"लोगों की आदत है हर बात, हर घटना में से केवल नकारात्मक बातें ही निकालते हैं!" झूमते हुए दरख़्तों ने कुछ अनुपयोगी पत्तों और डालियों से छुटकारा पाते हुए तेज़ आंधी से कहा- "अब देख, तुझे लोग केवल तबाही और नुकसान के लिए याद करते हैं, जबकि...!"
"क्या जबकि?" तेज़ हवाओं को लपेटती आंधी ने पूछा।
"जबकि आजकल तुझे विश्व स्तर का 'टेलीविजन चैनल कवरेज़' मिल रहा है, तुझ पर 'विडियो क्लिप्स' इंटरनेट पर अपलोड किए जा रहे हैं! तेरे तो जलवे हैं! तरह-तरह से लोगों को 'ठंडक', 'संतुष्टि' और अच्छी-खासी 'डिजिटल कमाई' और 'नाम' भी दिला रही है!"
"छोड़ो यह मीडियापा, फेसबुकियों के जैसा! हम बहूरूपिये ज़रूर हैं, लेकिन हक़ीक़त दिखाते हैं आभासी नहीं! आसमां पर उड़ने वालों को ज़मींदोज़ कर दिखाते हैं! सोने वालों को जगा देते हैं!" आंधी ने अपने मंज़र दिखाते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब श्याम नारायण शर्मा साहिब।
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय |
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सुशील सरना जी, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब विजय निकोरे साहिब और मुहतरमा बबीता गुप्ता जी।
कटाक्ष अच्छा है लघु कथा में। हार्दिक बधाई, इस लघु कथा पर, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
मानवीकरण रूप में बेहतरीन कटाक्षपूर्ण लघुकथा । कुछ सामयिकता का पुट लिए भी है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सर जी, नमस्कार, बहुत ही सरल ,सुन्दर शब्दों में प्रस्तुतीकरण, प्रकाशित रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बढ़िया लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
वाह बहुत सुंदर ... डिजिटल दुनियां को मानवीय सवेदनाओं के साथ जोड़ कर सुंदर लघुकथा का प्रस्तुतीकरण हुआ है आदरणीय उस्मानी साहिब। हार्दिक बधाई।
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