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3 क्षणिकाएँ....

लीन हैं
तुम में
मेरी कुछ
स्वप्निल प्रतिमाएँ
देखो
खण्डित न हो जाएँ
ये
पलकों की
हलचल से

...................

गहनता में
निस्तब्धता
निस्तब्धता में
अलौकिकता
अलौकिकता में
मौलिकता
स्पंदन जीवित रहे
निस्तब्ध
अलौकिक
मौलिकता के
विलीन होने के बाद भी

..............................

रात,सनक, मयंक
और
तमन्नायें
चरमोत्कर्ष की
वेदना का पर्याय बनीं
उनके
चले जाने के बाद

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 5:01pm

"आदरणीय  vijay nikore जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:27pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मुक्त कंठ से की गयी प्रशंसा का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपकी हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया ।
सर बड़ी ही ख़ूबसूरती से आपने क्षणिका को शेर में तब्दील किया है। आपका दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:24pm

आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मुक्त कंठ से की गयी प्रशंसा का दिल से शुक्रगुज़ार है , शुक्रिया ।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:22pm

आदरणीय राज़ नवादवी साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी मुक्त कंठ से प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:22pm

आदरणीय क़मर जौनपुरी साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on November 15, 2018 at 10:44pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपके लेखन की धार को देखकर अति प्रसन्नता हो रही है,तीनों क्षणिकाएँ बहुत उत्तम और लेखन का आला नमूना हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपकी पहली क्षणिका को शैर में इस तरह ढाला जा सकता है:-

'लीन हैं तुम में मेरी कुछ तस्वीरें देखो याद रहे

खण्डित न हो जाएं ये भी इन पलकों की हलचल से'

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 15, 2018 at 8:42pm

वाह। पहली क्षणिका का समाधान सा करती दूसरी बेहतरीन क्षणिका! किंतु परिदृश्य और परिस्थितियों अनुसार सवाल करती तीसरी बेहतरीन क्षणिका। हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना  साहिब।

Comment by राज़ नवादवी on November 15, 2018 at 1:50pm

अनुभूतियाँ उक्केरती हैं जो आपकी क्षणिकाएँ, खुले नभ में जैसे चमकें हैं रात को मणिकाएं ! बहुत सुन्दर आदरणीय सुनील सरना जी. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 10:53am
बेहतरीन रचना।
Comment by Sushil Sarna on November 14, 2018 at 6:33pm

"आदरणीय  narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

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