

ग़ज़ल - 2 ( क़मर जौनपुरी )

22 22 22 22 22 22 22 2



बच्चे रस्ता देखा करते पंछी के घर आने तक

पंछी दाना देता रहता बच्चों के पर आने तक।



सोना जगना गिरना उठना ये सब लक्षण जीवन के

सूखा पत्ता डाली को क्या देखे मंजर आने तक



छोटी लम्बी तन्हाई से क्या अंदाज़ा होता है

सच्चा प्रेमी संगी होगा अंतिम पत्थर आने तक



तू महफ़िल में गाता रहता मैं ही सच्चा रहबर हूँ।

तेरी महफ़िल ज़िंदा है बस सच के ऊपर आने तक



खट्टी मीठी यादें तेरे जीवन का सरमाया हैं

इन यादों को साथी कर…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 1:00am — 6 Comments

3 क्षणिकाएँ....

3 क्षणिकाएँ....

लीन हैं

तुम में

मेरी कुछ

स्वप्निल प्रतिमाएँ

देखो

खण्डित न हो जाएँ

ये

पलकों की

हलचल से

...................

गहनता में
निस्तब्धता
निस्तब्धता में…
Continue

Added by Sushil Sarna on November 14, 2018 at 1:00pm — 11 Comments

गज़ल

2122  1122  1122   22

ग़ज़ल

*****

तेरे दिल को मैं निगाहों में बसा लेता हूँ।

तेरा ख़त जब मैं कलेजे से लगा लेता हूँ

तेरी यादों में छलकती हैं उनींदी आंखें

तेरी यादों में ही मैं गंगा नहा लेता हूँ

दिल में जन्नत का यकीं मेरे उतर आता है

जब तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में हवा लेता हूँ

तुझसे वाबस्ता हैं हाथों की लकीरें मेरी

इन लकीरों से ही अब तेरा पता लेता हूँ

ऐ क़मर ग़म के अंधेरों का मुझे खौफ़ नहीं

चाँद मेरा है उसे छत पे बुला लेता…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 13, 2018 at 10:14pm — 8 Comments

मिट गए नक़्श सभी....संतोष

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

मिट गये नक़्श सभी दिल के दिखाऊँ कैसे

एक भुला हुआ क़िस्सा मैं सुनाऊँ कैसे

जा चुका है…

Continue

Added by santosh khirwadkar on November 13, 2018 at 1:06pm — 14 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service