1222 1222 1222 1222
अभी इग्नोर कर दो, पर, ज़बानी याद आयेगी
अकेले में तुम्हें मेरी कहानी याद आयेगी
चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन
कभी तो यार को ये बाग़बानी याद आयेगी
मसें फूटी अभी हैं, शोखियाँ, ज़ुल्फ़ें, निखरता रंग
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
मुबाइल नेट दफ़्तर के परे भी है कोई दुनिया
ठहर कर सोचिए, वो ज़िंदग़ानी याद आयेगी
कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो
सियासत की उसे हर…
Added by Saurabh Pandey on February 28, 2018 at 2:30am — 28 Comments
कभी सोचता हूँ यदि ईश्वर-अल्लाह इत्यादि एक ही है
तो हम सबको अलग-अलग पैदा क्यों किया ?
इस बारे में क्या सोचते है आप ?
और माना कि पैदा किया भी तो फिर बीच में
कहाँ से आ टपके हमारे माँ-बाप ?
और पर्वत-पहाड़ नदियाँ तो बनते बिगड़ते है अपने आप
फिर इन सबको भी ऊपर वाले ने बनाया क्यों कहते है आप ?
और कभी सड़क पर आपको ड्राईवर टक्कर से बचा भी दें
तो आप पूरा श्रेय देते हैं भगवान को !
और मर गए तो आफत आती है ड्राईवर की जान को !
थोडा सोचो…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on February 27, 2018 at 12:30pm — 3 Comments
गीत
कंटक ही कंटक हैं, जीवन के पथ में !
प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !
क्षण-क्षण यह चिंतन
जीवन बीहड़ वन !
इस वन में एकाकी
प्राणों का विचरण…
Added by नन्दकिशोर दुबे on February 27, 2018 at 11:30am — 7 Comments
मुक्तक
(आम आदमी)
1.सारी फिक्रें अभी उलझी हुईं हैं एक सदमें में
मैं मर जाऊँ तो क्या !मैं खो जाऊँ तो क्या !
2.मैं रोज़ मरता हूँ कोई हंगामा नहीं होता
सब सदमानसी है मुमताज़ की खातिर |
(इस्तेमाल )
3.खम गज़ल लिखता हूँ दिल तोड़ कर उसका
हुनर ज़ीना चढ़ता है बुलंदी हासिल होती है |
(वापसी )
4.शराब ने टूटकर घर का पानी गंगा कर दिया
उसने कपड़े उतारे मेरी सोच को नंगा कर दिया |
…
ContinueAdded by somesh kumar on February 27, 2018 at 10:58am — 5 Comments
Added by Kumar Gourav on February 27, 2018 at 1:49am — 6 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
वो प्यार का हमारे, इस्बात चाहते हैं।
बेइंतहा जिन्हें हम, दिन रात चाहते हैं।।
होकर खड़े हुए हैं, बेदार सरहदों पर,
जो अम्न-ओ-चैन वाले, हालात चाहते हैं।।…
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 26, 2018 at 11:00pm — 9 Comments
Added by Rahila on February 26, 2018 at 10:58pm — 8 Comments
लूटकर घर का खजाना भाग जाता आदमी
चंद सिक्कों के लिए भी मार खाता आदमी।1
बिक रहे कितने पकौड़े,चुस्कियों में प्यालियाँ,
और ठगकर आपसे भी मुस्कुराता आदमी।2
योजनाएँ चल रहीं पर हो रहीं नादानियाँ
देखकर यूँ हाल अपना खुद लजाता आदमी।3
सच कहा जाता नहीं,कह दे अगर,बदकारियाँ
तिलमिलाती बात है फिर थरथराता आदमी।4
रोक सकता दुश्मनों को देख लो जाँबाज दिल
भेदियों से घर में लेकिन मात खाता आदमी।5
खेत में होते हवन से हाथ जलते हैं बहुत
कर चुकाने में फसल…
Added by Manan Kumar singh on February 26, 2018 at 9:00pm — 7 Comments
2122 1122 22
पहले ग़लती तो बता दे मुझको
फिर जो चाहे वो सज़ा दे मुझको
oo
सारी दुनिया से अलग हो जाऊँ
ख़ाब इतने न दिखा दे मुझको
oo
हो के मजबूर ग़म-ए-दौरां से
ये भी मुमकिन है भुला दे मुझको
oo
या खुदा वक़्त-ए-नज़ा से पहले
उसका दीदार करा दे मुझको
oo
साथ चलना हो 'रज़ा' नामुमकिन
ऐसी शर्तें न सुना दे मुझको
_____________________
मौलिक व अप्रकाशित
Added by SALIM RAZA REWA on February 26, 2018 at 8:00pm — 10 Comments
बह्र - मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
बुढ़ापा आ गया लेकिन समझदारी नहीं आई।
रहे बुद्धू के बुद्धू और हुशियारी नहीं आई।
किया ऐलान देने की मदद सरकार ने लेकिन
हमेशा की तरह इमदाद सरकारी नहीं आई।
पड़ोसी के जले घर खूब धू धू कर मगर
साहब,
खुदा का शुक्र मेरे घर मे चिंगारी नहीं आई।
ढिंढोरा देश भक्ति का भले ही हम नहीं पीटें,
मगर सच है लहू में अपने गद्दारी नहीं आई।
बहुत से लोग निन्दा रोग से बीमार हैं…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on February 26, 2018 at 6:34pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
सुनता खुदा न यार सदाएँ तो क्या करें
करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।
इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम
हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।
इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान से
देता न कोई आज सदाएँ तो क्या करें।३।
शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम
तूफान बन के टूटें हवाएँ तो क्या करें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:30pm — 6 Comments
....................ऑंखें...........................
आँखों में आप काज़ल जरा कम लगाइए.
तारीकियों को इनकी न इतना बढाइए.
हिन्दोस्तां की दुनिया रोशन इन्हीं से है.
अँधेरों से आज इसको वल्लाह बचाइए.
गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'
अजमेर (राज.)
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 5:46pm — 2 Comments
तेरी अधखुली सी आँखें, भंवरे कँवल में जैसे.
मदहोश सो रहे हों , अपने महल में जैसे.
चुनरी पे तेरी सलमा-सितारे हैं यूँ जड़े.
सरसों के फूल खिलते, धानी फसल में जैसे.
शर्मो-हया है इनकी वैसी ही बरक़रार.
देखी थी इनमें मैंने पहली-पहल में जैसे.
जुर्मे-गौकशी को कानूनी सरपनाही.
जी रहे हैं अब भी, दौरे-मुग़ल में जैसे.
वैसे ही होना होश जरूरी है जोश में.
है अक़ल का होना कारे-नक़ल में जैसे.
बहके बहर…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 5:35pm — 3 Comments
221 2121 1221 212
...
हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,
कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।
माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,
पर अपनी ज़िन्दगी के सुलेमान हैं सनम ।
ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,
आँसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।
हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,
ऐसा लगे समझना परेशान हैं सनम ।
अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की
इस ज़िन्दगी में अपने भी…
ContinueAdded by Harash Mahajan on February 26, 2018 at 3:00pm — 16 Comments
ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.
बहने लगी हैं उल्टी हवाएँ तो क्या करें.
कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.
वो ही लिखा है मैंने जो अच्छा लगा मुझे.
नासेह सर को अपने खपाएँ तो क्या करें.
जल्लाद हाथ में जब खंजर उठा चुका.
खौफे अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें.
इल्मे-अरूज पर पढ़ कर के लफ़्ज चार. .
खारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें.
कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर.…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 1:29pm — 3 Comments
दो जिस्मों के मिलने भर से
दो जिस्मों के मिलने भर से
प्यार मुकर्रर होता तो
टूटे दिल के किस्सों का
दुनियाँ में बाज़ार न होता
सागर की बाँहों में जाने
कितनी नदियाँ खो जाती हैं
एक मिलन के पल की खातिर
सदियाँ तन्हा हो जाती हैं
तस्वीरें जो भर सकती
इस घर के खालीपन को
उसके आने की खुशबू से
दिल इतना गुलज़ार ना होता |
दो जिस्मों के मिलने भर से---
बाँहों में कस लेना…
ContinueAdded by somesh kumar on February 26, 2018 at 12:41pm — 6 Comments
मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
बिसात-ए-गैर क्या है जब, नदीम कर सका नहीं।
मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर सका नहीं।।
अदीब से हुए नहीं कुछ एक काम आज तक,
असीर कर गया जिसे फ़हीम कर सका नहीं।।
लिखीं पढ़ीं भले कई, कहानियाँ ज़हान की,
मगर क़सूर क्या रहा अज़ीम कर सका नहीं।।
मिलान चश्म, चश्म और, क़ल्ब, क़ल्ब का हुआ,
कमाल जो हुआ कभी कलीम …
ContinueAdded by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 25, 2018 at 11:11pm — 7 Comments
(मफऊल -फाइलात -मफाईल -फाइलुन )
.
शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें |
वादा वफ़ा का हम न निभाएँ तो क्या करें |
.
मजबूर हो के हो गया दीवाना जिनका दिल
अब जान भी न उनपे लुटाएँ तो क्या करें |
.
गैरों की बात हो तो उसे कर दें दर गुज़र
पर हम पे ज़ुल्म अपने ही ढाएँ तो क्या करें|
.
उम्मीद जिसके आने की न ज़िंदगी में हो
उसको न अपने दिल से भुलाएँ तो क्या करें |
.
बैठे हुए हैं सामने महफ़िल में गीब्ती
उन…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 25, 2018 at 9:00pm — 6 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
(हुस्न-ए-मतला और उसके बाद का शे'र क़ित'अ बन्द हैं)
जब इम्तिहान-ए-शौक़-ए- शहादत रखा गया
इनआम उसका दोस्तो जन्नत रखा गया
पहले तो इसमें नूर-ए-सदाक़त रखा गया
फिर इसके बाद जज़्ब-ए- उल्फ़त रखा गया
तकलीफ़ दूसरों की समझ पाएँ इसलिये
दिल में हमारे दर्द-ए-महब्बत रखा गया
कोई भी शय फ़ुज़ूल नहीं इस जहान में
हर एक शय को हस्ब-ए-ज़रूरत रखा गया
लेता नहीं है रोज़ वो आमाल…
ContinueAdded by Samar kabeer on February 25, 2018 at 2:32pm — 22 Comments
भुजंग प्रयात छन्द (122 -122-122-122)
बड़ा तंग करता वो करके बहाने,
बड़ी मुश्किलों से बुलाया नहाने।
किया वारि ने दूर तंद्रा जम्हाँई,
तुम्ही मेरे लल्ला तुम्ही हो कन्हाई।
कभी डाँटके तो कभी मुस्कुरा के,
करे प्यार माता निगाहेँ चुराके।
बड़े कौशलों से किया मातु राजी,
पढ़ो लाल जीतोगे जीवन की बाजी।
सुना जी हिया-उर्मि के नाद को…
Added by SHARAD SINGH "VINOD" on February 25, 2018 at 12:37pm — 3 Comments
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