स्कूल की छत और कुछ दरख़्तों पर कुछ बंदर अपनी शैली में आनंद ले रहे थे। कक्षा में छात्रों ने उनके 'उत्पात' देखने हेतु आगे पढ़ने से मना कर दिया। दरअसल मॉरल साइंस (नैतिक शिक्षा) के शिक्षक इत्तेफ़ाकन गांधी जी के 'तीन बंदरों' की प्रतीकात्मकता की व्याख्या करते हुए 'सादा जीवन उच्च विचार' के बारे में उन्हें समझा रहे थे!
"ये मज़बूर और परेशान बंदर हैं! किसी तलाश में राह भटक गये हैं!" अपनी बत्तीसी निपोरते एक बंदर की ओर इशारा करते हुए शिक्षक ने कहा।
"नहीं, सर! ये हमारी तरह…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2018 at 7:02pm — 3 Comments
(फाइला तुन _फ इलातुन _फ इ ला तुन _फेलुन)
दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो |
कोई तकलीफ में, खुश कोई है फिरक़ा देखो |
कोई पत्थर की तरह आपकी ठोकर में है
मेरे महबूब ज़रा गौर से कूचा देखो |
आपको करना है दीदार गरीबी का अगर
जाके फुट पाथ का रातों में नज़ारा देखो |
हर किसी शख्स के हाथों में नहीं यूँ पत्थर
फ़िर कोई आ गया कूचे में दिवाना देखो |
गिडगिडाने से कभी हक़ नहीं मिल पाएगा
कर के तब्दील ज़रा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2018 at 10:30am — 8 Comments
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on May 18, 2018 at 4:27pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
आया सँवर के चाँद चमन में उजास है ।
बारिश ख़ुशी की हो गयी भीगा लिबास है ।।
कसिए न आप तंज यहां सच के नाम पर ।
लहजा बता रहा है कि दिल में खटास है ।।
मिलता नशे में चूर वो कंगाल आदमी ।
शायद खुदा ही जाम से भरता गिलास है ।।
उल्फत में हो गए हैं फ़ना मत कहें हुजूर ।
जिन्दा अभी तो आपका होशो हवास है ।
पीकर तमाम रिन्द मिले तिश्नगी के साथ ।
साकी तेरी शराब में कुछ बात…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 17, 2018 at 11:24pm — 2 Comments
मुझे देख उनको लगा,हुआ मुझे उन्माद।।
नयनों से वाचन किया,अधरों से अनुवाद।।1
अभी पुराने खत पढ़े,वही सवाल जवाब।
देख देख हँसता रहा,सूखा हुआ गुलाब।।2
मन को दुर्बल क्यों करें,क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा,आशा का आह्लाद।।3
विविध रंग से हो भरा,भावों के अनुरूप।।
स्नेह इसी अनुपात में ,मैं प्यासा तुम कूप।।4
करुणा प्यार दुलार औ,इक प्यारी सी थाप।
माँ ही पूजा साथ में,है मन्त्रों का जाप।।5
स्वाभिमान को…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 17, 2018 at 3:01pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 1:01pm — No Comments
मुंह अँधेरे ही भजन की जगह,फोन की घंटी घनघना उठी,
घंटी सुन फुर्ती आ गई,नही तो,उठाने वाले की शामत आ गई,
ड्राईंग रूम की शोभा बढाने वाला,कचड़े का सामान बन गया,
जरूरत अगर हैं इसकी,तो बदले में कार्डलेस रख गया,
उठते ही चार्जिंग पर लगाते,तत्पश्चात मात-पिता को पानी पिलाते,…
ContinueAdded by babitagupta on May 17, 2018 at 12:00pm — No Comments
2122--1122--1122--22
बाद मरने के भी दुनिया में हो चर्चा मेरा
ऐसी शोहरत की बुलन्दी हो ठिकाना मेरा
मैं हूँ इक प्रेम पुजारी ऐ मेरी जाने-हयात
तू ही मन्दिर, तू कलीसा, तू ही का'बा मेरा
मेरे बेटे की निगाहों में हैं कुछ ख़्वाब मेरे
ज़िन्दगी उसकी है जीने का सहारा मेरा
मौत भी चैन से आती है कहाँ इन्सां को
ज़ेह्न में गूँजता ही रहता है मेरा मेरा
अब भी रातों को मेरी नींद उचट जाती है
आह इक चाँद को छूने का वो सपना मेरा
अनकही बात मेरी क्या वो…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on May 17, 2018 at 5:31am — 3 Comments
मधुर अप्राकृत प्यार ...
करी थी जिसकी इन्तज़ार
ज़िन्दगी भर ... ज़ार-ज़ार
आया है स्वयं अब वसन्त बन
निकटतम आस-पास, इतना पास
ज़िन्दगी के इस पढ़ाव पर
तुम आई रवि-रश्मि बन प्रिय
तुम्हारे अप्रतिम स्नेह में मानो
मैं हूँ विराजा राज-सिहाँसन पर
परी-सी आई हो किस निद्रा के द्वार
झूम रहे स्नेह के हल्के-हल्के उदगार
उपवन में गा रहे कोयल, फूल, और धूप
हर्षित है संग उनके यह खुला…
ContinueAdded by vijay nikore on May 16, 2018 at 11:00pm — 3 Comments
छोटा-सा,साधारण-सा,प्यारा मध्यमवर्गीय हमारा परिवार,
अपने पन की मिठास घोलता,खुशहाल परिवार का आधार,
परिवार के वो दो,मजबूत स्तम्भ बावा-दादी,
आदर्श गृहणी माँ,पिता कुशल व्यवसायी,
बुआ-चाचा साथ रहते,एक अनमोल रिश्ते में बंधते,
बुजुर्गों की नसीहत…
ContinueAdded by babitagupta on May 16, 2018 at 6:48pm — 1 Comment
"सुना है कि आपके मुल्क में तो विधायकों की खरीद-फरोख्त सी चल रही है!" परदेसी ने देसी दोस्त से फोन पर कहा।
" नहीं ऐसा तो कुछ विशेष नहीं, पहले भी ऐसी परंपरा रही है । मेरा लोकतंत्र बदल रहा है; तोड़-मरोड़ कर देश चल रहा है! यह समझो कि बेईमानी का कारोबार फल-फूल रहा है, बस!" दोस्त ने टेलीविजन अॉफ़ कर अंगड़ाई लेते हुए कहा।
"आप सभी खुश तो हैं न?"
"हां, सभी ख़ुश हैं! कभी उनके दल में, तो कभी हमारे दल में ऐसा हो जाता है! जनता सब जानती है, समझदार हो गई है; मीडिया के मज़े…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 6:31pm — 2 Comments
"सूटकेस भी तो ला!"
"सर.. कार में है!"
".. तो और कहां होगा! उसी सूटकेस से तो सरकार बनवाऊंगा न!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 6:04pm — 1 Comment
वर्तमान में भागमभाग की जिन्दगी में मनुष्य एक ऐसी मायवी दुनिया में जी रहा हैं जहां ऊपर से अपने आप को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इन्सान जताता हैं,जबकि वास्तव में वो एक मशीनी जिन्दगी जी रहा हैं,तनावग्रस्त,सम्वेदनहीन,एकाकी हो गया हैं जहाँ सम्वेदनशीलता और सह्रदयता अकेली हो जाती हैं और एक उठला जीवन जीने लगता हैं .ऐसे में उसेइस कोलाहल भरी दुनिया से छुटकारा मिलने का एक मात्र साधन -सात सुरों से सजा संगीत होता हैं.संगीत ही ऐसी औषधि होती हैं जिसमें ह्रदय से बिखरे आदमी को…
ContinueAdded by babitagupta on May 16, 2018 at 6:02pm — No Comments
"हम सबसे बड़े दल हैं!"
"तो दावा करने के बाद साहिब का तो इंतज़ार कर न!"
"क्या करें भाई, हम दलदल में जो हैं!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 5:57pm — No Comments
221 2121 1221 212
सब कुछ है मेरे पास मगर बेजुबान हूँ ।
क़ानून तेरे जुल्म का मैं इक निशान हूँ ।।
क्यूँ माँगते समानता का हक़ यहां जनाब ।
भारत की राजनीति का मैं संविधान हूँ ।।
उनसे थी कुछ उमीद मुख़ालिफ़ वही मिले ।
जिनके लिए मैं वोट का ताजा रुझान हूँ ।।
कुनबे में आ चुका है यहाँ भुखमरी का दौर ।
क़ानून की निगाह में ऊंचा मकान हूँ ।।
गुंजाइशें बढ़ीं हैं जमीं पर गिरेंगे आप ।
जबसे कहा…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2018 at 5:49pm — 2 Comments
हरजाई ....
ये
वो गालियां हैं
जहां
अंधेरों में
सह्र होती है
उजाले उदास होते हैं
पलकों में
खारे मोती
होते हैं
बे-लिबास जिस्म,
लिपे -पुते चेहरे,
शायद
बाजार में
बिकने की
ये पहली जरूरत है
इक रोटी के लिए
सलवटों से खिलवाड़
रौंदे गए जिस्म की
बिलखती दास्ताँ हैं
भोर
एक कह्र ले कर आती है
पेट की लड़ाई
शुरू हो जाती है
दिन ढलने के साथ -साथ…
Added by Sushil Sarna on May 16, 2018 at 11:30am — 2 Comments
(फाइलातुन - - मफा इलुंन - - - फेलुन)
जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का |
वो करे काम आशनाई का |
मुझको ले आए ग़म की सरहद तक
शुक्रिया उनकी रहनुमाई का |
झूटी तुहमत पे तैश खाते हो
यह तरीक़ा नहीं सफ़ाई का |
मनज़िले इश्क़ पा सकेगा वही
सह लिया जिसने ग़म जुदाई का |
मैं वफादार था लगा फ़िर भी
मुझ पे इल्ज़ाम बे वफाई का |
ज़ुल्म उस हद तलक रहें मह दूद
आए मौक़ा न जग हँसाई…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 15, 2018 at 8:00pm — 8 Comments
नहीं जानती ...(350 वीं कृति )
नहीं जानती
तुम किस धागे से
रिस्ते हुए ज़ख्मों पर
ख़्वाबों का
पैबंद लगाओगे
नहीं जानती
तुम किस चाशनी में डुबोकर
ज़ख़्मी लम्हों को
मेरी आँखों की हथेली पर
सजाओगे
नहीं जानती
तार तार हुए
ख़्वाबों के लिबास
कैसे बेशर्मी को
नज़रअंदाज़ कर पाएंगे
मगर
जानती हूँ
तुम फिर से
मेरे
संग-रेज़ों में तकसीम ख़्वाबों को
अपने शीरीं…
Added by Sushil Sarna on May 14, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
यौवन रुत ...
चक्षु आवरण पर
प्रत्यूष का सुवासित स्पर्श
यौवन रुत की प्रथम अंगड़ाई का
प्रतीक था
आँखों की स्मृति वीचियों पर
अखंडित लालसाओं की तैरती नावें
बहुबंध में सिमटी
अमर्यादित अभिलाषाओं की
प्रतीक थी
मौन अनुबंधों के अंतर्नाद
निष्पंद देह में
उन्माद क्षणों के चरम अनुभूति के
प्रतीक थे
मयंक मुख पे
केश मेघों की अठखेलियाँ
कामनाओं की अनंत तृषा की
प्रतीक…
Added by Sushil Sarna on May 14, 2018 at 4:59pm — 10 Comments
"लोगों की आदत है हर बात, हर घटना में से केवल नकारात्मक बातें ही निकालते हैं!" झूमते हुए दरख़्तों ने कुछ अनुपयोगी पत्तों और डालियों से छुटकारा पाते हुए तेज़ आंधी से कहा- "अब देख, तुझे लोग केवल तबाही और नुकसान के लिए याद करते हैं, जबकि...!"
"क्या जबकि?" तेज़ हवाओं को लपेटती आंधी ने पूछा।
"जबकि आजकल तुझे विश्व स्तर का 'टेलीविजन चैनल कवरेज़' मिल रहा है, तुझ पर 'विडियो क्लिप्स' इंटरनेट पर अपलोड किए जा रहे हैं! तेरे तो जलवे हैं! तरह-तरह से लोगों को 'ठंडक', 'संतुष्टि' और…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2018 at 11:16am — 8 Comments
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